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LTTE संस्थापक और लीडर प्रभाकरण | Prabhakaran History

Prabhakaran – थिरूवेंकदम वेलुपिल्लई प्रभाकरण, ‘तमिल ईलम के मुक्ति बाघ (LTTE – लिबरेशन टाइगर ऑफ़ तमिल ईलम)’ संस्था के संस्थापक और लीडर थे। इस संस्था ने उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में आज़ाद तमिल की मांग की थी।

LTTE संस्थापक और लीडर प्रभाकरण – Prabhakaran History

वेलुपिल्लई प्रभाकरण का जन्म 26 नवम्बर 1954 को उत्तरी तट के वाल्वेत्तिठुरै गाँव में हुआ था। वे अपने पिता थिरूवेंकदम वेलुपिल्लई और माता वल्लिपुरम पार्वती की चौथी संतान के रूप में जन्मे थे। थिरूवेंकदम वेलुपिल्लई सीलोन सरकार के जिला भूमि अधिकारी थे। जब उन्होंने सरकार द्वारा तमिल लोगो के प्रति किया जा रहा भेदभाव देखा तो वे तुरंत TIP की विद्यार्थी सेना में शामिल हो गए।

इसके बाद 1972 में प्रभाकरण ने तमिल न्यू टाइगर्स (TNT) की स्थापना की और देश को स्वस्थ राजनितिक दिशा प्रदान करने में उनकी अहम भूमिका भी रही है। एक ऐसे देश में उन्होंने श्री लंकाई तमिल जनता की सेवा की जहाँ स्थानिक श्री लंकाई लोग उनका विरोध कर रहे थे।

प्रभाकरण का निजी जिंदगी – Prabhakaran Personal Life:

1 अक्टूबर 1984 को मथिवाथानी एराम्बू से प्रभाकरण ने शादी की थी। सैन्य प्रवक्ता उदय नानायक्करा ने मई 2009 में बताया की, उनके बाकी के पारिवारिक सदस्य कहा है? और कहाँ रहते है? इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नही है।

वेलुपिल्लई प्रभाकरण के माता-पिता अपनी उम्र के 70 वे साल में वावुनिया गाँव के पास वाले मेनिक फार्म कैंप में मिले, जहाँ विस्थापित लोग रहते थे। इनके बाद श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजानिक आश्वासन भी जारी किया की उनसे किसी तरह की कोई पूछताछ नही की जाएगी और ना ही उन्हें कोई क्षति पहुचाई जाएँगी। इसके बाद जनवरी 2010 में मी. वेल्लुपिल्लई की मृत्यु तक उन्हें श्रीलंकाई सेना ने अपने कब्जे में रखा था। प्रभाकरण को एक बहन भी है, जिसका नाम विनोदिन राजेंदरण है।

प्रभाकरण शुरू से ही नेपोलियन और एलेग्जेंडर दी ग्रेट की विचारधारा से प्रभावित थे। साथ ही भारतीय क्रांतिकारी सुभास चंद्र बोस और भगत सिंह का उनपर काफी प्रभाव पड़ा, जो ब्रिटिश साम्राज्य का विरोध कर रहे थे। प्रभाकरण ने कभी भी शुरू से ही व्यवस्थित दर्शनशास्त्र विकसित नही किया, लेकिन बाद में उन्होंने अपने लक्ष्य के बारे में बताते हुए कहा की, “क्रांतिकारी समाजवाद और समतावादी समाज का निर्माण करना” ही उनका लक्ष्य है।

बाद में युवावस्था में ही वे तमिल राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हो गए और शामिल होने के कुछ समय बाद ही उन्होंने खुद को एक मुख्य नेता के रूप में स्थापित किया और LTTE की स्थापना की। उनकी पार्टी शुरू से ही प्रभाकरण की विचारधारा पर चलती थी। जब-कभी भी हम प्रभाकरण की विचारधारा और दर्शनशास्त्र की बात करते है तो हमें निचे दी हुई बाते अक्सर याद आती है।

