स्तम्भन दोष की परिभाषा
स्तम्भन दोष का अर्थ है कि पुरुष अपनी यौन आवश्यकता या अपने साथी की यौन आवश्यकता के लायक पर्याप्त तनाव प्राप्त नहीं कर पा रहा अथवा तनाव को कायम नहीं रख पा रहा. स्तम्भन दोष को कई बार “नपुंसकता” भी कहा जाता है.
“स्तम्भन दोष” का मतलब लिंग में तनाव प्राप्त ना कर पाना, हमेशा तनाव कायम न रख पाना या तनाव को थोड़ी ही देर तक कायम रख पाना होता है.
आयुर्वेद स्तम्भन दोष (ED) को इस प्रकार परिभाषित करता है.
यद्यपि पुरुष अपनी सहयोगी साथी के साथ यौन क्रिया करने की तीव्र इच्छा रखता है, किन्तु लिंग में ढीलेपन (तनाव की कमी) के कारण वह यौन सम्बन्ध नहीं बना पाता. यदि वह अपने भरपूर प्रयासों से यौन क्रिया करता भी है तो वह तनाव प्राप्त नहीं कर पाता और थकान, पसीने और कुंठा से भर जाता है.
स्तम्भन का शरीर-विज्ञान
लिंग के दो कक्ष/हिस्से (कॉर्पोरा केवरनोसा), जो अंग में बने होते होते हैं वे स्पंज जैसे ऊतकों से भरे होते हैं. कॉर्पोरा केवरनोसा ट्यूनिका अल्ब्यूगिनिया नाम की एक झिल्ली से घिरे होते हैं. स्पंजी ऊतकों में मांसपेशियों, रेशेदार ऊतक, रिक्त स्थान, नसें, और धमनियां होती हैं. कॉर्पोरा केवरनोसा के साथ-साथ मूत्र-मार्ग भी होता है जो मूत्र और वीर्य के लिए बना मार्ग होता है.
संवेदी या मानसिक उत्तेजना, या दोनों, के कारण लिंग में उत्थान शुरू होता है. मस्तिष्क और स्थानीय तंत्रिकाओं से प्राप्त संकेतों के कारण कॉर्पोरा केवरनोसा की मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं और रक्त को भीतर आने और स्पंजी ऊतकों में उपस्थित रिक्त स्थान को भरने का मार्ग देती हैं.
रक्त का बहाव कॉर्पोरा केवरनोसा में दबाव बनाता और बढ़ाता है, और इससे लिंग आकार में बढ़ने लगता है. ट्यूनिका अल्ब्यूगिनिया यानि झिल्ली रक्त को कक्षों में कैद रखने में मदद करती है, और इस प्रकार लिंग का स्तम्भन कायम रहता है. जब लिंग की मांसपेशियां रक्त की आवक को रोकने के लिए सिकुड़ती हैं और बाहर जाने के रास्ते खोलती हैं, तो स्तम्भन यानि तनाव घटने लगता है.
आयुर्वेद में स्तम्भन और वीर्य-पात को निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है
5 प्रकार की वायु में से एक “अपानवायु”, वृषणों, मूत्राशय, शिश्न, नाभि. जंघाओं, उसंधी, गुदा और आँतों में स्थित होती है. इसका कार्य वीर्य का पतन करना और मल-मूत्र का निकास करना होता है.
सुश्रुत लिंगोत्थान और वीर्यपात को इस प्रकार वर्णित करते हैं “जब पुरुष को यौनेच्छा उत्पन्न होती है तो स्पर्श के प्रति उसकी प्रतिक्रिया बढ़ जाती है (त्वचा में उपस्थित वायु त्वचा से मस्तिष्क तक संकेत लेकर जाती है, और इस प्रकार स्पर्श की संवेदना उत्पन्न होती है). इससे कामोत्तेजना या “हर्ष” उत्पन्न होता है. कामोत्तेजना या हर्ष वायु की गतिविधियों को और तीव्र करते हैं और इन क्षणों में अति सक्रिय वायु “तेज” या पित्त के ताप को मुक्त कर देती है. यानि तेजस और वायु शरीर के तापमान, ह्रदय गति और रक्त संचार को बढ़ा देते हैं और इससे तनाव उत्पन्न होता है.”
