Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

श्रीकृष्ण के इन 5 दोस्तों में समाया जीवन का सार, कलियुग में मिलती है शिक्षा

.

New Delhi: सोचिए, आपने ऑफिस से अचानक छुट्टी ले ली और अगले दिन आपसे ना आने का कारण पूछा गया। ऐसे में आप कहते हैं कि आपके किसी दोस्त की तबियत खराब थी, उसे अस्पताल लेकर जाना था।

इस वजह को सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है क्योंकि जिस दुनिया में हम रहते हैं वहां खून के रिश्तों या फिर पति-पत्नी के रिश्तों को ही करीबी माना जाता है। जबकि दोस्ती के रिश्ते जो गंभीरता से नहीं लेता। आमतौर पर दोस्ती के रिश्ते को जिम्मेदारी से जोड़कर नहीं देखा जाता है।

अब जरा आधुनिक युग से हटकर महाभारत के उस पात्र को याद कीजिए, जिसने युद्ध में हिस्सा ना लेकर भी सत्य को विजय कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से दोस्ती के एक नए मायने मिलते हैं जिसे समझकर आप दोस्ती को समझ सकते हैं।

अर्जुन

अर्जुन और श्रीकृष्ण से जुड़े कई प्रसंग महाभारत में मिलते हैं। कृष्ण कुंती को बुआ कहते थे लेकिन उन्होंने हमेशा ही अर्जुन को मित्र माना। कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बनकर उन्हें सच्चाई पर चलते हुए न्याययुद्ध का पाठ पढ़ाया जिसकी वजह से अर्जुन में युद्ध करने का साहस आया। उन्होंने हर विपदा में अर्जुन का साथ दिया यानि अपने मित्र को प्रोत्साहित करना चाहिए।

द्रौपदी

महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण के निंदनीय प्रसंग के बारे में तो सभी जानते होंगे। इस दौरान जब सभी महायोद्धा मौन हो गए थे तो श्रीकृष्ण ने वहां उपस्थित न होते हुए भी द्रौपदी का चीरहरण होने से बचा लिया। इस घटना से हम सीख सकते हैं कि विपदा में कभी भी किसी तरह का बहाना न बनाते हुए अपने मित्र की सहायता करनी चाहिए।

अक्रूर

अक्रूर का सम्बध में श्रीकृष्ण के चाचा लगते थे लेकिन उन्हें मित्र मानते थे। दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था। अक्रूर और श्रीकृष्ण की मित्रता से हम ये सीख सकते हैं कि खून के रिश्तों में भी एक प्रकार की मित्रता का तत्व होता है यदि मन को साफ रखा जाए तो पारिवारिक सम्बधों में हुई दोस्ती समय के साथ काफी मजबूत होती है। रक्त सम्बधों में हुई मित्रता को अक्रूर और कृष्ण की दोस्ती से समझा जा सकता है।

सात्यकि

नारायणी सेना की कमान सात्यकि के हाथ में थी। अर्जुन से सात्यकि ने धनुष चलाना सीखा था। जब कृष्ण जी पांडवों के शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए तब अपने साथ केवल सात्यकि को ले गए थे। कौरवों की सभा में घुसने के पहले उन्होंने सात्यकि से कहा कि यदि युद्धस्थल पर मुझे कुछ हो जाए, तो तुम्हें पूरे मन से दुर्योधन की मदद करनी होगी क्योंकि नारायणी सेना तुम्हारे नेतृत्व में रहेगी। सात्यकि सदैव श्रीकृष्ण के साथ रहते थे और उनपर पूरा विश्वास करते थे। मित्रता में विश्वास के सिंद्धात को इनकी मित्रता से समझा जा सकता है।

सुदामा

जब-जब मित्रता की बात होती है श्रीकृष्ण और सुदामा का नाम जरूर लिया जाता है। एक प्रसंग में जब गरीब सुदामा श्रीकृष्ण के पास आर्थिक सहायता मांगने जाते हैं तो श्रीकृष्ण उन्हें मना नहीं करते बल्कि समृद्ध और संपन्न कर देते हैं। इसके अलावा सुदामा द्वारा उपहार स्वरूप लाए गए चावल के दानों को प्रेमपूर्वक ग्रहण करते हैं। इनकी मित्रता से हम कई बातें सीख सकते हैं।



This post first appeared on विराट कोहली ने शहीदों के नाम की जीत, please read the originial post: here

Share the post

श्रीकृष्ण के इन 5 दोस्तों में समाया जीवन का सार, कलियुग में मिलती है शिक्षा

×

Subscribe to विराट कोहली ने शहीदों के नाम की जीत

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×