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International Booker Prize: जानें कौन हैं गीतांजलि श्री? क्या है उनकी 'रेत समाधि'

International Booker Prize : भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री (Indian Writer Geetanjali Shree) के उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड (Tomb Of Sand Novel) को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (International Booker Prize) मिला है। बता दें, यह उपन्यास हिंदी में 'रेत समाधि' (Ret Samadhi) नाम से छपा है। इसे अमेरिकन ट्रांसलेटर डेजी रॉकवेल (American Translator Daisy Rockwell) ने अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया। जिसका नाम 'Tomb Of Sand' रखा।

आपको बता दें, यह दुनिया की उन 13 प्रतिष्ठित किताबों में शामिल हो गई है, जिन्हें 'इंटरनेशनल बुकर प्राइज' मिला है। हर भारतीय को इस बात की खुशी है कि गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) ये पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी भाषा (Hindi Language) की लेखिका हैं। लंदन में गुरुवार गीतांजलि श्री को इस किताब के लिए सम्मानित किया गया। गीतांजलि श्री को इनाम में पांच हजार पाउंड की राशि (50000 Pounds Winning Prize) मिली। गीतांजलि इस राशि को ट्रांसलेटर डेजी रॉकवेल के साथ साझा करेंगी।  

क्या है गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि'? 

गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' के इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2022 मिलने की घोषणा के बाद से ही खासकर हिंदी पाठकों के मन में जिज्ञासा हुई। पाठक ये जानने को आतुर दिखे कि आखिर गीतांजलि श्री कौन हैं और उनके उपन्यास में ऐसा क्या है? तो आपको बता दें, कि गीतांजलि श्री की किताब मूल रूप से हिंदी में लिखा गया है। उनका यह उपन्यास 'स्त्री चेतना' की कहानी है। इसमें सरहदों को लांघता हुआ कथानक है। लेखन की दुनिया के जानकार मानते हैं कि सरहदों के पार जाती कहानियां इंसानी अंतर्द्वद्व और उसके संघर्ष की हदों को तोड़ती है। यह एक ऐसे आशावादी मुकाम पर पहुंचती है, जहां पात्रों की निराशा हवा हो जाती है।


कौन हैं गीतांजलि श्री? 

जबसे बुकर पुरस्कार के लिए गीतांजलि श्री के नाम की घोषणा हुई है, सबसे ज्यादा यही सर्च किया जा रहा है कि वो हैं कौन? जाहिर है उनके बारे में हर किसी को पता नहीं है। तो आपको बता दें कि, गीतांजलि श्री के पति का नाम सुधीर चंद्र है। सुधीर जाने-माने इतिहासकार हैं। उन्होंने 'गांधी दृष्टि' पर उल्लेखनीय काम किया है। इन दिनों पति पत्नी गुड़गांव में रहते हैं। उनका घर दिल्ली में भी है।

और कौन सी उपन्यास लिखी है?  

हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री की पुरस्कृत उपन्यास 'रेत समाधि' उनकी पांचवीं कृति है। इससे पहले उनके चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित' और 'खाली जगह' भी लिखी हैं। रिपोर्ट्स से पता चलता है गीतांजलि श्री ने कई कहानियां भी लिखी हैं। ये कहानियां 'वैराग्य' और 'यहां हाथी रहते थे' जैसे संग्रह में पढ़ने को मिलते हैं। आलोचक कहते हैं गीतांजलि श्री की किस्सागोई लाजवाब है। उनके लेखन में मार्मिकता और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का जादू देखने को मिलता है।

रेत समाधि में क्या ? 

बुकर प्राइज से सम्मानित 'रेत समाधि' में डिप्रेशन से जूझ रही एक आम भारतीय परिवार की स्त्री की कहानी है। उपन्यास में बताया गया है कि डिप्रेशन में कैसे वो बॉर्डर पार कर पाकिस्तान जाना तय कर लेती है। फिर, कैसे वो अपने इस डिप्रेशन से बाहर निकलती है। इसी को गीतांजलि श्री ने रोमांचक तरीके से लिखा है। आलोचक तो ये भी कहते हैं, कि यह उपन्यास लेखन की कई बनी-बनाई सरहदें ध्वस्त करती दिखती हैं।

दरअसल, गीतांजलि ने इस उपन्यास को रिश्तों और संघर्ष के बारीक धागों से बुनी है। कहते हैं उस एहसास को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। लफ्जों में बताना मुश्किल है। 


कथानक क्या है? 

इस उपन्यास के केंद्र में 80 वर्षीय वृद्ध महिला हैं। जिसके पति की मौत हो चुकी है। इस मौत के बाद वृद्ध महिला डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। यह डिप्रेशन इतना तेज है कि वो अपने कमरे से भी निकलना नहीं चाहतीं। जबकि उनका परिवार उनसे बाहर निकलने की गुहार करता है। मनाता है। बेटा अपने ढंग से और बेटी अपने तरीके से मनाते हैं। बावजूद वो वृद्ध खुद को ऐसे आवरण में बंद कर रखीं हैं जिससे वो बाहर आने से घबराती हैं। उपन्यास में परिवार के साथ वृद्ध महिला के संवादों में रिश्तों की परतें खुलती हैं। हर पात्र की मनोदशा रेशे की भांति दिखने लगती हैं। पाठक का संबंधों की अजीब दुनिया से सामना होता है। ऐसे ही समय में अचानक वृद्ध महिला को पाकिस्तान जाने की सूझती है। वहां उन्हें किसी रोजी नाम की स्त्री का कोई सामान सौंपना है। यही इसकी कहानी है। पूरी कहानी के लिए तो आपको उपन्यास खुद पढ़ना होगा। 

चमकती हुई भाषा

इस उपन्यास से गुजरते हुए पाठकों को महसूस होता है कि कैसे यह सामान्य सी महिला की कहानी सरहदों के पार जाती है। और कैसे मानव संबंधों की जटिलता का मनोवैज्ञानिक आख्यान भी है। गीतांजलि श्री के पास एक चमकती हुई भाषा है। उनके लेखन में छोटे-छोटे वाक्य हैं। उपन्यास में अधूरे छोड़े गए वाक्य भी संदर्भों को पूरी तरह खोलकर रख देते हैं।

अनुवादक की भाषा ने मंत्रमुग्ध कर दिया 

उतनी ही तारीफ अंग्रेजी उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' की अनुवादक डेजी रॉकवेल की भी होनी चाहिए। बुकर पुरस्कार के जजों के पैनल की अध्यक्षता करने वाले अनुवादक फ्रैंक वाईन ने कहा, कि जजों ने बहुत भावुक बहस के बाद बहुमत से 'टॉम्ब ऑफ सैंड' को इस पुरस्कार के लिए चुना। उन्होंने कहा, कि ये भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है। 



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