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पौष पूर्णिमा 2019: जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और स्‍नान व दान का महत्‍व

New Delhi: हिन्‍दू धर्म में सभी पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) का विशेष महत्‍व है। इस दिन के बाद से ही माघ महीने की शुरुआत के साथ ही स्‍नान का शुभारंभ होता है। मान्‍यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन व्रत करने और पवित्र नदियों में स्‍नान करने से मोक्ष की प्राप्‍ति होती है।

इस दिन (Paush Purnima) सूर्य देव और भगवान श्रीकृष्‍ण की पूजा का विधान है। पौष पूर्णिमा के दिन लोग व्रत तो करते ही हैं साथ ही ब्राहम्णों और जरूरतमंदों को दान भी देते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से विशेष पुण्‍य मिलता है और सूर्य भगवान सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

पौष पूर्णिमा कब है

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पौष पूर्णिमा हर साल जनवरी माह में आती है। हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार पौष मास के कृष्‍ण पक्ष के अंतिम दिन पौष पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार पौष पूर्णिमा 21 जनवरी को है। वैसे तो पौष पूर्णिमा 20 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 19 मिनट पर ही लग जाएगी लेकिन उदया तिथि के कारण पौष पूर्णिमा का स्‍नान 21 जनवरी को ही होगा। हालांकि कई लोग 20 जनवरी को पूर्णिमा का व्रत रखेंगे और 21 जनवरी को स्‍नान करेंगे।

पौष पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 20 जनवरी 2019 को दोपहर 02 बजकर 19 बज से पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 21 जनवरी 2019 को सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक

पौष पूर्णिमा का महत्‍व

सभी पूर्णिमाओं में पौष पूर्णिमा का अलग स्‍थान है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो लोग पूरे तन, मन और जतन से व्रत करते हैं, स्‍नान करते हैं और दूसरों को दान देते हैं वे जन्‍म और मरण के बंधन से मुक्‍त हो जाते हैं। यानी कि उन्‍हें मोक्ष की प्राप्‍ति हो जाती है। यह इकलौती ऐसी पूर्णिमा है जिसमें सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है, जबकि पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि होती है।

सुबह सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद रात के समय सत्‍यनारायण भगवान की कथा पढ़ी जाती है और चंद्रमा की पूजा की जाती है। इस दिन के बाद से ही माघ महीने की शुरुआत होती है। पौष पूर्णिमा के दिन ही शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है। जैन धम के अनुयायी इसी दिन से पुष्‍याभिषेक यात्रा की शुरुआत करते हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लोग इस दिन छेरता पर्व मनाते हैं।

पौष पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि

पौष पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्‍नान करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें। पवित्र नदी में स्‍नान का विशेष महत्‍व है। अगर किसी तीर्थ स्‍थान पर जाकर स्‍नान करना मुमकिन न हो तो नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्‍नान करना चाहिए। स्‍नान के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्‍य दें। अब घर के मंदिर में भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति, तस्‍वीर या कैलेंडर के आगे दीपक जलाएं।

अब श्रीकृष्‍ण को नैवेद्य और फल अर्पित करें। इसके बाद विधिवत् आरती उतारें। रात के समय भगवान सत्‍यनारायण की कथा पढ़ें, सुने या सुनाएं। कथा के बाद भगवान की आरती उतारें और चंद्रमा की पूजा करें। पौष पूर्णिमा के दिन दान करना अच्‍छा माना जाता है। यथासामर्थ्‍य किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें। दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी कपड़े देने की परंपरा है।

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