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रुबाई

गझल लिखू, पर समा बया कर नही सकता

तेरे बारेमे सोच सकु, पर तुझे पा नही सकता


ढूंढता हु नजदीक तेरे, न होने की वजह 

इजहार ऐ इश्क़ मगर, कर नही सकता


मलमली अहसास ही काफी है, पास होनेका

मजा नही बिन तेरे, बारिश में भीग नही सकता


शुक्रगुजार हूं जिंदगी ने कभी तुझसे मिलाया

एतराज़ है मक़रूज़ हु कर्ज चुका नही सकता


तू मेरी रुबाई है, सिवा तेरे न-मुकम्मल जीना

चाहना चाहता हु, मगर तुझे खो नही सकता






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रुबाई

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