Mahabodhi temple – महाबोधि विहार एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट है, जिसमे बोधगया में बौद्ध धर्म का एक मंदिर है। कहा जाता है की वही बुद्धा अपना प्रबोधन करते थे। बोध गया Bodh Gaya (गया जिला) भारत के बिहार राज्य के पटना से 96 किलोमीटर दूर है।
Bodh Gaya Mahabodhi temple history in Hindi
इस जगह पर शामिल दुसरे छायाचित्रों में अवलोकितेसश्वर (पद्मपनी, खासर्पना), वज्रपाणी, तारा, मरीचि, यामंताका, जम्भाला और वज्रवर्ही भी शामिल है। विष्णु, शिव, सूर्य और दुसरे वैदिक देवी-देवताओ के छायाचित्र भी हमें वहाँ दिखायी देते है।
इस जगह पर हमें बोधि वृक्ष के वंशज दिखायी देते है, जहाँ बुद्धा अपने प्रबोधन करते थे।
लॉर्ड बुद्धा –
पारंपरिक सूत्रों के अनुसार, एक युवा राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने देखा की यह दुनिया बहुत सारे दुःखो से ग्रसित है और वे उसे समाप्त करना चाहते थे, तभी वे फाल्गु नदी के किनारे पर पहुचे, जो भारत के गया शहर से होकर बहती है। वही पर वे पीपल के पेड़ के निचे ध्यान करने की अवस्था में बैठे, और बाद में लोगो ने उसी पेड़ को बोधि वृक्ष का नाम दिया था। बुद्ध लिपिकारो के अनुसार बुद्धा वहाँ लगातार तीन दीन और तीन रात तक प्रबोधन कर रहे थे। उसी जगह पर सम्राट अशोक ने 260 BC में महाबोधि मंदिर बनवाया था।
इसके बाद बुद्धा ना लगातार सात हफ्ते अलग-अलग जगहों पर बिताये थे और ध्यान लगाते रहे। इन सात हफ्तों में बुद्धा अलग-अलग जगहों पर गए थे, जिनका वर्णन निचे किया गया है –
- पहला हफ्ता उन्होंने बोधि वृक्ष के निचे बिताया था।
- दुसरे हफ्ते के दौरान बिना की रूकावट और आराम के बुद्धा बोधि वृक्ष के पास ही खड़े रहे। इस जगह को अनिमेशलोचा स्तूप का नाम दिया गया था, जो महाबोधि मंदिर कॉम्प्लेक्स के उत्तर-पूर्व में स्थित है। वहाँ बुद्धा की मूर्ति भी बनी हुई है जिनकी आँखे इस तरह से बनायी गयी है की वे बोधि वृक्ष के पास ही देखते रहे।
- इसके बाद कहा जाता है की बुद्धा अनिमेशलोचा स्तूप और बोधि वृक्ष की तरफ चल दिये। महात्माओ के अनुसार, इस रास्ते में कमल का फुल भी लगाया गया था और इस रास्ते को रात्नचक्रमा का नाम भी दिया गया।
- चौथा हफ्ता उन्होंने रत्नगर चैत्य में बिताया जो उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।
- पांचवे हफ्ते के दौरान, बुद्धा ने अजपला निगोड़ वृक्ष के निचे पूछे गए सभी प्रश्नों के जवाब दिये थे।
- उन्होंने अपना छठा हफ्ता कमल तालाब के आगे बिताया था।
- सातवाँ हफ्ता उन्होंने राज्यतना वृक्ष के निचे बिताया था।
बोधगया वृक्ष – Bodh Gaya temple tree
बोधगया का बोधि वृक्ष सीधे-सीधे इतिहासिक बुद्धा, सिद्धार्थ, गौतम से जुड़ा हुआ है, जो अपनी ध्यान प्रकिया कर दौरान वहा प्रबोधन करते थे। वहाँ बना मंदिर भी बोधि वृक्ष के पूर्व में बनाया गया है।
बुद्ध धर्मशास्त्र के अनुसार, यदि उस जगह पर बोधि वृक्ष का उगम नही होता तो वहाँ शाही बाग़ बनाया जाता था। लेकिन ऐसा संभव नही हो सका।
जताकास के अनुसार, धरती की नाभि इस जगह पर रहती है और दुनिया में कोई भी दूसरी जगह बुद्धा के भार को सहन नहीं कर सकती। बुद्ध लिपिकारो के अनुसार जब इस पूरी दुनिया का विनाश होंगा तब बोधिमंदा धरती से गायब होने वाली अंतिम जगह होंगी। परंपराओ का यह भी कहना है की वहाँ आज भी कमल खिलते है। महात्माओ के अनुसार, बोधि वृक्ष का उगम भी उसी दिन हुआ था जिस दिन भगवान गौतम बुद्धा का जन्म हुआ था।
महाबोधि मन्दिर एक पवित्र बौद्ध धार्मिक स्थल है क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ पर गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। पश्चिमी हिस्से में पवित्र बोधि वृक्ष स्थित है। इसकी संरचना में प्राचीन वास्तुकला शैली की झलक दिखती है। राजा अशोक को महाबोधि मन्दिर का संस्थापक माना जाता है। निश्चित रूप से यह सबसे प्राचीन बौद्ध मन्दिरों में से है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है।
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