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सुर्खियों से शुरुआत












सुर्खियों से शुरुआत
कुदरत का कहर जारी है
कहीं धरती उगल रही आग
कहीं बर्फबारी की दुश्वारी है।

जंगलों से निकल कर गजराज
बस्तियों में तबाही मचा रहे हैं
तेंदुआ भी हरियाली छोड़ कर
कंक्रीट के जंगलों में आ रहे हैं।

तपिश की तबाही
सर्दी का सितम भारी
बारिश से आई बाढ़
सूखे का संकट भी जारी।

तबाही का ये मंजर
कर रहा है इशारा
बदल जाओ दुनिया वालों
बदल जाएगा नजारा।

तुमने अपने हाथों ही तो
दिक्कतों का पौधा रोपा है
बबूल की खेती की है
कांटों की चुभन से रोता है।

कुदरत का मजाक उड़ाना
पड़ रहा भारी है
मौका है संभल जाओ
बेहतर करने की बारी है।


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