बाते और मुलाकते दोनों जरूरी है रिश्ते निभाने के लिए, लगा के भूल जाने से तो पौधे भी सुख जाते है
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चार महीने से सोच रहे थे
अखबारो मे उनको पढ़ रहे थे
जैसे ही धन्वन्तरी के कमरा 302 का गेट खोला
वो मेरे लेख पर ही सोच रहे थे
नाम है उनका ज्ञान
चेहरे पर अजीब सा विज्ञान
मिले है जबसे , सुना है उनको
ले रहा निल्को उनकी बातो का संज्ञान
सरनेम उनका कामरा
हुआ मेरा उनसे सामना
स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे
ईश्वर से यही कामना
राष्ट्र ध्वज के है सिपाही
कई लोग है उनके पनाही
मिलकर सुकून मिला कुछ यूं
जैसे पानी और छाव मिल गया हो राही
एम के पाण्डेय ‘निल्को’