आश्विस मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. हर साल पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के दौरान पड़ने वाली इस एकादशी को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि यदि इस व्रत को रखकर विधिवत पूजा वगैरह करके पुण्य पूर्वजों को अर्पित किया जाए, तो उन्हें नर्क की यातनाओं से छुटकारा मिलता है और उनका उद्धार हो जाता है.
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इस बार इंदिरा एकादशी का व्रत 2 अक्टूबर दिन शनिवार को रखा जाएगा. यदि आपके घर में पितृ दोष लगा है, तो इस व्रत को जरूर रखना चाहिए और इससे अर्जित पुण्य अपने पूर्वजों को समर्पित कर देना चाहिए. मान्यता है कि व्रत के प्रभाव से जब पूर्वजों को सद्गति मिलती है, तो उनकी नाराजगी समाप्त हो जाती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. जिस घर में पितरों का आशीर्वाद होता है, वो घर खूब फलता-फूलता है. वहां किसी चीज की कमी नहीं रहती.
शुभ मुहूर्त जानें
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 01 अक्टूबर दिन शुक्रवार को रात 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होकर 02 अक्टूबर दिन शनिवार को रात 11 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. इंदिरा एकादशी का व्रत 02 अक्टूबर को रखा जाएगा. वहीं व्रत का पारण रविवार 03 अक्टूबर को किया जाएगा. पारण के लिए शुभ समय सुबह 06 बजकर 15 मिनट से सुबह 08 बजकर 37 मिनट तक है.
व्रत विधि जानें
व्रत शुरू होने के एक दिन पहले शाम के समय से इसके नियम शुरू हो जाते हैं. इस तरह 01 अक्टूबर को सूर्यास्त के बाद इस व्रत के नियम शुरू होंगे. शुक्रवार को सूर्यास्त से पहले भोजन करें और भगवान का मनन करें. फिर एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नाादि से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प करें.
इसके बाद भगवान शालीग्राम को तुलसी दल, धूप, दीप, पुष्प, फल और नैवेद्य आदि अर्पित कर विधिवत पूजन करें. अगर उस दिन श्राद्ध है तो पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करें. दिन में फलाहार करें और एकादशी की रात को जागकर भगवान का कीर्तन वगैरह करें. अगले दिन यानी द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करवाएं. उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें और सामर्थ्य के अनुसार दान और दक्षिणा दें. इसके बाद अपना व्रत खोलें.
जो व्रत नहीं कर पाते
जो लोग यह व्रत नहीं कर पा रहे हों उन्हें इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और इंदिरा एकादशी व्रत का पाठ करें. पितरों की मुक्ति के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें. इस दिन सात्विक भोजन करें और परनिंदा से बचें. शास्त्रों में बताया गया है कि जो सात्विक आचरण करते हैं उन्हें भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
एक समय राजा इन्द्रसेन ने सपने में अपने पिता को नरक की यातना भोगते देखा. पिता ने कहा कि मुझे नरक से मुक्ति दिलाने के उपाय करो. राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि के सुझाव पर आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया और इस व्रत से प्राप्त पुण्य को अपने पिता को दान कर दिया. इससे इंद्रसेन के पिता नरक से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक बैकुंठ में चले गए.
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