NEW DELHI:
डोकलाम में चीनी सेनाओं के भूटान के क्षेत्र में अतिक्रमण के प्रयास और भारत को युद्ध की धमकी देने के मामले में जापान के खुले विरोध से ड्रैगन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भारत में जापान के राजदूत केन्जी हिरामात्सू ने पिछले दिनों कहा था कि यह क्षेत्र विवादित है और जापान समझता है कि भारत इस विवाद में क्यों उलझा है। जापान के राजनयिक ने चीन पर आरोप लगाया कि वह हर जगह यथास्थिति को बदलने के प्रयास करता है।
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सेनकाकू द्वीप में भी डोकलाम जैसी ही स्थिति का सामना कर रहे जापान ने कहा कि इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चीन हर जगह स्थिति को बदलने की कोशिशों में लगा रहता है। ऐसे में जापान का यह बयान चीन को रणनीतिक तौर पर कमजोर करेगा। वह एक तरफ सेनकाकू में जापान के साथ उलझा है तो डोकलाम में भारत के साथ तनाव बना हुआ है।
चीन और जापान के बीच सेनकाकू द्वीप पर दावे को लेकर 2012 से 2014 के दौरान खासा तनाव देखने को मिला था। कई बार युद्ध की धमकी दे चुके चीन का अब भी इस क्षेत्र पर दावा है। भारत के लिहाज से जापान की यह प्रतिक्रिया खासा महत्व रखती है। वह पहला ऐसा देश है, जिसने डोकलाम के मुद्दे पर खुले तौर पर भारत का सपॉर्ट किया है। जापानी राजनयिक का यह बयान भारत और इस द्वीपीय देश के मजबूत होते रणनीतिक संबंधों का भी परिचायक है।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे सितंबर के मध्य में भारत का दौरा पर सालाना समिट में हिस्सा लेने के लिए आएंगे। उनका यह दौरा एशियाई क्षेत्र में दोनों देशों की रणनीतिक दोस्ती को भी आगे बढ़ाना वाला साबित होगा। दोनों देशों के अधिकारियों के मुताबिक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता काफी हद तक भारत और जापान के संबंधों पर निर्भर करती है। खासतौर पर डोकलाम के मुद्दे पर भारत को मिलने वाला जापान का समर्थन एशिया में शक्ति संतुलन भी स्थापित करेगा।
2012-14 के दौरान जापान से तनाव के अलावा अब भी चीन इस द्वीप श्रृंखला पर अपना दावा जताता रहता है। इसी साल मई में चीन की ओर से सेनकाकू द्वीप में कोस्टगार्ड जहाजों और ड्रोन एयरक्राफ्ट को भेजे जाने के बाद जापान ने अचानक युद्धपोत भेजे थे। इस मौके पर जापान के रक्षा मंत्री तोमोमी इनाडा ने कहा था, 'चीन एकतरफा ढंग से परिस्थितियों को बिगाड़ने का काम कर रहा है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।'
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