वट सावित्री व्रत कथा ( Bad Mavas Vrat Katha) – इस व्रत को हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या या पूर्णिमा तक करने का रिवाज है।
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जेठ के महीने में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बड़ मावस (Bad Mavas) मनाई जाती है। इस दिन बड़ के पेड़ की पूजा की जाती है।
वट सावित्री व्रत (Bad Mavas Puja Vidhi) पूजा की विधि इस प्रकार है:-
मौली, रोली, चावल, फूल, जल, गुड़, भीगे हुए चने, सूत मिलाकर बड़ पर लपेटते हैं और फेरी देते हैं। इस दिन बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहना जाता है और बड़ सायत अमावस (Bad Amavas Vrat Katha) की कहानी सुनते और सुनाते हैं।
पूजा के भीगे हुए चनों में रुपये रखकर बायना निकाला जाता है फिर सास के चरण स्पर्श करने के उपरान्त यह बायना उन्हें दे देते हैं।
नोट :- एक मान्यता के अनुसार यदि किसी की बहन, बेटी गांव में हो तो उसका भी सीदा निकालने के लिए भेजना चाहिए।
वट सावित्री व्रत की कहानी ( Bad Mavas Vrat Katha )
भद्र देश में अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था। जिसके सन्तान नहीं थी। उसने बड़े बड़े पंडितों और ज्योतिषियों को बुलाया और कहा कि मेरे सन्तान नहीं है इसलिए तुम कुछ ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरे यहां सन्तान उत्पन्न हो जाए।
पंडित गण बोले कि हे राजन! आपकी कुंडली में एक पुत्री योग है। जो कि 12 वर्ष की आयु में विधवा हो जाएगी।
राजा ने कहा कि क्या मेरा नाम नहीं रहेगा? बाद में खूब यज्ञ हवन इत्यादि कराए। पंडितों ने कहा कि उस लड़की से पार्वती और बड़ मावस (Bad Mavas Ki Puja) की पूजा कराना।
यज्ञ होम कराने से उसकी स्त्री गर्भवती हो गई। तो पंडितों ने उसकी जन्म पत्रिका देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की हो होगी उस दिन इसका विधवा हो जाने का योग है।
इसलिए इससे पार्वती जी और बड़ मावस की पूजा कराना। जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया गया।
सावित्री के सास ससुर अंधे थे। वह उनकी बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था।
सावित्री को मालूम था कि वह जिस दिन 12 वर्ष की होगी उस दिन उसके पति की मृत्यु निश्चित है।
जिस दिन वह 12 वर्ष की हुई उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली कि आज मैं भी आपके साथ चलूंगी।
सत्यवान बोला कि यदि तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अंधे माँ बाप की सेवा कौन करेगा। अगर वह कहेंगे तो तुझे ले चलूंगा। फिर वह अपने सास ससुर के पास गयी और जाकर बोली कि यदि आप कहें तो आज मैं जंगल देखने चली जाऊं।
उसके सास ससुर बोले कि बहुत अच्छी बात है बहू जा चली जा। जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी काटने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया।
उस पेड़ में सांप रहा करता था। उसने सत्यवान को डस लिया। वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी।
महादेव और पार्वती जी वहीं से होकर निकल रहे थे। उनकी नजर सावित्री पर पड़ी तो उन्होंने सावित्री से प्रश्न किया कि क्या बात है पुत्री रो क्यों रही है?
सावित्री ने रोते हुए उनके पैर पकड़ लिए और बोली कि हे भगवन् आप मेरे पति को जीवित कर दो।
वे बोले कि आज बड़ मावस (Bad Mavas) है तू उसकी पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जाएगा। फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी।
बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वह गहने हीरे और मोती के वन गए। इतने में धर्मराज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा।
सावित्री ने उसके पैर पकड़ लिए। धर्मराज बोला कि तू वरदान मांग। सावित्री ने कहा कि मेरे मां बाप के पुत्र नहीं है वे पुत्रवान हो जाए।
धर्मराज बोला कि सत्य वचन, हो जाएगा। फिर वे बोली, मेरे सास ससुर अंधे हैं उनकी आंखों में प्रकाश भर दो। धर्मराज ने कहा – तथास्तु!
पर सावित्री ने धर्मराज का पीछा नहीं छोड़ा। धर्मराज ने कहा कि अब तुझे और क्या चाहिए? मुझे 100 पुत्र हो जाए। धर्मराज ने कहा – तथास्तु!
फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे। तब सावित्री बोले कि हे महाराज! आप मेरे पति को ले जाएंगे तो पुत्र कहाँ से होंगे?
धर्मराज ने कहा कि हे सती! तेरा सुहाग तो नहीं था परंतु बड़ अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जाएगा।
और सारे में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कहते सुनते जेठ की अमावस्या आएगी जब बड़ के पेड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहनना।
बायना निकालना। हे महाराज! जैसे बड़ मावस (Bad Mavas) ने सावित्री को सुहाग दिया उसी प्रकार सबको देना। बड़ अमावस को वट सावित्री (Vat Savitri Vrat) और वट अमावस भी कहते हैं।
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