Guru ka Sthan- Teacher and Student Story in Hindi
एक राजा था. उसे पढने-लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री से कहकर एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए रोज आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत कराते थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई लाभ नहीं हो रहा था. राजा इस बात से बड़ा परेशान रहने लगा, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर एक दिन उसने यह बात रानी को बताई तो रानी ने राजा को सलाह दी कि मेरे राजा आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.
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लेकिन राजा भी गुरूजी से यह बात पूछने पर संकोच करते थे, एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”
गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” मेरे राजा इसका कारण बहुत ही साधारण सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती करके पूछी.
गुरूजी ने कहा, “मेरे राजा बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठने पर गौर करे और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
राजा की समझ में ये सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की.
बात पते की:-
मित्रों, इस छोटी सी कहानी का सार यह है कि हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना बहुत मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं। क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड में जी रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमपे हमेशा बना रहेगा.
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