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New Delhi: महान साम्राज्य और शक्तिशाली देश अक्सर अति आत्मविश्वास या गर्व की अनुभूति में डूबे होने के कारण बर्बाद हो जाते हैं। शीर्ष पर होने का अहसास कई बार संघर्ष में बेरहमी से कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
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शक्तिशाली अमेरिकियों ने वियतनाम युद्ध में यह देखा था और नाजी जर्मनी ने यूरोप में सब कुछ हड़पने की कोशिश में सबसे अपमानजनक हार का सामना किया।
इतिहास में ऐसे कई मामले हैं और वर्तमान में चीन भी इसी दिशा में चल रहा है। दो साल पहले चीन की सिर्फ एक ही समस्या थी और वह आर्थिक थी। चीन का जापान और अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। चीन ने खराब भू-राजनैतिक विवादों का गलत तरीके से प्रबंधन किया है। चीन के यह विवाद कुछ ऐसे शक्तिशाली देशों के साथ हैं, जो चीन के हितों को चोट पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।
चीन ने साल 1962 में भारत की कमजोरी और जवाहरलाल नेहरू-कृष्ण मेनन जोड़ी की बेवकूफी भरी फॉरवर्ड पॉलिसी ब्रिकमेनशिप का फायदा उठाते हुए भारत पर हमला कर दिया था। डोकलाम को लेकर भारत और चीन एक बार फिर आमने सामने हैं, लेकिन अब भारत 1962 के जैसी कमजोर स्थिति में नहीं हैं। चीन को समझना चाहिए कि दुनिया 1962 से अब तक काफी बदल चुकी है।
संभव है कि चीन को बिना अधिक ताकत लगाए कोई एक देश युद्ध में हरा नहीं सके। मगर, कई देश एक साथ मिलकर चीन की महत्वाकांक्षाओं को तोड़ सकते हैं। सैन्य विशेषज्ञ और लेखक भारत की सामरिक रूप से ग्राउंड एडवांटेज की स्थिति में है। भारत पीछे नहीं हट रहा है, तो चीन युद्ध कर सकता है। मगर, 1962 की तुलना में भारत अब बेहतर रूप से तैयार है। अगर, युद्ध नहीं होता है, तो भी भारत चीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर चीन की कमर तोड़ सकता है।
चीन के लिए ट्रंप ज्यादा बड़ा खतरा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन को चेतावनी दी है कि वह उसके व्यापार पर प्रतिबंध लगा सकता है। हाल ही में चीन-अमेरिका ट्रेड मीट खुशनुमा माहौल में नहीं हुई थी और चीनी बैंक व व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाया गया था। अगले कदम के रूप में अमेरिका में चीनी निवेश पर नजर रखी जा सकती है।
भारत, अमेरिका और जापान एक साथ मिलकर या अलग-अलग चीन की महत्वाकांक्षाओं को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। यह व्यापार के माध्यम से, संयुक्त सैन्य या राजनयिक कोशिशों के जरिए किया जा सकता है।
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