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मुज़फ्फर नगर और गुजरात दंगो में मोदी द्वारा कराए गए मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम की तुलना -शरीफ खान

आर एस एस ने जिस हिन्दुत्ववाद को जन्म दिया उसकी नींव मुसलमानों के क़त्ल और मुस्लिम मुक्त भारत की विचारधारा पर रखी गई। मोदी ने इस शैतानी विचारधारा के समर्थकों को गुजरात में मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम द्वारा ध्रुवीकृत किया जिसके नतीजे में उसको प्रधानमन्त्री पद प्राप्त हुआ। इस कामयाबी से प्रेरित होकर भाजपाईयों द्वारा उत्तर प्रदेश में भी यही खेल खेलने की योजना के तौर पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया और तरह तरह से छोटी छोटी बातों को मुद्दा बनाने की कोशिश की जाती रही और इस प्रकार एक मौक़ा हाथ आ ही गया। 

हुआ यह कि मुज़फ्फर नगर जिले के एक गाँव में एक हिन्दू लड़की को छेड़ने का फर्जी आरोप लगाकर एक मुसलमान लड़के को बेरहमी से पीट पीट कर मार डाला गया था। इसके बाद उस बेगुनाह के क़त्ल की प्रतिक्रिया में मकतूल के समर्थन में लोग आगे आए और उन्होंने उस बेगुनाह मकतूल के दो कातिलों को मार दिया। 
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प्रदेश का माहौल बिगाड़ने के योजनाकारों को ऐसे ही मौके का इंतजार था और आनन् फानन में महापंचायत के आयोजन के नाम पर करीब डेढ़ लाख हथियारबंद हिन्दुओं को जमा करके उनकी भावनाओं को भड़काया गया और इस प्रकार से उत्पातियों की यह भीड़ जिधर से भी गुजरी उधर ही मुसलमानों की जान और माल खतरे में पड़ते चले गए और गुजरात में किये गए मुसलमानों के क़त्लेआम का माहौल बना दिया गया।

इन अप्रत्याशित हमलों से अल्पसंख्यकों का जान व माल का नुकसान होना ही था। उपरोक्त हिन्दुत्ववादी तत्वों के वजूद से चूँकि प्रशासन भी ख़ाली नहीं रहा है इसलिये उसके द्वारा भी पंचायत के आयोजन को न रोके जाने के कारण पूरे क्षेत्र के मुसलमान असुरक्षित हो गए थे। प्रदेश सरकार की प्रशासन पर पकड़ कमज़ोर होना भी ऐसी स्थिति बनने में सहायक हुआ लेकिन इसके बाद प्रदेश सरकार ने जिस तत्परता और सख्ती से हालात को काबू में किया वह काबिलेतारीफ था। 

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यदि मुज़फ़्फ़र नगर की गुजरात से तुलना करें तो गुजरात में तो मुसलमानों का क़त्ल होता रहा था और फ़ौज को नहीं बुलाया गया था जबकि अखिलेश सरकार ने फ़ौज को बुलाकर हालात काबू में किये थे और मुसलमानों को जिस पैमाने पर नुकसान पहुँचाने की पंचायतबाजों की योजना थी उसको कामयाब नहीं होने दिया गया था। एक और ख़ास बात ध्यान देने योग्य यह है कि गुजरात में तो मुसलमानों को घेर घेर कर मारा गया था और जान बचाकर भागने का मौक़ा भी नहीं दिया गया था जबकि हिंसाग्रस्त मुज़फ्फर नगर जिले और इस के आस पास के इलाके में से सुरक्षाबलों की निगरानी में मुसलमानों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम अंजाम दिया गया था और हज़ारों मुसलमानों को जान व माल के नुकसान से बचाया लिया गया था।

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उत्तरप्रदेश सरकार ने अब तक का सबसे अच्छा यही काम किया कि खुलेआम "उत्तरप्रदेश को गुजरात बना देंगे" और "नरेन्द्र मोदी जी को लायेंगे, एक और गुजरात बनाएंगे" आदि नारे लगाकर प्रदेश की फिज़ा को खराब करने वाले देश के दुश्मनों की चाल को नाकाम किया था लेकिन अफ़सोस और ताज्जुब की बात है कि दुर्घटनाओं के ज़रिये भी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वालों के नक्शेक़दम पर चलते हुए कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी प्रदेश सरकार की बुराई करने में कमी नहीं छोड़ी है जबकि उत्तरप्रदेश का इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद होने वाले दंगों में मुसलमानों को साम्प्रदयिक्तावादियों के साथ सुरक्षाबलों से भी बेइन्तेहा नुकसान पंहुचता रहा है। 
यह पोस्ट जिस तरह निष्पक्षता से लिखी गई है इसको उसी तरह निष्पक्ष होकर पढ़ें। यह भी बताना ज़रूरी है कि मेरा किसी पार्टी से सम्बन्ध नहीं है।
(शरीफ खान सामाजिक कार्यकर्ता और बेबाक लेखक है, यह लेख उनके फेसबुक वाल से लिया गया है, जो उनके निजी विचार है)






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