श्रीलंकाई तमिल राष्ट्रवादी :

प्रभाकरण की प्रेरणा और दिशा का स्त्रोत श्रीलंकाई तमिल राष्ट्रवादी ही थे। उनका सर्वोत्तम आदर्श तमिल ईलम को U.N. चार्टर पर वैश्विक पहचान और राजनितिक स्वतंत्रता दिलाना चाहते थे। 2003 में शांति वार्ता के समय LTTE ने अंतरिम स्वशासी प्राधिकरण की स्थापना करने का प्रस्ताव भी रखा।

भूतपूर्व तमिल राजनेता धर्मलिंगम सिथाद्थन प्रभाकरण के बारे में टिपण्णी करते हुए कहा था की, “तमिल ईलम के प्रति उनकी निष्ठा निश्चित ही निर्विवाद है, श्रीलंका में वही एकमात्र ऐसे व्यक्ति है, जो इस बार का निर्णय ले सकते है की युद्ध होना चाहिए या शांति बरक़रार रहनी चाहिए।” उनकी बहादुरी और व्यवस्थित शासन प्रबंधता के लिए प्रभाकरण को “करिकलन” के नाम से भी जाना जाता है।

LTTE का सैन्यकरण :

प्रभाकरण ने स्पष्ट रूप से कहा था की शस्त्र संघर्ष ही असममित युद्ध करने का एक तरीका है, जिसकी एक तरफ श्रीलंकाई सरकार की सशस्त्र सेना होंगी और दूसरी तरफ निहत्थे लोग। थिलीपन घटना के बाद जब उन्होंने जाना की अहिंसा अप्रभावित और अप्रचलित है, तभी वे सेना में शामिल हो गए थे। थिलीपन एक कर्नल रैंक का अधिकारी था। जिसने 15 सितम्बर 1987 को IPKF की हत्याएं रोकने के लिए मृत्यु तक उपवास करने का निर्णय लिया और 26 सितम्बर तक उन्होंने पानी और अन्न का त्याग किया। इसके बाद हजारो तमिल लोगो के सामने ही उनकी मृत्यु हो गयी, जो उनके साथ वहाँ उपवास करने आए थे। प्रभाकरण ने शांतिपूर्वक एक मजबूत अभियान की नीव रखी थी, जिसका उल्लेख हमें इतिहास में कही दिखाई नही देता।

प्रभाकरण बड़ी चतुराई से आत्मघाती हमलावर इकाई का उपयोग करते और उनकी भर्ती करवाते थे। उनके सेनानियों के साधारणतः कोई कैदी नही था और उनके सेनानी हमला करने के लिए कुख्यात थे। इंटरपोल ने उनके बारे में कहते हुए बताया था की, “वह बहुत सतर्क है, जो छिपने और अत्याधुनिक हथियारों और विस्फोटको से निपटने में सक्षम है।”

मृत्यु :
2008-2009 में SLA उत्तरी आक्रामक के अंतिम दिनों में LTTE के आयोजित क्षेत्र में प्रभाकरण और उनके मुख्य नेताओ पर श्रीलंकाई सेना ने आक्रमण किया। अंतिम दिनों में श्रीलंकाई सेना और LTTE के बीच भयंकर लड़ाई देखने मिली थी। 18 मई 2009 को 3:00 AM के आस-पास प्रभाकरण का बेटा चार्ल्स एंथोनी सेना की सुरक्षा को तोड़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह असफल रहा।

दुसरे 100 LTTE कार्यकर्ताओ के साथ ही प्रभाकरण के बेटे की भी मृत्यु हो गयी थी। सेना को भी उनके कब्जे में 12 मिलियन रुपये मिले थे। साथ ही दोपहर पर यह खबर बार आ चुकी थी की संघर्ष क्षेत्र से बचते हुए एम्बुलेंस की तरफ भागते समय राकेट अटैक से उनकी मृत्यु हो गयी और उनका शरीर भी पूरा जल चूका है। लेकिन कुछ ही समय बाद यह अफवाह गलत साबित हो चुकी थी। 18 मई की शाम को भी नंदिकदल खादी के पास उनमे झड़प हुई। जहाँ LTTE की टीम में प्रभाकरण के सबसे वफादार अंगरक्षक जमा हुआ थे और प्रभाकरण मैन्ग्रोव द्वीप के माध्यम से चुपके से निकल जाना चाहते थे।

