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New Delhi : जानवरों के मांस से निकाले गए ऊतकों (टिश्यू) का इस्तेमाल कर जल्द ही इंसान के जख्मों को भरा जा सकेगा। खासकर मधुमेह पीड़ितों के जख्म, जो बड़ी मुश्किल से भर पाते हैं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में चल रहे इस शोध में शुरुआती सफलता हाथ लगी है।
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प्रारंभिक प्रयोग के तहत भैंस के मांस से लिए गए ऊतकों से चूहे का जख्म सफलतापूर्वक भर गया। भविष्य में इंसानों के उपचार के लिए भी इस शोध से उम्मीद जग गई है।
ऐसे हुआ शोध :
इस तकनीक को डी-सेल्युराइजेशन नाम दिया गया है। शुरुआती शोध में भैंस के पेट के अंदरूनी हिस्से से निकाले गए मांस के एक टुकड़े को डी-सेल्युराइज्ड यानी कोशिका रहित बनाया गया। उसमें से डीएनए, आरएनए, कोशिका द्रव्य आदि को पृथक कर दिया गया।
इस प्रक्रिया के बाद मांस में सिर्फ कोशिका रहित रूमेन जाल (कोलेजन टिश्यू) शेष रह गया। चूहे के जख्म भरने के लिए इसी जाल का इस्तेमाल किया गया।
स्टेम सेल की भूमिका :
इस पूरी प्रक्रिया में स्टेम सेल की बड़ी भूमिका होती है। दूसरे शरीर से लिए गए कोलेजन टिश्यू को एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया गया। जिस शरीर का जख्म भरना है, उसकी कुछ स्टेम सेल एकत्र कर इस कोलेजन टिश्यू में डाली जाती हैं।
स्टेम सेल (कोशिका) की यह खूबी होती है कि वे प्रयोगशाला की बाह्य परिस्थितियों में भी पूर्ण कोशिकाओं का निर्माण शुरूकर देती हैं। शोध के परिणाम देखने के लिए प्रयोगशाला में चूहे के शरीर पर दो गुणा दो सेमी. का जख्म बनाया गया। इसके बाद स्टेम सेल युक्त कोलेजन टिश्यू की दो परत उसके जख्म पर रोपित कर ड्रेसिंग कर दी गई। करीब 28 दिन बाद चूहे का वह जख्म पूरी तरह भर गया।
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