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New Delhi: दानवीरता के लिए प्रसिद्ध कर्ण को महाभारत युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक माना जाता है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि महाभारत के कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर थे, जिसकी तारीफ भगवान श्रीकृष्ण ने भी की थी।
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कर्ण दानवीर, नैतिक और संयमशील व्यक्ति थे, ऐसे में चलिए जानते हैं ऐसा क्या हुआ की कृष्ण ने कर्ण की प्रशंसा की थी।
एक बार भगवान कृष्ण अपने प्रिय अर्जुन के साथ किसी गांव की ओर जा रहे थे, तभी वहां पर कुछ गांव वालों ने दोनों को रोक लिया और पूछा आखिर क्यों कर्ण को दानवीर कहा जाता है और अर्जुन को नहीं ये सुनकर कृष्ण और अर्जुन थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गए।
थोड़ी देर बाद कृष्ण ने दो पर्वत को सोने में बदल दिया, और अर्जुन से कहा कि वह इसका सारा सोना गाँव वालो के बीच में बांट दे। अर्जुन ने वैसा ही किया जैसा कृष्ण ने उन्हें कहा था, उन्होंने सारे गांववालों को बुलाया और ऐलान कर दिया कि वे पर्वत के पास इक्कट्ठा हो जाएं क्योंकि वे सोना बांटने जा रहे हैं।
गावं वाले अर्जुन की ये बात सुनकर उनके मुरीद हो गए और उनकी जयजयकार करने लगे। अर्जुन दो दिन और दो रातों तक उस पहाड़ को खोदते रहे लेकिन उसमें से सोना नहीं निकला। अर्जुन खुद हार स्वीकार नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने गांववालों से थोड़ी मोहलत मांगी।
अर्जुन को थका हुए देखकर कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और कहा कि सोने के पर्वत को इन गाँव वालों के बीच में बाट दें। कर्ण ने बिना देर किए गांव वालों के बीच गए और लोगों के बीच जाकर ऐलान कर दिया वो खुद ताकर पहाड़ में से अपने लिए सोना निकाल लें।
अर्जुन हैरान रह गए तब कृष्ण उनके पास आए और कहा, ‘तुम्हें सोने से मोह हो गया था और तुम गाँव वालो को उतना ही सोना दे रहे थे जितना तुम्हें लगता था कि उन्हें जरूरत है। इसलिए सोने को दान में कितना देना है इसका आकार तुम तय कर रहे थे। लेकिन कर्ण ने यह सब नहीं सोचा और दान देने के बाद कर्ण वहां से दूर हट गया। वह नहीं चाहता कि कोई उसकी प्रशंसा करे और ना उसे इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि कोई उसके पीछे उसके बारे में क्या बोलता है’।
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