कथित तौर पर ऐसा कहा जाता है की उनके एक अंगरक्षक के पास पेट्रोल पहले से ही था, ताकि यही उन्हें कुछ हो जाता है तो वह टाइगर्स के नेता को अंतिम विदाई दे सके। इससे उनके दुश्मन उनके शरीर पर अपना अधिकार नही जमा पाएंगे। उसी शाम 3:00 PM से 6:30 PM तक कर्नल जी.व्ही. रविप्रिया के नेतृत्व में इस ऑपरेशन को अंतिम रूप दिया गया। लेकिन उस दिन वे LTTE के अंतिम समूह को नही मार पाए। अगले ही दिन सुबह 7:30 AM बजे इस भयंकर ऑपरेशन की शुरुवात फिर से हो गयी।

लेकिन इस बार प्रभाकरण के नेतृत्व में ही LTTE के सेनानियों ने उनका जमकर सामना किया। 19 मई 2009 को यह लड़ाई लगभग 9:30 AM तक चली। यह लड़ाई LTTE के सारे सदस्य मारे जाने के बाद ही रुकी। इसके बाद सेना ने शवो को जमा करना शुरू किया। उसी समय श्रीलंकाई सेना से जुड़े सार्जेंट मुथु बाँदा ने कमांडर कर्नल जी.व्ही. रविप्रिया को बताया की शवो में वेलुपिल्लई प्रभाकरण जैसा दिखने वाला एक शव भी मिला है।

इसके बाद जो शव मैन्ग्रोव पर तैर रहा था, उसे तट पर लाया गया और पूरी तरह से जाँच करने के बाद पाया गया की वह शव प्रभाकरण का ही था। जहाँ उनके शरीर से एक राइफल, सॅटॅलाइट फ़ोन, कुछ दवाइयाँ और 2 पिस्तौल बरामाद हुई थी।

12:15 PM को आर्मी कमांडर सारथ फोंसेका ने टीवी पर अधिकारिक रूप से प्रभाकरण के मृत्यु की घोषणा की थी। 1:00 PM के आस-पास पहली बाद उनके पार्थिव शरीर को स्वर्णवाहिनी को दिखाया गया। उनके शव की पहचान उनके भूतपूर्व विश्वासपात्र करुण अम्मान ने की थी और इससे पहले श्रीलंकाई सेना द्वारा मारे गए उनके बेटे के DNA की टेस्टिंग करने के बाद तो यह बात पक्की हो चुकी थी के वह शव प्रभाकरण का ही था। सूत्रों के अनुसार यह भी पता चला है की उनकी मृत्यु सिर पर गंभीर चोट लगने की वजह से हुई, जबकि कुछ जानकारों के अनुसार उनकी मौत गोली लगने की वजह से ही हुई थी।

इसके एक हफ्ते बाद ही नए तमिल टाइगर नेता सेल्वरासा पथमनाथान ने इस बात को मान ही लिया की प्रभाकरण की मृत्यु हो चुकी है।

अपराधिक अभियोग :

वेलुपिल्लई प्रभाकरण 1991 से आतंक, हत्या, अपराधिक संगठन चलाने और आतंकवाद की साजिशो के लिए इंटरपोल की तरफ से वांटेड थे।भारत में मद्रास उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ वारंट भी जारी कर दिया था।

उनपर भारत के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या करने की साजिश बनाने का आरोप लगाया गया और इसके बाद 2002 में जज अम्बेपितिया ने उनके खिलाफ एक खुला वारंट भी जारी किया था, जिसमे उनपर 1996 की सेंट्रल बैंक बॉम्बिंग का आरोप लगाया गया था।

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