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चेतेश्वर पुजाराः वो बल्लेबाज, जो अकले ही पूरी टीम के बराबर गेंदें खेल जाता है


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साल 2010 अक्तूबर का महीना था। ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर आई थी। सीरीज के दूसरे टेस्ट में एक युवा बल्लेबाज का डेब्यू हुआ। तब टेस्ट टीम में सचिन द्रविड़, लक्ष्मण जैसे धुरंधरों के करियर का आखिरी दौर शुरू हो चुका था।

इन सभी के बीच उस युवा बल्लेबाज को टेस्ट कैप मिली, जिसका घर का नाम चिंटू था। पहली पारी में चिंटू सिर्फ चार रन पर आउट हो गया, लेकिन जब दूसरी पारी में उतरा, तो यह ठान कर उतरा की कुछ भी विकेट पर जमना है।

उसने दूसरी पारी में 117 गेंदे खेली 72 रन बनाए और मुझे याद है कि उसकी इस पारी के अगले दिन एक अखबार के खेल पन्ने की हेडलाइन थी, ‘पहली परीक्षा में चिंटू पास’। बाकी इस खिलाड़ी के संघर्ष की कहानी। अपने पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के सामने डटकर खड़े रहने वाले इस खिलाड़ी का नाम है चेतेश्वर पुजारा। पुजारा आज 32 साल के हो गए।

चेतेश्वर पुजारा, वो भारतीय बल्लेबाज जो पिच पर खेलने के लिए तो आता ही है, साथ ही विरोधी गेंदबाजों को झेलाने के लिए भी आता है। पिच पर डेरा डाल देता है, अकेले ही पूरी टीम भर की गेंदें खेल जाता है और क्रीज पर इतनी देर जमे रहता है, मानों किसी कंपनी में आठ-नौ घंटे की शिफ्ट पूरी कर रहा हो।

द्रविड़ के जाने के बाद पुजारा ने टीम इंडिया की उस खाली जगह को भरने के लिए भरपूर कोशिश की है। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को अपने भीतर उतारा और भारतीय टीम को टेस्ट क्रिकेट में नंबर वन बनाने में अहम भूमिका निभाई।

क्रिकेट में रुची रखने वाले लोग जानते हैं कि पुजारा किस तरह से बल्लेबाजी करते हैं। वो टेस्ट क्रिकेट के लिए सबसे फिट बल्लेबाज माने जाते हैं। पिछले साल पुजारा ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सबसे ज्यादा गेंदें खेलने का रिकॉर्ड बनाया था।

2019 की जनवरी में सिडनी टेस्ट में पुजारा ने लगभग नौ घंटे बल्लेबाजी की थी और 193 रन बनाए थे। इस दौरान उन्होंने 373 गेंदें खेली थीं। 240 गेंदों में एक टी-20 मैच खत्म हो जाता है। चेतेश्वर पुजारा, ऑस्ट्रेलिया में किसी एक टेस्ट सीरीज में सबसे ज्यादा गेंदें खेलने वाले भारतीय बल्लेबाज हैं। पुजारा ने इस सीरीज की सात पारियों में कुल 1258 गेंदें खेलीं थीं। ये गेंदें पांच टी-20 मुकाबले में फेंकी जाने वाली गेंदों से कहीं ज्यादा हैं।

पुजारा का जन्म 25 जनवरी 1988 को गुजरात के राजकोट में हुआ था। क्रिकेट उन्हें विरासत में मिली। उनके दादा शिवपाल पुजारा बेहतरीन लेग स्पिनर थे, पिता अरविंद और चाचा विपिन सौराष्ट्र की तरफ से रणजी खेल चुके हैं। चेतेश्वर अपने परिवार टीम इंडिया के लिए खेलने वाले पहले सदस्य बनें। पुजारा को टीम इंडिया के लिए तैयार करने के लिए उनके पिता ने काफी मेहनत की।

उनके पिता चाहते थे कि चेतेश्वर एक बेहतरीन टेस्ट बल्लेबाज बने, इसके लिए उन्होंने पुजारा को ट्रेनिंग देना शुरु कर दिया। चेतेश्वर कहते हैं कि उनके पहले गुरु उनके पिता ही रहे हैं। जिनसे उन्होंने क्रिकेट की बारीकियां सीखी हैं।

साल 2005 में पुजारा को गहरा सदमा लगा, जब उनकी मां इस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। तब पुजारा पुजारा भावनगर में मैच खेलने गए थे। मैच के बाद पुजारा जब वापस घर लौटे तो उनके ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था। मां के गुजर जाने के बाद पुजारा के पिता ने उनको मां की तरह पाला और एक बेहतरीन क्रिकेटर बनाया।

पुजारा ने भारत के लिए अभी तक 75 टेस्ट मैच खेले हैं और उसमें उन्होंने 49.48 की औसत से 5740 रन बनाए। पुजारा ने कई  बार अकेले अपने दम पर हाथ से निकलते मुकाबले को भारत के पक्ष में मोड़ा है। अपनी इस काबिलियत की वजह से ही वह टीम के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज हैं।

साल 2010 अक्तूबर का महीना था। ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर आई थी। सीरीज के दूसरे टेस्ट में एक युवा बल्लेबाज का डेब्यू हुआ। तब टेस्ट टीम में सचिन द्रविड़, लक्ष्मण जैसे धुरंधरों के करियर का आखिरी दौर शुरू हो चुका था।

इन सभी के बीच उस युवा बल्लेबाज को टेस्ट कैप मिली, जिसका घर का नाम चिंटू था। पहली पारी में चिंटू सिर्फ चार रन पर आउट हो गया, लेकिन जब दूसरी पारी में उतरा, तो यह ठान कर उतरा की कुछ भी विकेट पर जमना है।

उसने दूसरी पारी में 117 गेंदे खेली 72 रन बनाए और मुझे याद है कि उसकी इस पारी के अगले दिन एक अखबार के खेल पन्ने की हेडलाइन थी, ‘पहली परीक्षा में चिंटू पास’। बाकी इस खिलाड़ी के संघर्ष की कहानी। अपने पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के सामने डटकर खड़े रहने वाले इस खिलाड़ी का नाम है चेतेश्वर पुजारा। पुजारा आज 32 साल के हो गए।


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द्रविड़ के बाद खाली जगह को भरने के लिए भरपूर कोशिश

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