‘भविष्य का भारत’ पर संघ का दृष्टिकोण विषय पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि भारत में हम सब हिंदू वासी हैं, जाति पंथ, संप्रदाय, प्रांत और तमाम विविधताओं के बावजूद हम एक सभी को मिलकर भारत निर्माण करना है। जब-जब हिंदुत्व कमजोर हुआ तब-तब भारत का भूगोल बदला है इसलिए हमें विभिन्न संस्कृति और विविधाओं के बीच एक रहना है।
उन्होंने कहा संविधान कहता है कि हमें भावनात्मक एकीकरण लाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन भावना क्या है? वह भावना है-यह देश हमारा है, हम अपने महान पूर्वजों के वंशज हैं और हमें अपनी विविधता के बावजूद एक साथ रहना होगा। इसे ही हम हिंदुत्व कहते हैं।
भागवत ने कहा, जब आरएसएस के कार्यकर्ता कहते हैं कि यह देश हिंदुओं का है और 130 करोड़ लोग हिंदू हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी के धर्म, भाषा या जाति को बदलना चाहते हैं। हम संविधान से अलग कोई सत्ता केंद्र नहीं चाहते हैं क्योंकि हम इस पर विश्वास करते हैं।
उन्होंने कहा कि संघ को लेकर तमाम भ्रांतियां फैलाई जाती है। इन भ्रांति का समाधान तभी हो सकता है जब संघ को कोई नजदीक से समझें। संघ के पास कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है और ना ही किसी को अपने हिसाब से चलता है। अन्य लोग कहते हैं विविधता में एकता है जबकि हम एकता में विविधता मानते हैं। उन्होंने भविष्य के भारत पर संघ का दृष्टिकोण समझाते हुए कहा कि हमें जाति, प्रांत और क्षेत्रवाद को छोड़कर हिंदू होने पर गर्व करना होगा। क्योंकि जो भी भारत में पैदा हुआ उसके वंशज है। वह सब हिंदू ही होते हैं।
उन्होंने कहा कि सत्य पर आधारित विरोध करने पर सुधार होता है, लेकिन बिना सोचे समझे गुमराह किया जाना अनुचित है। उन्होंने संघ के दृष्टिकोण को विस्तार से समझाते हुए कहा कि भारत एक मजबूत देश है। दुनिया मैं उसकी पहचान बन चुकी है, इसे और मजबूत करना है।
भागवत ने साफ किया किसी राजनीति से जुड़ा नहीं लेकिन जब-जब कोई विचार होता है तो प्रकट किया जाता है। पिछले दोनों जनसंख्या नियंत्रण संबंधी मेरे बयान पर भ्रम फैलाया गया जबकि ऐसा नहीं कहा गया था। भागवत ने कहा, ‘कई जगह यह प्रकाशित किया गया था कि मैंने कहा कि सभी के दो बच्चे होने चाहिए, लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। मैंने कहा कि जनसंख्या समस्या के साथ-साथ संसाधन भी है, इसलिए इस संबंध में एक नीति का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि सरकार की नीति तय करेगी कि एक व्यक्ति के कितने बच्चे होने चाहिए।
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