Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

हिंदी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन’ थे राजेंद्र यादव,‘हंस’ के जरिए समाज के अनछुए मुद्दों को उठाया

New Delhi:

हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध पत्रिका हंस के संपादक के लए जाने जाते थे राजेंद्र यादव। राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त 1929 में हुआ। राजेंद्र यादव ने 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान के साथ पास की। खास बात यह थी की जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। राजेंद्र यादव उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना सहित साहित्य के हर भाग में बहुत अच्छी पकड़ बना ली थी।

हिन्दी पत्रिका ‘हंस‘ और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ के 25 साल बाद भी राजेंद्र यादव का नाम सबसे ईपर होता है। यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत् की पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें सबसे ऊपर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सबसे पहले राजेंद्र यादव का नाम सामने आता है। जब लोग साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व उसकी मूल्यों को भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा 1930 में प्रकाशित पत्रिका ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। 

अपने 25 साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर कहानी, कविता, लेख, संस्मरण, समीक्षा, लघुकथा, ग़ज़ल आदि सभी चीजों को एक साथ स्पष्ट करता है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के साथ प्रस्तुत राजेंद्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नज़र आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं। भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के अन्तर्गत साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। 

साहित्य में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है। कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेंद्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत् में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेंद्र यादव का योगदान अप्रतिम है।

राजेन्द्र यादव का नई दिल्ली में 28 अक्टूबर 2013 (मध्य रात्रि सोमवार) को निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे। राजेन्द्र यादव की अचानक तबियत खराब हो गई और उन्हें सांस लेने की तकलीफ होने लगी। उन्हें 11 बजे के बाद फौरन एक निजी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य का एक मजबूत स्तंभ थे। राजेन्द्र यादव को हिन्दी साहित्य में ‘नई कहानी’ के दौर को गढ़ने वालों में से एक माना जाता है। उन्होंने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ नई कहानी आंदोलन की शुरुआत की।

Share the post

हिंदी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन’ थे राजेंद्र यादव,‘हंस’ के जरिए समाज के अनछुए मुद्दों को उठाया

×

Subscribe to विराट कोहली ने शहीदों के नाम की जीत

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×