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गुग्गुल के आयुर्वेदिक उपचार

  


आयुर्वेद में गुग्गुल  का प्रयोग औषधि के रुप में किया जाता है। गुग्गुल के तने को काटने से एक गोंद जैसा पदार्थ निकलता है और ठंडा होने के बाद ठोस हो जाता है। गुग्गुल का भारत के हर्बल दवाओं में अभिन्न स्थान है। ये स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होने के साथ-साथ कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में काम करता है। 

गुग्गुल वृक्ष के किसी भी हिस्से को तोड़ने से उसमें से एक प्रकार की सुगन्ध निकलता है। इस वृक्ष से प्राप्त गोंद को ही गुग्गुलु कहते हैं। आयुर्वेदीय ग्रंथों में महिषाक्ष, महानील, कुमुद, पद्म और हिरण्य गुग्गुलु इन पाँच भेदों का वर्णन मिलता है। महिषाक्ष गुग्गुलु भौंरे के समान काले रंग का होता है। महानील गुग्गुलु  नीले रंग का, कुमुद गुग्गुलु कुमुद फल के समान रंगवाला, पद्म गुग्गुल माणिक्य के समान लाल रंग वाला तथा हिरण्याक्ष गुग्गुलु स्वर्ण यानि सोने के समान आभा वाला होता है। यह 1.2-1.8 मी ऊँचा, शाखित, छोटे कांटा वाला वृक्षक होता है। यह गाढ़ा सुगन्धित, अनेक रंग वाला, आग में जलने वाला तथा धूप में पिघलने वाला, गर्म जल में डालने से दूध के समान हो जाता है। व्यवहारिक प्रयोग में आने वाला गुग्गुलु हल्का पीले वर्ण का निर्यास होता है, जो कि छाल से प्राप्त होता है, यह अपारदर्शी, रक्ताभ-भूरे रंग का एवं धूसर यानि भूरा-काले रंग का होता है।

गुग्गुल गोंद की तरह होता है जो गर्म तासिर का और कड़वा होता है।

नया गुग्गलु चिकना, सोने के समान, निर्मल, सुगन्धित, पीले रंग का तथा पके जामुन के समान दिखने वाला होता है। इसके अलावा नवीन गुग्गुलु फिसलने वाला, वात, पित्त और कफ को दूर करने वाला, धातु और शुक्राणु या स्पर्म काउन्ट बढ़ाने वाला और शक्तिवर्द्धक होता है।  

पुराना गुग्गुलु कड़वा, तीखा, सूखा, दुर्गन्धित, रंगहीन होता है। यह अल्सर, बदहजमी, अश्मरी या पथरी, कुष्ठ, पिडिका या मुँहासे, लिम्फ नॉड, अर्श या बवासीर, गण्डमाला या गॉयटर, कृमि, खाँसी, वातोदर, प्लीहारोग या स्प्लीन संबंधी समस्या, मुख तथा आँख  संबंधी रोग दूर करने में सहायता करता है। 

गुग्गुलु का साग मीठा, कड़वा, ठंडे तासीर का, रूखा, कफवात को कम करने वाला होता है। गुग्गुल मधुर रस से भरा होने के कारण गुग्गुलु वात को कम करता है। कषाय (pungent) रस होने से यह पित्त को दूर करने में मदद करता है तो तिक्त रस होने से कफशामक होता है।

कृष्णवर्णी गुग्गुलु रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना) में लाभकारी और पीले रंग का गुग्गुलु कफपित्त को कम करने वाला होता है।

सफेद रंग का गुग्गुलु के लाभ वात और पित्तज संबंधी बीमारियों के चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।

गुग्गुल के फायदे  

गुग्गुल जो पेड़ से गोंद के रूप प्राप्त किया जाता है उसको औषधि के रुप में प्रयोग करने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें विटामिन, एंटीऑक्सिडेंट, क्रोमियम जैसे अनेक घटक होते हैं। इनके कारण गुग्गल कई प्रकार के रोगों के लिए फायदेमंद साबित होता है। चलिये अब ये जानते हैं कि गुग्गुल किन-किन बीमारियों में और कैसे फायदेमंद हैं।

आँखों के रोग में फायदेमंद गुग्गुल 

125 मिग्रा योगराज गुग्गुलु  को सुबह शाम 10-40 मिली त्रिफला काढ़ा (triphala guggul) के साथ सेवन करने से नेत्र संबंधी विभिन्न रोगों में लाभ होता है।

खट्टी डकार या अम्लपित्त से दिलाये राहत गुग्गुल 

खान-पान में असंतुलन होने पर एसिडिटी हो जाता है और फिर खट्टी डकार आने लगती है। समान भाग में वासा, नीम, परवल का पत्ता, त्रिफला तथा गुडूची काढ़े से सिद्ध करके गुग्गुलु का नियमित सेवन करने से अम्लपित्त रोग या खट्टी डकार से राहत मिलती है।

