नेशनल थॉट्स ब्यूरो : देश में खाद्य तेलों की कीमतें काफी बढ़ गई है और आयातित खाद्य तेलों की कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन सरकार आयात शुल्क यानी इम्पोर्ट ड्यूटी में कमी को तैयार नहीं है। इससे आम लोगों की मुश्किलें बढ़ी हैं। दिल्ली के आंकड़ों के मुताबिक सभी तरह के खाद्य तेलों की खुदरा कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। जनवरी 2018 से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मूंगफली तेल की कीमत 15 फीसदी, सोयाबीन तेल की कीमत 55.5 फीसदी, पाम ऑयल की कीमत 61.9 फीसदी और सूरजमुखी के तेल की कीमत 76 फीसदी बढ़ी है। दूसरे महानगरों का भी यही हाल है।
उत्पादन भी सामान्य
खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए इस बार देश में तिलहन की कमी जिम्मेदार नहीं है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो सभी प्रमुख तिलहनी फसलों मूंगफली, सोयाबीन और सरसों का उत्पादन सामान्य रूप से बढ़ रहा है। यह तर्क भी सही नहीं है कि खपत पैटर्न में बदलाव और मांग बढ़ने से तेल की कीमतों में तेजी आई है। देश में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की मांग वैश्विक औसत से कहीं कम है और बढ़ने के बजाय इसमें मामूली गिरावट आई है।
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आयात पर निर्भरता से नुकसान
भारत खाद्य तेलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है और उसे अपनी घरेलू मांग का आधा से अधिक आयात करना पड़ता है। हालिया आंकड़ों के मुताबिक भारत को अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 56 फीसदी खाद्य तेल आयात करना पड़ा। देश में आयात होने वाले खाद्य तेलों में 95 फीसदी पाम, सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल है। आयात किए जाने वाले खाद्य़ तेलों में क्रूड पाम ऑयल 51 फीसदी, सोयाबीन तेल 25 फीसदी, सनफ्लावर ऑयल 19 फीसदी, आरबीडी पामोलीन 3 फीसदी और अन्य तेल 2 फीसदी है।
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