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हजारो श्रद्धालु के भगवान “सालासर बालाजी” | Salasar Balaji History in Hindi

भगवान हनुमान के भक्तो के लिए सालासर बालाजी – Salasar Balaji या सालासर धाम भारत की धार्मिक जगहों में से एक है। यह राजस्थान के चुरू जिले के सुजानगढ़ के पास नेशनल हाईवे 65 के सालासर शहर में स्थित है। यहाँ बालाजी उर्फ़ भगवान हनुमान का मंदिर सालासर के बीच में बसा हुआ है और साल भर यहाँ हजारो श्रद्धालु भगवान की पूजा अर्चना करने के लिए आते है। चैत्र पूर्णिमा और अश्विन पूर्णिमा के दिन यहाँ लाखो श्रद्धालु देवता को श्रद्धांजलि देने के इरादे से आते है।

हजारो श्रद्धालु के भगवान “सालासर बालाजी” – Salasar Balaji History in Hindi

सालासर बालाजी में बालाजी मंदिर के साथ-साथ दुसरे मंदिर जैसे रानी सती मंदिर, जीन माता और खाटू श्यामजी का मंदिर भी शामिल है। शुरू में सालासर बालाजी का एक छोटा सा मंदिर वर्तमान में एक विशाल शक्ति स्थल और स्वयंभू बन चूका है, जहाँ लोगो की मनोकामना पूरी होती है।

सालासर बालाजी के मूल से संबंधित इतिहास में कई किंवदंतीयाँ है।

उनमेसे एक कथा के अनुसार श्रावण शुक्ल नवमी संवत 1811 (1754 AD) को एक चमत्कार भी हुआ था। एक बार असोटा गाँव के गिन्ठालाजाट नाम का किसान अपने खेत को जोत रहा था और तभी उसके हल पर अचानक एक पत्थर गिरा और इससे एक गूंजती हुई आवाज निकल रही थी। इसके बाद किसान ने इस प्रतिमा को अपनी पत्नी को दिखाया। फिर उसकी पत्नी ने इसे अच्छी तरह से साफ़ किया। कहा जाता है की यही प्रतिमा बालाजी (श्री हनुमानजी) की थी। प्रतिमा को देखते ही उन्होंने अपने सिर झुका लिए और भगवान बालाजी की पूजा करने लगे।

भगवान बालाजी के उत्पत्ति की यह खबर तेजी से असोटा गाँव में फैलने लगी और फिर यह खबर असोटा के ठाकुर के कानो पर पड़ी। कहा जाता है की उसी रात भगवान बालाजी ठाकुर के भी सपने में आए थे और उन्होंने ठाकुर को इस प्रतिमा को चुरू जिले के सालासर में भेजने का आदेश दिया था। उसी रात सालासर में रहने वाले भगवान हनुमान के भक्त मोहनदास महाराज ने भी बालाजी (हनुमानजी) को अपने सपने में देखा था। और सूत्रों के अनुसार बालाजी ने ही उन्हें असोटा की प्रतिमा के बारे में बताया था। उन्होंने तुरंत इस सन्देश को असोटा के ठाकुर के पास भेजा। ठाकुर को भी इस बात को जानकर हैरानी हुई की मोहनदास को असोटा की प्रतिमा की हर छोटी-छोटी बात के बारे में पता था। शायद यह भगवान बालाजी का ही चमत्कार था। इसके बाद इस प्रतिमा को सालासर भेज दिया गया और इसके बाद वही सालासर धाम की स्थापना की गयी।

इसी कहानी में यदि थोडा बदलाव किया जाए तो हमें एक और कहानी इतिहास में सुनने मिलती है। जिसमे सपने में आए हनुमानजी को असोटा के ठाकुर ने सालासर भेजने का आदेश दे दिया था और मंदिर को हमेशा के लिए सालासर में ही स्थापित कर दिया और वही धार्मिक रीती-रिवाजो से उनकी पूजा की जाने लगी। इसके लिए उन्होंने दो बैल ख़रीदे और उस प्रतिमा को बैलगाड़ी पर रखा और बैलगाड़ी को छोड़ दिया। राजा ने वही मंदिर बनाने का आदेश दिया जहाँ वो बैलगाड़ी रुकेगी और कहा जाता है की वह बैलगाड़ी सालासर में ही रुकी। इसके बाद बहुत से गाँववालो ने अपनी दुकानों और घरो को सालासर में ही स्थानांतरित कर दिया और तभी से सालासर में नए गाँव की स्थापना की गयी।

गतिविधियाँ :
मंदिर की दैनिक गतिविधियों में मुख्य रूप से निचे दी गयी गतिविधियाँ शामिल है :
• देवी-देवताओ की दैनिक पूजा।
• दिन में समय-समय पर भगवान की आरती करना।
• ब्राह्मण और दुसरे भिक्षुको का भोज।
• रामायण का जाप।
• कीर्तन और भजनों का जाप।
• सवामनी की व्यवस्था।
• हर मंगलवार को भजनकारो द्वारा सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।
• यात्रियों के रहने की व्यवस्था करना।

त्यौहार और मेले :
• श्री हनुमान जयंती / चैत्रशुक्ला चतुर्दशी और पूर्णिमा
• अश्विन शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा
• भाद्र शुक्ल चतुर्दर्शी और पूर्णिमा

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