पेट का रोग या उदर रोग में फायदेमंद गुग्गुल 

3 माह तक अन्न का परित्याग करके केवल दूध के आहार पर रहते हुए 128 मिग्रा से 5 ग्राम तक शुद्ध गुग्गुलु का सेवन करने से उदर रोग में अत्यंत लाभ होता है। इसके अलावा 10-40 मिली पुनर्नवादि काढ़े के साथ 125 मिग्रा योगराज गुग्गुलु  का सुबह शाम सेवन करने से पेट के रोग में लाभ होता है।

भगन्दर या फिस्टुला से दिलाये राहत गुग्गुल 

125 मिग्रा त्रिफला काढ़ा के साथ गुग्गुलु (triphala guggul) का सेवन करने से भगन्दर रोग (फिस्टुला) में फायदा मिलता है। इसके अलावा महिषाक्ष गुग्गुलु तथा विडङ्ग के समान भाग के चूर्ण को खदिर या त्रिफला काढ़े के साथ पीने से अथवा केवल गुग्गुलु को पंचतिक्तघृत के साथ सेवन करने से भगंदर रोग में जल्दी आराम मिलता है। नव कार्षिक गुग्गुलु का सेवन करने से भगन्दर, कुष्ठ, नाड़ीव्रण में लाभ मिलता है। 

विद्रधि या घाव में गुग्गुल से लाभ 

125-250 मिग्रा शुद्ध गुग्गुलु को गोमूत्र के साथ नियमित सेवन करने से कफज विद्रधि में लाभ होता है। शुद्ध श्रेष्ठ गुग्गुलु (125 मिग्रा), सोंठ (250 मिग्रा) तथा (125 मिग्रा) देवदारु चूर्ण को मिलाकर नियमपूर्वक सेवन करने से घाव जल्दी सूख जाता है।

पांडूरोग या एनीमिया में फायदेमंद गुग्गुल 

गोमूत्र के अनुपान के साथ 125 मिग्रा योगराज गुग्गुलु  को प्रात सायं 15 दिनों तक शहद के साथ सेवन कराने से पाण्डुरोग तथा सूजन में अत्यन्त लाभ होता है।

व्रण या अल्सर से दिलाये राहत गुग्गुल 

10-30 मिली त्रिफला काढ़ा अथवा रस में 125 मिग्रा गुग्गुलु मिलाकर पीने से बहने वाले घाव को ठीक होने में मदद मिलती है। गुग्गुलु को पीसकर व्रण या अल्सर के घाव पर लेप अथवा गोमूत्र के साथ पीसकर नाड़ीव्रण पर लगाने से अत्यन्त लाभ होता है।

अर्श या बवासीर से राहत दिलाये गुग्गुल

गुग्गुलु, लहसुनहींग तथा सोंठ को जल के साथ पीसकर 125 मिग्रा की गोली बनायें। प्रात सायं 1-1 गोली ठंडे पानी के साथ देने से अर्श या कृमी के इलाज में मदद मिलती है।

स्थौल्य रोग या मोटापा को कम करने में गुग्गुल के लाभ

125 मिग्रा शुद्ध गुग्गुलु को अग्निमंथ की छाल से बने काढ़े (10-30 मिली) के साथ लम्बे समय तक सेवन करने से स्थौल्य (मोटापा) में लाभ होता है। 125 मिग्रा योगराज गुग्गुलु  को सुबह शाम 15 दिनों तक शहद के साथ सेवन कराने से मोटापा घटता है।

वातरक्त या गाउट के दर्द को करे कम गुग्गुल 

आजकल के जीवनशैली में जोड़ो में दर्द किसी भी उम्र में हो जाता है। 125 मिग्रा योगराज गुग्गुलु को बृहत्मंजिष्ठादि काढ़ा (10-40 मिली) अथवा गिलोय काढ़ा (10-30 मिली) के साथ सुबह शाम देने से जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।

जोड़ो के दर्द के लिए गुग्गुल के फायदे 

जोड़ों का दर्द, शरीर में वात दोष के बढ़ने के कारण होता है। गुग्गुल इस दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद होता है क्योंकि उसमें मधुर रस होने के कारण वात दोष को कम करने की क्षमता होती है। 

गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं में गुग्गुल के फायदेमंद 

यूट्रस या गर्भाशय से जुड़ी परेशानियों जैसे कि फ़िब्रॉइड आदि वात और  कफ दोष के बढ़ने की वजह से होती हैं। गुग्गुल उष्ण वीर्य होने के कारण यह वात – कफ दोष को कम कर गर्भाशय संबंधी समस्याओं को दूर करने में सहयोग देता है।   

