पूरा नाम – थोरले बाजीराव पेशवे
जन्म – 18 अगस्त 1700.
पिता – बाळाजी विश्वनाथ
माता – राधाबाई
Thorale Bajirao Peshwa
मध्ययुगीन महाराष्ट्र के इतिहासों में सातारकर छत्रपती थोरले शाहु महाराज इनकी राज से महाराष्ट्र में नया युग शुरू हुवा. शाहु महाराज ने राज्य के पेशवा पद पर नियुक्त किये हुये श्रीवर्धनकर भट (पेशवा) घर का योगदान महाराष्ट्र के राजकीय और सांस्कृति के लिए महत्वपूर्ण रहा इस घर के पहले पेशवे बाळाजी विश्वनाथ इनके बेटे श्रीमंत थोरले बाजीराव पेशवे / Thorale Bajirao Peshwa इनकी राजकीय कारकीर्द और पूरा जीवन माहाराष्ट्र के और भारत के दृष्टी से भाग्यदायी रहा.
पहले पेशवे बाळाजी पंत के मृत्यु के बाद 1720 में शाहु महाराज ने बाजीराव को पेशवे पद के वस्त्र प्रदान किये. 13 साल की उम्र से ही बाजीराव को राजनीती, युध्द्नीती, लष्करी इन विषय के बारे में प्रशिक्षण पिताजी से ही मिली थी. कम उम्र में ही तड़फ, हिंमत देखकर ही शाहु महाराज ने बाजीराव को पेशवे पद की जिम्मेदारी सौपी थी.
अधिकार पद ग्रहण करते ही बाजीराव ने अपने करतब मराठी के शत्रुओं पर आजमाने शुरू किये हैद्राबाद का निजाम, जजीर का सिददी, गोवा के पोर्तुगीज, मुघल दरबार के सरदार और सेनापती, मराठी के शत्रु और छिपे हुए हितशत्रु, सातारा दरबार में के ग़द्दार इन सब को थोरले बाजीराव ने अलग अलग सबक सिखाया. पुराने मनोवृत्ति के सरदार इनको दिमाग से प्रयोग करके निकाल दिया और उनके जगह पर शिंदे, होळकर, पवार, जाधव, फाड़के, पटवर्धन, विंचूरकर इन जैसे दमदार सरदारों का लाया इन सरदार को अलग-अलग लष्करी और प्रशासकीय कार्य सौपा के उन्हें अलग-अलग प्रांत बाट दिये. इस तरिके के वजह से मराठी राज्य की संघराज्यात्मक रचना ताकदवर होकर राज्य का सर्वागीण बल बढ़ा. स्वराज्य के विस्तार में से मराठी साम्राज्य खड़ा हुआ. मराठी समाज में आक्रमक, धाडसी वृत्ती निर्माण हुयी इसका श्रेय थोरले बाजीराव को ही जाता है.
भोपाल, पालखेड आदी जगह की निजाम के खिलाफ जंग, मोहम्मद शाह बंगश के खिलाफ की मुहीम, पोर्तुगीजों के खिलाफ की मुहीम, जंजीरा मुहीम और सिददी का पाडाव इन जैसे मुहीम मतलब थोरल्या बाजीराव के लष्करी और राजकीय सफलता के महत्वपूर्ण हिस्से है.
दुसरे महायुद्ध में जर्मन सेनानी फिल्ड मार्शल आयर्विन रोमेल इनके नेतृत्व के निचे आफ्रिका के रण में सफल करके दिखाने वाला ब्लीट्स क्रिग ये युद्धतंत्र 18 के शतक में थोरले बाजीराव पेशवा ने भारत में सफल करके दिखाया. उनके क्षमता की वजह से बड़े बड़े विजय आसानी से मिले. “one of the best commanders in cavelry warfare in the world.”
इन शब्दों में दुनिया के सेनानियों ने थोरले बाजीराव का गौरव किया है. फील्ड मार्शल मॉटगोमेरी इन्होंने बाजीराव के युध्द्कौशल का गौरवपूर्ण शब्दों में उल्लेख किया है. ऐसे पराक्रमी पेशवा की 40 वर्ष की उम्र में पॅरा – टायफॉईड (नवज्वर) के वजह से नर्मदा नदी के पास रावेरखेडी यहाँ 28 अप्रैल 1740 को सुबह मौत हुई.
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