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गीत 70: ज़िन्दगी से लड़ रहा हूँ ---

2122---2122--2122--2122

गीत 70 : ज़िन्दगी से लड़ रहा हूँ ---

ज़िन्दगी से लड़ रहा हूँ ,मैं अभी हारा नहीं हूँ ,
जीत हो उपहार सा होगा नहीं स्वीकार मुझको ।

जो कहेंगे वो, लिखूँ मैं ,शर्त मेरी लेखनी पर,
और मेरे ओठ पर ताला लगाना चाहते हैं ।
जो सुनाएँ वो सुनूँ मैं, ’हाँ’ में ’हाँ’ उनकी मिलाऊँ
बादलों के पंख पर वो घर बनाना चाहते हैं॥

स्वर्ण-मुद्रा थाल लेकर आ गए वो द्वार मेरे,
ना कभी स्वीकार होगा क़लम का व्यापार मुझको।

ज़िन्दगी आसां नहीं तुम सोच कर जितनी चली हो,
कौन सीधी राह चल कर पा गया अपन ठिकाना ।
हर क़दम, हर मोड़ पर अब राह में रहजन खड़े हैं
यह सफ़र यूँ ही चलेगा, ख़ुद ही बचना  या बचाना ।

जानता हूँ  तुम नहीं मानोगी  मेरी बात कोई-
और तुम को रोक लूँ मैं, यह नहीं अधिकार मुझको।

लोग अन्दर से जलें हैं, ज्यों हलाहल से बुझे हों,
आइने में वक़्त के ख़ुद को नहीं पहचानते हैं।
नम्रता की क्यों कमी है,”अहम’ क्यॊ इतना भरा है
सामने वाले को वो अपने से कमतर मानते हैं।

एक ढूँढो, सौ मिलेंगे हर शहर में ,हर गली में ,
रूप बदले हर जगह मिलते वही हर बार मुझको।

-आनन्द.पाठक- 

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