New Delhi: भारतीय सेना को यूं ही दुनिया की सबसे उम्दा और सफल सेनाओं में नहीं गिना जाता। बहुत से ऐसे कारण हैं, जिनके चलते दुनिया का कोई भी देश भारतीय सेना से टक्कर लेने से डरता है।
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भारत अब तक पाकिस्तान के साथ तीन जंग लड़ चुका है और तीनों में पाकिस्तान हारा है। हालांकि, चीन के साथ 1962 की जंग भारत जरूर हार गया था, लेकिन आज भी चीन की सेना मेजर शैतान सिंह का नाम सुनकर कांप उठती है। ये वही मेजर शैतान सिंह हैं, जिन्होंने 1962 की जंग में मात्र 120 सैनिकों के साथ मिलकर चीन की महासेना को धूल चटा दी थी।
हालांकि इस महायुद्ध की कीमत देश को मेजर शैतान सिंह और उनके 114 साथियों के बलिदान से चुकानी पड़ी। जिंदा बचे 6 जवानों को चीन की सेना ने कैद कर लिया था, लेकिन रहस्यमयी तरीके से सभी सैनिक चीन की कैद से भाग निकले थे। मौजूदा वक्त में इस युद्ध के केवल 6 में से 4 सिपाही ही जीवित हैं।
दरअसल, साल 1962 को भारतीय सेना के लिटमस टेस्ट के तौर पर याद किया जाता था। भारत और चीन की सेनाएं आपस में भिड़ पड़ी थीं। भारतीय सेना न्यूनतम संसाधनों के बावजूद चीन की सेना से लड़ती रही। इस क्रम में भारत ने अपने कई जाबांज सैनिक और अफसर भी खोए। मेजर शैतान 1962 में महज 37 वर्ष के थे। उनकी कुर्बानी को आज भी देश याद करता है। भारत-चीन जंग में अपने उल्लेखनीय नेतृत्व की वजह से मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परम वीर चक्र से नवाजा गया।
चलिए आपको बताते हैं इस जंग की पूरी कहानी। 1962 की जंग में 13वीं कुमाऊं बटालियन की c कंपनी ने रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया, जिसकी अगुआई शैतान सिंह कर रहे थे। पहली खेप में 350 चीनी सैनिकों ने और दूसरी बार 400 सैनिकों ने हमला बोला लेकिन मेजर शैतान सिंह की अगुआई में भारतीय सेना ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया। वे गोलियों से घायल हो गए थे।
इसके बावजूद वे एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे थे। मेजर शैतान सिंह की सामरिक सूझबूझ और साहसिक नेतृत्व की वजह से इस मोर्चे पर भारतीय सेना ने 1000 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया। इस जंग में 123 में से 109 भारतीय सैनिक मारे गए. जो 14 जीवित रहे उनमें से 9 गंभीर रूप से जख्मी थे।
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