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New Delhi: जब भगवान शिव ने क्रोध में ब्रह्मा का सिर काट दिया था, तो उनपर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया था। इससे मुक्ति के लिए भगवान शिव ने उज्जैन के कपालेश्वर मंदिर में पूजा की थी। इस मंदिर का 84 महादेवों में विशेष स्थान है।
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कथाओं के मुताबिक एक प्रसंग में भगवान शिव ने ब्राह्मणों को अपनी कहानी सुनाते हुए कपालेश्वर महादेव की महत्ता के बारे में बताया था। भगवान शिव ने बताया कि सृष्टि के निर्माण के दौरान ब्रह्मा ने एक स्त्री देवी का निर्माण किया, जिसका नाम शत्रुपा था, जिसे देखते ही ब्रह्मा उस पर मुग्ध हो गए।
शत्रुपा की सुंदरता को देखने के लिए ब्रह्मा उसका हर जगह पीछा करने लगे। उनसे बचने के लिए शत्रुपा यहां-वहां छुपती रही, लेकिन उसे देखने के लिए ब्रह्मा ने चारों दिशाओं में एक सिर विकसित कर लिया, इस तरह उनके पांच सिर हो गए।
यह देखकर भगवान क्रोधित हो गए और उन्होंने सबक सिखाने के लिए ब्रह्मा का चारों सिर के ऊपर विकसित हुआ पांचवा सिर काट दिया, जो उनके हाथ पर लग गया। लेकिन भगवान शिव पर इस हत्या का दोष लग गया। इससे मुक्ति के लिए उन्होंने कई तीर्थ स्थलों की यात्रा की, लेकिन ब्रह्म हत्या दूर नहीं हुई। तब आकाशवाणी ने बताया कि महाकाल वन में गजरूप के पास दिव्य लिंग है उसकी पूजा करो। तब वे वहां आए और उस दिव्य लिंग के दर्शन करने पर उनके हाथ से ब्रह्मा का कपाल नीचे पृथ्वी पर गिर गया। उस लिंग का नाम कपालेश्वर रखा गया।
कहानी सुनने के बाद ब्राह्मणों ने भूमि में दब चुके कपालेश्वर लिंग को वापस निकाला और उसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी, जिससे उनके सभी पाप नष्ट हो गए।
उज्जैन के बिलोटीपुरा में राजपूत धर्मशाला के पास स्थित इस मंदिर में पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्री कपालेश्वर के दर्शन से कठिन इच्छा तक पूरी होती है और पापों का नाश होता है।
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