NEW DELHI: सालों तक सीमा पर देश की सेवा करने वाले सैनिकों के अंदर रिटायर होने के बाद भी देशभक्ति का वही जुनून बरकरार रहता है।
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शायद यही वजह है कि करीब चार साल पहले एक सड़क हादसे में अपने कमर से निचले हिस्से पर लकवा मारे जाने के बावजूद मेजर साहिल पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गए हैं। मेजर साहिल गौतम कहते हैं कि मैंने कभी मन में नेगेटिव सोच नहीं आने दी, शायद इसी वजह से आज देश का यह वीर सैनिक तीरंदाजी में अचूक निशाने लगाकर देश का मान बढ़ा रहा है।
मेजर साहिल बताते हैं कि नवंबर 2013 की बात है, जब मेरी जिंदगी में तूफान आ गया था। एक सड़क हादसे में कमर के नीचे के पूरे हिस्से में लकवा मार गया। मेजर साहिल करीब 3 साल तक बेड पर रहे, लेकिन मन में कभी नेगेटिव सोच नहीं आने दी। वह अपनी क्षमता का इस्तेमाल करना चाहते थे। बहुत जल्द उन्होंने फैसला कर लिया कि किसी खेल से जुड़ जाएंगे। पिछले साल नवंबर में उन्होंने तीरंदाजी को चुन लिया। वह पुणे में थे, जहां आर्मी का स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट भी था।
साहिल बताते हैं कि वहां बड़े तीरंदाज ट्रेनिंग देते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं भी यह सीखना चाहता हूं। मुझे मौका मिल गया। फिर मैं सुबह में तीन घंटे और शाम में दो घंटे की प्रैक्टिस करने लगा। तीरंदाजी में एकाग्रता के महत्व को देखते हुए वह एक घंटे मेडिटेशन और व्यायाम पर भी जुट गए। महज आठ महीने में उन्हें यह अहसास हो गया कि उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। हैदराबाद में 14 से 16 जुलाई के बीच हुई नैशनल पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में मेजर साहिल ने शनिवार को पहले ब्रॉन्ज, फिर रविवार को सिल्वर मेडल जीत लिया।
शनिवार को रैंकिंग राउंड में उन्हें जो ब्रॉन्ज मेडल जीता, उसमें महज एक अंक से वह सिल्वर मेडल से दूर रह गए थे। जिन खिलाड़ियों ने गोल्ड और सिल्वर मेडल जीता, वे पहले के चैंपियन रह चुके थे। लेकिन मेजर गौतम ने एक दिन बाद ही सिल्वर मेडल भी जीत कर दिखा दिया। रविवार को 50 मीटर के कंपाउंड आर्चरी इवेंट में के एलिमिनेशन राउंड में मेजर साहिल ने महज 2 अंकों से गोल्ड से दूर रह गए। मेजर साहिल का कहना है कि अब मैं सितंबर में चाइना के पेइचिंग में वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में हिस्सा लेने की तैयारी करूंगा।
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