New Delhi: हनुमान भक्त शायद कम ही जानते होंगे की उनके और लंकापति रावण के भाई विभीषण के बीच स्नेह का एक खास रिश्ता था।
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सबसे पहली बात तो ये है कि हनुमान जी को वो हर प्राणी प्रिय है जो उनके आराध्य श्री राम का भक्त है। यही वजह है कि जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को नहीं जलाया था, क्योंकि वहां सीताजी रहती थीं। इसी तरह उन्होंने रावण के भाई विभीषण का भवन भी नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। साथ ही भगवान विष्णु के चिन्ह शंख, चक्र और गदा भी बने हुए थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि विभीषण के घर के ऊपर राम नाम अंकित था। उसी क्षण से विभीषण, हनुमान जी के प्रिय हो गए थे। यही कारण है कि जब विभीषण श्री राम की शरण में आये और सुग्रीव ने उनके प्रति आशंका प्रकट करते हुए दंड देने का सुझाव दिया, तो हनुमानजी ने उन्हें शिष्ट मान कर शरण में लेने का अनुरोध किया था और प्रभु राम ने उसे स्वीकार कर लिया था।
हनुमान जी ने कहा था कि जो एक बार विनीत भाव से उनकी शरण की याचना करता है और अपने आप को उन्हें समर्पित कर देता है तो वे उसे अभयदान प्रदान कर देते हैं। यह उनका व्रत है इसलिए विभीषण को शरण देना उनके लिए अनिवार्य है।
ऐसा भी कहा गया है कि इंद्र आदि देवताओं के बाद धरती पर सबसे पहले विभीषण ने ही हनुमानजी की स्तुति की थी। साथ ही विभीषण को भी हनुमानजी की तरह अमरत्व का वरदान प्राप्त है और वे आज भी जीवित माने जाते है। वीभीषण ने हनुमानजी की स्तुति के लिए अत्यंत कल्याणकारी स्तोत्र की रचना की है जिसे हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं।
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