मोहिनी एकादशी व्रत कथा पूजन विधि (Mohini Ekadashi Vrat Katha) – मोहिनी एकादशी वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनायी जाती है। इसी दिन मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राम जी की पूजा की जाती है। मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi Vrat) के प्रभाव से निंदित कार्यों से छुटकारा मिल जाता है।
Mohini Ekadashi Vrat Katha In Hindi
01 | व्रत या त्योहार का मुख्य नाम | मोहिनी एकादशी |
02 | किस संप्रदाय का पर्व है? | हिन्दू धर्म |
03 | उद्देश्य | सर्व कल्याण तथा पाप मोचन के लिए। |
04 | तिथि | वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को। |
05 | मुख्य आराध्य देव | भगवान् विष्णुजी और श्री राम जी। |
मोहिनी एकादशी की पूजा कैसे करें या व्रत कैसे रखें । (Mohini Ekadashi Puja Vidhi)
- भगवान् की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कराकर श्वेत यानि सफेद वस्त्र पहनाए।
- इसके बाद प्रतिमा को किसी ऊंचे स्थान पर रखकर धूप-दीप से आरती उतारें।
- आरती करने के पश्चात् मधुर फलों से भोग लगाएं।
- भोग के बाद इन फलों को सभी जनों में प्रसाद स्वरूप बांट दें।
- ब्राह्मण को भोजन कराकर यथा शक्ति दान दक्षिणा भेंट देवे।
- रात्रि में भगवान् का कीर्तन करके प्रतिमा के सन्मुख ही शयन करें।
मोहिनी एकादशी व्रत की कहानी (Mohini Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
एक बार की बात है सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक एक नगर स्थित था। इस नगर में धृतनाभ नाम का राजा राज्य किया करता था।
इस राज्य में एक धनवान वैश्य निवास करता था। धर्मात्मा होने के साथ-साथ वह भगवान् विष्णु का अनन्य भक्त भी था।
उसके पांच पुत्र थे। पांचो पुत्रों में अग्रज पुत्र बड़ा महापापी था। जुआ खेलना, मद्यपान करना, परस्त्री गमन, वैश्याओं का संग आदि अनैतिक कर्म करने वाला था।
उसके अनैतिक कर्मों से क्षुब्ध होकर उसके माता पिता ने उसे अपने घर से निकाल दिया था साथ में उसे कुछ धन, वस्त्र और आभूषण भी दिए थे ताकि वह जीवन निर्वाह कर सके।
पुत्र ने माता पिता द्वारा दिए आभूषणों को बेचकर कुछ दिन तो काट लिए। आखिर में उसका समस्त धन समाप्त हो गया।
पेट भरने के लिए वह चोरी करने लगा। एक बार चोरी करते हुए वह पकड़ा गया और सिपाहियों ने उसे बंद कर दिया।
जब उसकी दण्ड अवधि समाप्त हो गई तो उसे नगर से भी निकाला दे दिया गया। अब वह जंगल में पशु पक्षियों को मारता और उनका भक्षण करने लगा।
एक दिन उसके हाथ एक भी शिकार न लगा। वह भूखा प्यासा वन गमन करता रहा और कौडिण्य मुनि के आश्रम जा पहुंचा।
वह मुनि जी के समक्ष हाथ जोड़कर बोला कि हे मुनि श्रेष्ठ मैं आपकी शरण में आया हूं। मैं प्रसिद्ध पातकी हूं। कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरा उद्धार हो सके।
मुनि श्रेष्ठ बोले कि तुम वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो। इसके प्रभाव से अनन्य जन्मों के तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे।
मुनि की वाणी सुनकर उस वैश्य पुत्र ने मोहिनी एकादशी का व्रत (Mohini Ekadashi Vrat) किया। वह पाप रहित होकर बैकुण्ठ धाम को चला गया।
मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi Vrat Katha) का माहात्म्य जो कोई भी सुनता या करता है उसे हज़ारों गौ दान का फल मिलता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
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