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पति फंसे मजबूरी में, तो पत्नियां कूदीं चुनावी मैदान में

तीसरे चरण के चुनाव में यादव परिवार की प्रतिष्ठा तो दांव पर है ही। लखनऊ की 2 सीटों पर पत्नी अपने पति की प्रतिष्ठा बचाने के लिए भी चुनाव लड़ रही हैं। अपर्णा यादव और स्वाति सिंह की सीटों पर कड़ा मुकाबला है।
महादेव अर्धनारीश्वर के तौर पर पूजे जाते हैं। महादेव जैसा पति चाहने वाली स्त्रियां हर दूसरे-चौथे मंदिरों में शिवलिंग पर जल चढ़ाते देखी जा सकती हैं। शंकर-पार्वती की तस्वीरें भी अर्धनारीश्वर स्परूप वाली बहुतायत मिल जाती हैं। भारतीय जोड़ियां शंकर पार्वती जैसी ही होती हैं। आधी स्त्री-आधा पुरुष तभी सम्पूर्ण, ये भारतीय सनातन परम्परा में माना जाता है। आपको लग रहा होगा कि घनघोर चुनावी दौर में मैं क्यों इस तरह से हिन्दू देवी-देवताओं की चर्चा कर रहा हूं। इस चर्चा की खास वजह है। दरअसल, इसी सनातन परम्परा का दर्शन उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी हो रहा है। फर्क बस इतना है कि यहां पार्वती अपने महादेव की लड़ाई लड़ रही हैं। मायावती पर टिकट लेकर पैसे बांटने का आरोप बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह ने कुछ इस तरह से शर्मनाक तुलना करते लगा दिया कि दयाशंकर की बीजेपी सदस्यता तो चली ही गई थी, राजनीतिक वनवास भी झेलना पड़ा रहा है। लेकिन, दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने मोर्चा सम्भाल लिया। और मोर्चा भी ऐसा सम्भाला कि बीजेपी ने उन्हें महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनाने के साथ ही लखनऊ की सरोजिनी नगर सीट से प्रत्याशी भी बना दिया। स्वाति सिंह के चुनाव मैदान में होने से सरोजिनी नगर का मुकाबला बेहद रोचक हो गया है। लखनऊ की ही एक और हाई प्रोफाइल सीट है लखनऊ कैन्ट। यहां से मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव चुनाव लड़ रही हैं। अपर्णा के पति प्रतीक मुलायम की दूसरी पत्नी के बेटे हैं और राजनीति में कतई उनकी रुचि नहीं है। प्रतीक की भले ही राजनीति में दिलचस्पी न हो लेकिन, प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के बेटे होने के नाते प्रतीक पर राजनीति में आने का दबाव निरन्तर बना हुआ है। इसीलिए प्रतीक की पत्नी के तौर पर अपर्णा ने राजनीतिक विरासत को सलीके से आगे बढ़ाने का जिम्मा ले लिया है। और, कैन्ट सीट पर कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और अभी बीजेपी की प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी को कड़ा मुकाबला दे रही हैं।
एक समय में भले ही ये लग रहा था कि अपर्णा यादव और डिम्पल यादव में जबरदस्त अंदरूनी संघर्ष चल रहा था। लेकिन, अपर्णा के मंच पर प्रचार के लिए पहुंचकर डिम्पल यादव ने उन अटकलों पर विराम लगाने की भी एक कोशिश की है। डिम्पल यादव समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारकों में उस समय शामिल हुई हैं, जब पुरानी समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद सबसे बड़े स्टार प्रचारक शिवपाल सिंह यादव सिर्फ जसवंतनगर विधानसभा सीट तक सिमटकर रह गए हैं। चुनाव से पहले घर की लड़ाई में और अब चुनावी मैदान में जूझ रहे अखिलेश यादव के साथ डिम्पल बेहद मजबूत खम्भे की तरह खड़ी हो गई हैं। हर जगह वो लोगों से कह रही हैं कि अपने अखिलेश भैया को मजबूत कीजिए। डिम्पल भाभी अब सभाओं में कहती हैं कि लोगों की साजिश थी कि आपके भैया के पास बस चाभी और भाभी ही रह जाए। अब जब भाभी इस तरह से भाइयों से साथ आने को कह रही हो तो भला कौन चाचा-ताऊ के साथ खड़ा रह पाएगा।

लखनऊ प्रदेश की राजनीतिक राजधानी है, तो इलाहाबाद प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी है। लखनऊ की ही तरह इलाहाबाद में भी 2 सीटों पर पत्नियां, पतियों की इज्जत बचाने के लिए मैदान में हैं। भारतीय जनता पार्टी के विधानमंडल दल के सचेतक रहे पूर्व विधायक उदयभान करवरिया ने एक लम्बी मार्मिक अपील जारी की है। जिसमें मेजा विधानसभा की जनता से नीलम करवरिया को बहू/बेटी के तौर पर स्वीकार करके जिताने की अपील है। इसमें इस बात का भी विस्तार से जिक्र है कि उदयभान उनके बड़े भाई पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया और छोटे भाई पूर्व एमएलसी सूरजभान करवरिया को राजनीतिक साजिश के तहत 20 साल पुराने मामले में फंसाकर जेल भेजा गया है। करवरिया बंधुओं पर समाजवादी पार्टी के नेता रहे जवाहर यादव की हत्या का आरोप है। नीलम करवरिया पिछले एक साल से मेजा में अपने पति-परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। इलाहाबाद की ही एक और सीट है, जहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और बसपा सरकार में मंत्री रहे राकेशधर त्रिपाठी इज्जत बचाने की गुहार जनता से लगा रहे हैं। और उनकी इस गुहार को हंडिया विधानसभा में आगे लेकर उनकी पत्नी प्रमिला लड़ रही हैं। राकेशधर, प्रमिला में नजर आते रहें इसलिए उनके नाम में भी धर लगा दिया गया है। हंडिया से प्रमिलाधर अपने पति राकेशधर त्रिपाठी की इज्जत की लड़ाई लड़ रही हैं। डिम्पल यादव सांसद हैं और सीधे चुनाव भी लड़ने की उन्हें जरूरत नहीं है। हां, पति की राजनीतिक लड़ाई इतनी कठिन है कि डिम्पल को भी चुनावी रणक्षेत्र में उतरना पड़ा है। इसके अलावा अपर्णा यादव, स्वाति सिंह, नीलम करवरिया और प्रमिलाधर त्रिपाठी का कोई राजनीतिक अनुभव निजी तौर पर नहीं है। स्वाति सिंह, नीलम करवरिया और प्रमिलाधर त्रिपाठी इस चुनाव से पहले पूरी तरह से घरेलू महिलाएं रही हैं। ये तीनों ही अपने पतियों की प्रतिष्ठा बढ़ाने या बचाने के लिए राजनीतिक मैदान में उतर पड़ी हैं। अब देखना होगा कि अर्धनारीश्वर को पूजने वाले देश में पति का नाम आगे रखकर मैदान में कूदी अर्धांगिनी को चुनाव जिताकर राजनीतिक तौर पर पति-पत्नी को सम्पूर्ण बनाने का काम जनता करती है या नहीं। 


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