स्तम्भन दोष (ED) के कारण
स्तम्भन के लिए कई चीजों या घटनाओं का एक ख़ास श्रंखला क्रम में होना जरुरी है. यदि इनमें से कोई भी घटना अव्यवस्थित हो जाए तो यह स्तम्भन दोष को जन्म दे सकती है. मस्तिष्क में तंत्रिका संवेदनाएं, रीढ़ की हड्डी, लिंग के इर्द-गिर्द और मांसपेशियों में प्रतिक्रियाएं, रेशेदार ऊतक, नसें, और कॉर्पोरा केवरनोसा के अन्दर और इर्द-गिर्द धमनियां घटनाओं की श्रंखला में शामिल होती हैं. इस श्रंखला में शामिल किसी भी हिस्से (नसें, धमनियां, मांसपेशियां, रेशेदार या तंतु ऊतक) में कोई चोट या क्षति स्तम्भन को नुकसान पहुँचा सकती है.
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का कम स्तर: टेस्टोस्टेरोन प्राथमिक पुरुष हार्मोन है. 40 के बाद से पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर धीमे-धीमे कम होने लगता है. चिकित्सकों द्वारा देखे जाने वाले स्तम्भन दोष के 5% मामलों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम पाया जाता है. इन मामलों में से कई में, कम टेस्टोस्टेरोन स्तर यौनेच्छा में कमी का कारण होता है, ना कि स्तम्भन दोष का. सम्पूर्ण पुरुष शरीर टेस्टोस्टेरोन से प्रभावित होता है.
सुश्रुत भी शरीर की इस अवयव “शुक्र” के प्रति संवेदना और प्रभाव को उल्लेखित करते हैं. उन्होंने कहा है “शुक्र (वह अवयव जो प्रजनन में सहायक होता है) पूरे शरीर में पाया जाता है. किन्तु शुक्र का निचोड़ (वीर्य) स्खलन की प्रक्रिया के माध्यम से शरीर के बाहर आता है. किन्तु स्खलन की इस प्रक्रिया के लिए मैन और शरीर के आनंददायक मिलन की आवश्यकता होती है. “शुक्र धातु” की उत्पत्ति में कमी स्तम्भन दोष का कारण बनती है.
अति श्रम – शारीरिक और मानसिक : ऑफिस में देर तक काम करना, ऑफिस और घर में मानसिक तनाव, चिडचिडापन, अपर्याप्त नींद आदि स्तम्भन दोष का कारण बनते हैं.
यौन साथी के साथ तनावपूर्ण सम्बन्ध: यौन साथी के प्रति आकर्षण में कमी या नापसंदगी भी स्तम्भन दोष का कारण हो सकती है.
वे रोग जो स्तम्भन दोष का कारण बन सकते हैं: तंत्रिका संबंधी विकार, हाइपोथायरायडिज्म, पार्किंसंस रोग, एनीमिया, अवसाद, गठिया, अंतःस्रावी विकार, मधुमेह, ह्रदय व रक्त वाहिनी प्रणाली से संबंधित रोग आदि भी स्तम्भन दोष का कारण बन सकते हैं.
दवाओं, नशीले पदार्थों और तंबाकू का सेवन: अवसाद-नाशकों, प्रशान्तकों और उच्चरक्तचापरोधी दवाओं का लम्बे समय तक इस्तेमाल, तंबाखू खासकर धूम्रपान की लत, शराब का स्त्याधिक सेवन, कोकीन, हेरोइन और गाँजे की लत स्तम्भन शक्ति का नाश करती है.
श्रोणि क्षेत्र पर आघात: श्रोणि क्षेत्र पर दुर्घटना से चोट और प्रोस्टेट, मूत्राशय, आंत्र, या गुदा मार्ग की शल्य चिकित्सा भी स्तम्भन दोष को जन्म दे सकती है.
