हमारे लिए आयुर्वेद का एक अमूल्य तोहफा है | हिंग्वाष्टक चूर्ण अजीर्ण , अपच और गैस की समस्या में एक रामबाण औषदी है | ज्यादातर रोग पेट के रास्ते ही पनपते है, अगर पेट को स्वस्थ रखा जाये तो हम बहुत से रोगों से बच सकते है | ज्यादा भोजन करने और गरिष्ट भोजन करने से खाना समय पर पच नहीं पाता और अजीर्ण हो जाता है |
अजीर्ण का मतलब है की पहले का खाना पचने से पहले ही दुबारा भोजन कर लेना | पहले का अजीर्ण भोजन पेट में सड़ने लगता है और गैस की समस्या हो जाती है | गैस पेट से बाहर आने की कोशिस करती है लेकिन बाहर नहीं निकल पाती जिससे पेट में दर्द शुरू हो जाता है इसे ही आम भाषा में आफरा कहते है |
अब चाहे पेट को मसलो या रगडो कुछ फर्क नहीं पड़ता | अजीर्ण और गैस की समस्या के कारण मनुष्य की अग्नि मंद हो जाती है अर्थात मन्दाग्नि से पीड़ित हो जाता है और भूख नहीं लगती |इन्ही समस्याओं में हिंग्वाष्टक चूर्ण का इस्तेमाल सबसे अधिक लाभदायक होता है |
अब शरीर इस सड़े हुए मल को निकलने की यथा संभव कोशिश करता है लेकिन इस कोशिश में शरीर अपने सह अंगो पर दबाव डालता है अर्थात यकृत और अन्य पाचक रसायनों के द्वारा उसे बहार निकलने की कोशिश में पतले दस्त ( पेचिस ) और वमन होने लगते है |
अब इसके बाद होती है शरीर में पानी की कमी और इससे अमीबा और अन्य जीवाणु सक्रिय हो जाते है और पेचिस और आंव आने लगते है | धीरे धीरे आंते भी अपनी सक्रियता घटा लेती है और भोजन ज्यादा देर शरीर में टिक नहीं पाता |
अब भोजन के समय से पहले ही शरीर से बाहर निकल जाने से पोषण सही तरीके से हो नहीं पता और शरीर अन्य जिवाणुओ के सम्पर्क में आने से अन्य रोग हो जाते है |
इसलिए कहा भी है कि – आधा भोजन कीजिये, दुगुना पानी पीव |
तिगुना श्रम-चोगुनी हंसी वर्ष सवा सो जीव ||
अगर परिस्थितिवस् ये रोग हो जावे तो हिंग्वाष्टक चूर्ण इसकी रामबाण दवाई है | आपको किसी डॉ के पास जाकर पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं | इसलिए आज जानते है – हिंग्वाष्टक चूर्ण कैसे बनाते है और इसके सेवन से किन – किन रोगों में लाभ मिल सकता है |
हिंग्वाष्टक चूर्ण बनाने की विधि
पहले – सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, अजवायन, सेंधा नमक, काला जीरा, सादा जीरा इन सब को 10-10 ग्राम की मात्रा में ले लेवे और इनको कूट छांट कर चूर्ण बना ले | अब 5 ग्राम हिंग ले और उसे देशी गाय के घी में अच्छी तरह भून कर इसका भी चूर्ण बना ले | तत्पश्चात इन सभी द्रव्यों(औषधियों) को अच्छी तरह मिला लेवे | हिंग्वाष्टक चूर्ण तैयार है |
ध्यान दे इस चूर्ण को किसी अच्छी तरह शीशी में बंद कर के रखे ताकि शीलन के कारण चूर्ण जल्दी ख़राब न हो |
मात्रा और सेवन विधि
भोजन करने से पूर्व आधा चम्मच की मात्रा में गरम पानी के साथ ले | हिंग्वाष्टक को गाय के घी में मिला कर भी ले सकते है | लेकिन याद रहे खाली पेट या भोजन करने से पहले इसे लेना चाहिए |
लाभ
पेट दर्द और गैस की समस्या में हिंग्वाष्टक चूर्ण का उपयोग करना चाहिए क्योकि हिंग्वाष्टक आंत में रुकी हुई वायु को बहार निकालती है जिससे गैस के कारण होने वाले पेट दर्द में चमत्कारिक लाभ मिलता है
इसे गरम पानी के साथ लिया जावे तो पेट में रुकी हुई अपान वायु झट से बाहर निकल जाती है और पेट के तनाव को ख़त्म करती है |
हिंग एक अच्छा पाचक द्रव्य है | इसलिए हिंग्वाष्टक के उपयोग से भोजन शीघ्र पचता है | जिनको अपच की बीमारी है उन्हें अवश्य ही हिंग्वाष्टक का उपयोग करना चाहिए |
जिन्हें कब्ज रहती हो और पेट के कीड़ो से परेशां हो उन्हें भी हिंग्वाष्टक से चमत्कारिक लाभ होता है यह परखा हुआ नुस्खा है |
जिनकी आंते कमजोर हो अर्थात भोजन करते ही मल त्यागने जाना पड़ता हो – उनको हिंग्वाष्टक चूर्ण में जावित्री, जायफल और कपूर थोडा थोडा मिला के खाना चाहिए | अवश्य ही लाभ मिलेगा |