Neelam Sanjiva Reddy – नीलम संजीव रेड्डी 1977 से 1982 तक भारत के छठे राष्ट्रपति थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के साथ अपने विशाल राजनीतिक करियर की शुरुवात की थी, आज़ाद भारत में उन्होंने सरकार के बहुत से विभागों में काम किया था – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने देश की सेवा की थी, इसके साथ-साथ वे दो बार लोक सभा स्पीकर और यूनियन मिनिस्टर भी रह चुके है और इन सभी पदों पर रहने के बाद वे भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति बने थे।
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नीलम संजीव रेड्डी की जीवनी / Neelam Sanjiva Reddy Biography In Hindi
वर्तमान अनंतपुर जिले (आंध्रप्रदेश) में जन्मे रेड्डी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अदायर में पूरी की और फिर अनंतपुर के सरकारी आर्ट कॉलेज में वे दाखिल हुए। लेकिन कुछ समय बाद ही वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बने और भारत छोडो अभियान में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
1946 में उनकी नियुक्ती मद्रास वैधानिक असेंबली में कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में की गयी थी। 1953 में रेड्डी आंध्र प्रदेश के डिप्टी मुख्यमंत्री बने और 1956 में आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी की सरकार में 1964 से 1967 के बीच वे यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर बने और 1967 से 1969 तक लोक सभा स्पीकर भी बने। इसके बाद वे सक्रीय राजनीती से सेवानिर्वृत्त हो गये थे लेकिन फिर 1975 में उन्होंने, जयप्रकाश नारायण द्वारा इंदिरा गाँधी सरकार के खिलाफ क्रांति करने के साथ वापसी की थी।
1977 में जनता पार्टी के सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ती संसद में की गयी और सर्वसम्मति से रेड्डी को लोकसभा के छठे स्पीकर के रूप में चुना गया और इसके तीन महीने बाद बिना किसी विरोध के उन्हें भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। राष्ट्रपति के रूप में रेड्डी ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, चरण सिंह और इंदिरा गाँधी के साथ काम किया था। रेड्डी के बाद उनकी जगह 1982 में गैनी जैल ने ली थी। 1996 में उनकी मृत्यु हुई थी और बंगलौर के पास कलाहल्ली में उनकी समाधी भी बनायी गयी।स 2013 में आंध्रप्रदेश सरकार ने रेड्डी की जन्म शताब्दी का आयोजन भी किया था।
शिक्षा और परिवार –
रेड्डी का जन्म 19 मई 1913 को मद्रास प्रेसीडेंसी के इल्लूर ग्राम में तेलगु बोलने वाले हिंदी परिवार में हुआ था। मद्रास के अदायर में थेओस्फिकल हाई स्कूल से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की और बाद में खुद को अनंतपुर के सरकारी आर्ट कॉलेज में दाखिल करवाया, यह कॉलेज मद्रास यूनिवर्सिटी से ही जुड़ा हुआ था। 1958 में तिरुपति की श्री वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी से उन्होंने डॉक्टर ऑफ़ लॉ की उपाधि हासिल की थी।
इसके बाद रेड्डी ने नीलम नगरत्नाम्मा से शादी कर ली। उनका एक बेटा और तीन बेटियाँ भी है।
भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उनकी भूमिका –
जुलाई 1929 के बाद महात्मा गाँधी की अनंतपुर यात्रा के बाद रेड्डी भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल हो गये और इसी वजह से 1931 में उन्हें कॉलेज से भी निकाला गया था। यूथ लीग से वे करीबी रूप से जुड़े हुए थे और विद्यार्थी सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग ले रखा था। 1938 में रेड्डी की नियुक्ती आंध्रप्रदेश प्रोविंशियल कांग्रेस कमिटी में सेक्रेटरी के पद पर की गयी, इस ऑफिस को उन्होंने 10 साल तक संभाला था। भारत छोडो अभियान के समय उन्हें जेल भी जाना पड़ा था और ज्यादातर उन्हें 1940 से 1945 के बीच ही जेल जाना पड़ा था। फिर मार्च 1942 में जेल से रिहा होने के बाद दोबारा अगस्त में उन्हें गिरफ्तार किया गया और अमरावती जेल में भेजा गया, जहाँ क्रांतिकारी टी. प्रकाशम्, एस. सत्यमूर्ति. के. कामराज और व्ही.व्ही गिरी के साथ वे 1945 तक रहे।
राजनीतिक करियर –
1946 में उनकी नियुक्ती मद्रास वैधानिक असेंबली में कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में की गयी, इसके बाद रेड्डी कांग्रेस वैधानिक पार्टी के सेक्रेटरी भी बने। इसके साथ-साथ वे मद्रास से भारतीय संवैधानिक असेंबली के सदस्य भी थे। अप्रैल 1949 से अप्रैल 1951 तक वे मद्रास राज्य से निषेध, आवास और वन मिनिस्टर भी थे। 1951 के चुनाव में कम्युनिस्ट लीडर तरिमेला नागी रेड्डी के खिलाफ मद्रास वैधानिक असेंबली के लिए हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
भारत के राष्ट्रपति –
21 जुलाई 1977 को नीलम संजीव रेड्डी की नियुक्ती राष्ट्रपति के पद पर की गयी और 25 जुलाई 1977 को वे भारत के छठे राष्ट्रपति बने। रेड्डी ने तीन सरकारों के साथ काम किया था, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, चरण सिंह और इंदिरा गाँधी। भारत की आज़ादी की 20 वी एनिवर्सरी पर रेड्डी ने घोषणा की थी वे राष्ट्रपति भवन को छोड़कर एक छोटे आवास में रहने के लिए जा रहे है और उन्होंने उन्हें मिलने वाले पैसो में 70% की कटौती देश के विकास के लिए भी की थी।
सेवानिर्वृत्ति और मृत्यु –
25 जुलाई 1982 को गैनी जैल सिंह रेड्डी की जगह पर भारत के नए राष्ट्रपति बने थे। अपने विदाई भाषण में रेड्डी ने आने वाली सरकार की असफलताओ को उजागर किया था और उनकी आलोचना भी की थी। राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने और रामकृष्ण हेगड़े ने भी रेड्डी को हमेशा के लिए बंगलौर में बस जाने का निमंत्रण भेजा। रेड्डी की मृत्यु पर 11 जून 1996 को संसद भवन में शोक व्यक्त किया गया और उपस्थित सभी पार्टी के सदस्यों ने उन्हें आदरांजलि दी थी।
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