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New Delhi : कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने की इच्छुक नहीं थी। अलबत्ता, जब उन्होंने ये फैसला लिया तो वह बोलीं कि उनके खीझने का अंदाज हमेशा याद आएगा। अपनी तीसरी किताब 'द कोलिशन ईयर्स' में पूर्व राष्ट्रपति ने यह जिक्र किया है।
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किताब में प्रणब दा ने उल्लेख किया है कि सोनिया गांधी उन्हें राष्ट्रपति बनाने की ख्वाहिशमंद नहीं थीं। वह उन्हें संगठन के बेहतरीन नेताओं में शुमार करती थीं। उन्हें लगता था कि प्रणब राष्ट्रपति बन गए तो संसद में कांग्रेस के पास उनके जैसी मारक क्षमता का नेता नहीं बचेगा। हालांकि वह यह भी मानती थीं कि देश के सर्वोच्च पद के लिए उनसे बेहतर कोई और नहीं था।
2007 व 2012 के घटनाक्रमों का हवाला देते हुए प्रणब ने किताब में लिखा कि 25 जून 2012 को सात रेसकोर्स रोड में कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक हुई थी। इसमें सोनिया व तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के अलावा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। इसमें उनके नाम को आखिरकार हरी झंडी दिखाई गई। इससे पहले 29 मई को कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने प्रणब को कहा था कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सोनिया उनके नाम पर सहमति दे सकती हैं, लेकिन वह तत्कालीन उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के नाम पर भी विचार कर रही हैं।
दो जून को सोनिया के साथ अपनी बैठक का जिक्र करते हुए पूर्व राष्ट्रपति लिखते हैं कि कांग्रेस अध्यक्षा का कहना था कि वह उन्हें सबसे उपयुक्त उम्मीदवार मानती हैं, लेकिन सरकार में उनकी जगह कौन लेगा? सोनिया ने प्रणब से ही पूछा था कि अपने स्थानापन्न के लिए क्या किसी का नाम सुझा सकते हैं? तब प्रणब ने कहा था कि जो फैसला सोनिया लेंगी वह उन्हें मंजूर होगा।
प्रणब का कहना है कि जब वह सोनिया से मिलकर लौटे तो उन्हें लग रहा था कि डॉ. मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जा सकता है और उन्हें प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जब सोनिया कौशांबी हिल्स में छुट्टी के लिए गईं तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि इस फेरबदल के लिए वह मन बना चुकी हैं। प्रणब लिखते हैं कि एक बार भाजपा ने संसद में गतिरोध पैदा कर रखा था, तब जवाबी हमले की जिम्मेदारी सोनिया ने उन्हें दी। मामला शांत हो गया तब सोनिया ने कहा कि इसी वजह से वह उन्हें राष्ट्रपति भवन नहीं भेजना चाहतीं।
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