दर्द और सूजन कम करने में फायदेमंद गुग्गुल 

दर्द और सूजन दोनों ही समस्याएँ ऐसी है जो वात दोष के बढ़ने के कारण होती है। गुग्गुल में वात को कम करने की क्षमता होने के कारण एवं अपने उष्ण गुण होने के कारण यह इन दोनों समस्याओं को दूर करने में सहयोग देता है।  

त्वचा के लिए लाभकारी गुग्गुल 

स्किन यानी त्वचा सम्बंधित परेशानियों में भी गुग्गुल लाभदायक होता है क्योंकि इसमें कषाय गुण होने के कारण यह त्वचा को स्वस्थ बनाये रखता है इसके अलावा यह त्वचा से कील – मुहासें जो कि तैलीय त्वचा ने अधिक होते है कषाय होने से यह उनको  भी दूर करने में मदद करता है।

डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक गुग्गुल

डायबिटीज एक ऐसी समस्या है जो कि वात और कफ दोष के असंतुलन  के कारण होती है। गुग्गुल में वात और कफ को कम करने का गुण होने के कारण एवं एक रसायन औषधि होने के वजह से यह डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद करता है। 

कब्ज से राहत दिलाने में लाभकारी गुग्गुल 

कब्ज एक ऐसी समस्या है जो कि पाचन के गड़बड़ होने के कारण एवं वात दोष के बढ़ने के कारण होती है। गुग्गुल में उष्ण गुण होने के कारण यह पाचन को स्वस्थ बनाता  साथ ही वात दोष को कम करता है। इस कारण गुग्गुल कब्ज से राहत देने में सहायक होता है। 

गंजापन दूर करने में गुग्गुल के फायदे 

गंजापन एक ऐसी समस्या है जो कि वात -पित्त और कफ दोष के बिगड़ने की वजह से होती है। इसमें वात कुपित होकर पित्त को भी सम्मलित लेता है जिससे  पाचन बिगड़ता है, जिसके कारण बालों की जड़ों तक उचित मात्रा में पोषण नहीं पहुँच पाता है। इस वजह से बाल झड़ते हैं एवं गंजेपन की नौबत तक आ सकती है। गुग्गुल में, दीपन – पाचन एवं वात – कफ शमन गुण होने के कारण ये यह इस समस्या में भी लाभदायक होता है। 

एसिडिटी से राहत दिलाने में फायदेमंद गुग्गुल 

एसिडिटी का एक कारण अपचन होता है । गुग्गुल में उष्ण एवं दीपन-पाचन गुण पाए जाने के कारण यह पाचक अग्नि को बढ़ाकर पाचन को स्वस्थ बनाये रखता  है । साथ ही यह एसिडिटी को भी कम करने में सहयोगी होता है। 

 गठिया रोग से राहत दिलाने में फायदेमंद गुग्गुल

गठिया एक ऐसी परेशानी है जो कि वात के बढ़ने के कारण होती है और जोड़ों में दर्द की अनुभूति देती है। गुग्गुल में वात को कम करने की क्षमता होती है एवं उष्ण गुण पाया जाता है जिसके कारण यह इस रोग में भी लाभदायक होता है।   

बुखार कम करने में फायदेमंद गुग्गुल

बुखार एक ऐसी समस्या है जो कि किसी भी दोष के गड़बड़ होने के कारण हो सकता है। गुग्गुल में वात – कफ शामक गुण होने के कारण यह इस समस्या से राहत दिलाने में मदद करता है एवं रसायन गुण होने के कारण शरीर के स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाने में भी मदद करता है।

फ्रैक्चर हो जाने पर गुग्गुल का प्रयोग 

फ्रैक्चर हो जाने के कारण वात दोष बढ़ जाता है एवं हड्डियों में कमजोरी-सी आ जाती है। गुग्गुल में वात शामक एवं बल्य गुण होने के कारण यह हड्डियों को बल प्रदान करता है एवं उसे जल्दी ठीक होने में सहयोग देता है।  

गुग्गुल का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए?

बीमारी के लिए गुग्गुल के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए गुग्गुल का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

 चिकित्सक के परामर्शानुसार गुग्गुल का सेवन 125-250 मिग्रा  कर सकते हैं।

बाजार में व्यापारी लोग इसमें कई प्रकार का मिश्रण कर देते हैं। अत: अच्छी तरह परीक्षण कर ही इसे खरीदना चाहिए। तथा सदैव नवीन गूगल का ही व्यवहार करना चाहिए।

गुग्गुल को गोमूत्र, खदिर काढ़ा, दशमूल अथवा अग्निमंथ काढ़ा के साथ सेवन करने से सूजन, कुष्ठ तथा मोटापा में फायदा पहुँचता है।

गुग्गुल का सेवन ज्यादा करने के साइड इफेक्ट

गुग्गुलु का ज्यादा मात्रा में



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