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मुसलमानों ने ख़त्म की वर्णव्यवस्था, वही खीज आज निकाली जा रही है

सोशल डायरी ब्यूरो
कुछ वर्षो से लगातार मुसलमानों पर हमले हो रहे है. मुसलमानों की निर्मम हात्याये और बेगुनाह मुसलमानों को फर्जी केसों में अत्रंक्वाद के इल्जाम में फंसाया जा रहा है. भारत में 85 प्रतिशत बहुजन है जो वर्णव्यवस्था के विरोधी है. वर्णव्यवस्था बहुत ही भयानक व्यवस्था हुआ करती थी जो इंसानों को इंसान नहीं समझती थी. भारत में रहने वाले सारे मुसलमान सिवाए औलियाइकराम के सभी उस वक्त के शुद्र, अतिशूद्र, अछूत और आज के एससी, एसटी, ओबीसी से धर्म परिवर्तित है. भारत में हजारो वर्षो से वर्णव्यवस्था चली आ रही थी. जिसको ख़त्म करने के लिए गौतम बुद्धा से लेकर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर तक हजारो महामानवो ने आन्दोलन किये. हर एक महापुरुष ने उस वक्त के हिसाब से आन्दोलन चलाया. जैसे के, गौतम बुद्धा ने शान्ति का आन्दोलन चलाया, छत्रपति शिवाजी महाराज ने शासन में सभी जाती धर्म के लोगो को समानता से आमने राज्य में परवरिश की, राष्ट्रपिता जोतीराव फुले ने शिक्षा का आन्दोलन चलाया, और बाबासाहब आंबेडकर ने कानून बनाकर सभी बहुजनो को उनके हक़ और अधिकार दिलाये. यही कारण है के आंबेडकरवाद के भी सबसे बड़े दुश्मन मनुवादी ही है.



वर्णव्यवस्था ख़त्म होना तब से शुरू हुई जबसे भरम में इस्लाम का आगमन हुआ. सन 571 में ही भारत में इस्लाम ने दस्तक दी थी. जब मुसलमान भारत में व्यापार के लिए आते थे और वह एक बर्तन में खाना खाते, एक दुसरे का झूठा पानी पीते, सब एक दुसरे को छूते, एक दुसरे के कपड़ो का इस्तेमाल करते, सभी सुशिक्षित  यह देखकर जिनको पढने लिखने का अधिकार नहीं था, जिनको सवर्ण को छूने का अधिकार नहीं था, सार्वजनिक ठिकानों से पानी पिने का अधिकार नहीं था, उच्च वर्नियो को छूने का अधिकार नहीं था, शहरों में रहने का अधिकार नहीं था ऐसे लोग जब मुसलमानों को देखते तो उनके मन में सवाल उठता के यह भी तो इंसान है और हम भी इंसान फिर इनको सभी अधिकार प्राप्त है लेकिन हमें क्सभी अधिकारों से वंचित किया गया. यह देखकर दिन-ब-दिन शुद्र, अतिशूद्र, अछूत यानी वर्णव्यवस्था के बाहर के लोग इस्लाम कुबूल करने लगे. और धीरे धीरे मुसलमानों की संख्या सिअकदो से हजारो तक पहुंची, हजारो से लाखो तक पहुंची. और लोगो ने अपना अधिकार जाना और वर्णव्यवस्था का प्रभाव अपने आप खत्म होता चला गया. बची-कुची वर्णव्यवस्था छत्रपति शिवाजी महाराज, राष्ट्रपिता जोतीराव फुले, राजर्षि शाहू महाराज, और कई महापुरुषों ने ख़त्म की, और सबसे आखिर में डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी ने संविधान द्वारा सभी बहुजनो को समान अधिकार देखर वर्णव्यवस्था को जड़ से मिटा दिया. 



आज सबसे ज्यादा मजलूम एससी, एसटी, आदिवासी और मुसलमान ही है. क्यूंकि मुसलमान भी इन्ही का एक हिस्सा है. वर्णव्यवस्था भिमानी उनकी वर्णव्यवस्था को ख़त्म करने का सबसे पहला जिम्मेदार मुसलमानों को मानते है. हालांकि मुसलमान बाहर से आये हुए नहीं बल्कि भारत के ही मूलनिवासी है. लेकिन प्रचार विदेशी होने का किया जाता है. और बहुजनो को मुसलमानों के विरूद्ध खडा किया जाता है. वर्णव्यवस्था के खात्मे की शुरुआत मुसलमानों ने ही की, उससे पहले गौतम बुद्धा ने शुरुआत की थी बहुजन राजा बृहदरत की हात्या के बाद लाखो बौध्ह बिक्खूओ का कत्लेआम किया गया. दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से इस्लाम फैलता गया और इस वजह से यहूदियों द्वारा प्रस्थापित वर्णव्यवस्था का प्रभाव भी कम होने लगा, ईसी बात की खीज  अंतरराष्ट्रिय स्तर पर यहूदी और राष्ट्रिय स्तर पर वर्णव्यवस्था के निर्माते मनुवादी निकाल रहे है. और जिन ओबीसी से धर्मपरिवर्तित मुसलमान है उन्ही को भड़काकर मुसलमानों पर जुल्म किये जा रहे है. और एससी, एसटी, ओबीसी, एनटी, डीएनटी, वीजेएनटी, और माइनॉरिटी तो पहले से ही दुश्मन है. और मुसलमान दुश्मनों से धर्म परिवर्तित दुश्मन है. इसीलिए सभी बहुजनो को एक साथ मिलकर वर्णव्यवस्था के उठाते फेन को कुचलना होगा. वरना गौतम बुद्धा से लेकर बाबासाहब आंबेडकर तक सभी महामानवो की कुरबानिया हमें कभी माफ़ नहीं करेगी. उनकी दी हुई आजादी हमसे छिनने को है. इससे पहले की देर हो जाए. आपसी तकरारो को नजरअंदाज करते हुए आजादी को ख़त्म करने से रोकना वक्त की जरुरत है. आपस में तो सभी झगड़ते रहते है, ओबीसी हो, एससी हो या मुसलमान. यह आपसी झगडा मतलब घर का झगडा है. घर में बैठकर मिटाया जा सकता है. समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय को कायम रखने के लिए हमें एक होना पडेगा और वर्णव्यवस्था वाली मानसिकता मनुवाद को पनपने से रोकना होगा.
लेखक -अहेमद कुरेशी
प्रदेशाध्यक्ष, रिहाई मंच (महाराष्ट्र)





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