अन्य कारण: मोटापा, लंबे समय तक साइकिल की सवारी, पहले कभी यौन दुर्व्यवहार और बुढ़ापा भी स्तम्भन दोष का कारण बन सकता है.
नपुंसकता या स्तम्भन दोष का आयुर्वेदिक उपचार और चिकित्सा ( Ayurvedic Remedies for Erectile Dysfunction)
स्तम्भन दोष का इलाज़ हर उम्र में हो सकता है. आयुर्वेद में नपुंसकता के पूर्ण उपचार को “वाजीकरण चिकित्सा” कहा जाता है. यह प्राकृतिक जड़ी-बूटी से किया जाने वाला उपचार, पुरुष की मर्दाना ताकत को घोड़े जैसा बना देता है, इसलिए इसे “वाजीकरण” कहा जाता है. (‘वाजी’ = घोड़ा)
1. वाजीकरण चिकित्सा या स्तम्भन दोष के लाभ हैं
- प्रसन्नता
- शक्ति में वृद्धि
- स्वस्थ संतान पैदा करने की क्षमता
- स्तम्भन यानि लिंगोत्थान के समय में बढ़त
वाजीकरण चिकित्सा के लिए पात्रता
1. वाजीकरण थेरेपी उन लोगों को दी जानी चाहिए जो 18 से 70 वर्ष के बीच हों.
2. ये उपचार केवल एक आत्म नियंत्रित व्यक्ति को दिए जाने चाहिए. यदि ये उपचार किसी ऐसे व्यक्ति को दिए जाएँ किसका स्वयं पर यथोचित नियंत्रण ना हो तो वह अपने अवैध यौन कृत्यों द्वारा समाज के लिए उपद्रव का कारण बन सकता है.
2. मनोचिकित्सा
मनोचिकित्सा के माध्यम से संभोग से जुड़ी चिंता को कम करना भी स्तम्भन दोष (ED) के उपचार में सहायक सिद्ध होता है. रोगी का साथी भी इस तकनीक में मददगार होता है. अंतरंगता और उत्तेजना के शनै-शनै वृद्धि लाभदायक होती है. शारीरिक कारणों से उत्पन्न स्तम्भन दोष के उपचार के दौरान इस तकनीक का प्रयोग चिंता और घबराहट से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकता है.
3. औषधीय चिकित्सा
आयुर्वेद में स्तम्भन दोष (ED) या नपुंसकता का इलाज करने के लिए कई जड़ी-बूटी आधारित मिश्रणों और दवाओं का उल्लेख किया गया है. यह कहा गया है कि यौनेच्छा उग्र होती है, जो लोग यौन क्रीड़ा का नियमित रूप से आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें इन औषधियों का नियमित सेवन कर ऊर्जा, जोश, शक्ति, आतंरिक बल व ताकत को बनाये रखना चाहिए. ये औषधियां उन पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करती हैं, जो वीर्य के उत्पादन के लिए जरूरी होती हैं.
स्तम्भन दोष या नामर्दी से निपटने के लिए आयुर्वेद युक्तियाँ
• प्रजनन अंगों को फिर से जीवंत करने के लिए हर्बल औषधियों का सेवन
• ऐसे औषधीय यानि हर्बल तेलों से शरीर की मालिश, जो श्रम से क्लांत शरीर को राहत दे और कामोद्दीपक के रूप में भी कार्य करे
• मानसिक थकान को दूर करने और तनाव से निपटने के लिए योग और ध्यान का नियमित अभ्यास
• प्रतिदिन कम से कम 8 घंटे की अच्छी नींद
• शराब, तंबाकू, हेरोइन आदि का सेवन ना करना
• नित्य व्यायाम
• गर्म, ज्यादा मसालेदार और कड़वे भोजन से बचना
• मिष्ठान्न, दुग्ध उत्पाद, मेवे, और उड़द दाल का सेवन
• अपने आहार में थोड़ा घी जोड़ना
• दो संभोगों के बीच चार दिनों का अंतर रखना
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