प्रश्न:यू.पी.ए के किस घोटाले ने भारत का सर्वाधिक नुक्सान करा? १) २-G घोटाला २) कोयला घोटाला ३) कॉमन-वेल्थ घोटाला या ४) बैंकिंग घोटाला
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यूँ चारों में से कोई जवाब ग़लत नहीं होगा किन्तु अगर मुझे चयन करना हो तो मैं ४) को चुनूँगा क्योंकि अपने शासनकाल में यू.पी.ए ने राष्ट्रीय बैंकों द्वारा कई करोड़ रुपये मनचाहे रूप से ऋण में बाँटे और आज उन ऋणियों द्वारा उनके भुगतान की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही | परिणाम स्वरुप, आज उन सभी बैंकों की बैलेंस शीट भयभीत करने वाले आँकड़े सामने रख रही हैं|
भारत का आर्थिक पुनरुत्थान तब तक संभव नहीं है जब तक उसके बैंकिंग क्षेत्र को दुरुस्त न किया जाए|
ऐसा नहीं कि बैंकिंग क्षेत्र कि यह अवस्था अभी ही उजागर हो रही है | यू.पी.ए के शासनकाल से कई ऐसे ऋण चुप-चाप माफ़ किये जा रहे थे | इंडियन एक्सप्रेस के इस लेख के अनुसार, 2013 से 2015 के बीच 29 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 1,14,000 करोड़ रुपये के ऋण माफ़ किये | इतनी राशि के ऋण इन बैंकों ने इसके पूर्व के नौ सालों में भी माफ़ नहीं करे थे |
आज के बैकिंग क्षेत्र के नतीजे भी कोईअच्छा समाचार नहीं लाये | पंजाब नेशनल बैंक, देना बैंक, सेंट्रल बैंक और इलाहबाद बैंक के नतीजे इस सप्ताह के आरम्भ में जारी हुए और वे बुरा समाचार ही बने | उल्लिखित चार में से आखरी तीन बैंकों ने बड़े घाटे दर्ज कराये | उसी तर्ज पे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने आज अपने तीसरी तिमाही के नतीजे सार्वजनिक किये | अक्टूबर-दिसंबर 2015 में बैंक का नेट प्रॉफिट 62 प्रतिशत गिरा| पिछले वर्ष, इस ही अंतराल में यह राशि 1115 करोड़ रुपये थी |
किन्तु डरा देने वाले आँकड़े तो उन ऋणों के हैं जिनका भुगतान नहीं हो रहा— इनकी राशि 15,957 करोड़ रुपये से बढ़कर 72,791 करोड़ रुपये हो गयी है | अर्थात, बैंक की मार्किट वैल्यूएशन में 60 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा तो ऐसे ‘असफल’ ऋणों का है | गत 11 जनवरी को बैंक की मार्किट वैल्यूएशन 1,18,000 रुपये बतायी गयी थी | यह दर्शाता है कि बाज़ार राष्ट्रीय बैंकों को कैसे आँकता है |
बैंक ऑफ़ इंडिया के नतीजे तो और भी निराशाजनक रहे | उल्लिखित तिमाही में बैंक ने 1510 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज कराया | यह राशि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के पूरे मार्किट वैल्यूएशन से ज़्यादा है | इसका अर्थ यह हुआ कि जितना बैंक ऑफ़ इंडिया का गत तिमाही में घाटा हुआ, उतनी राशि में वे एक पूरा बैंक खरीद लेते |
आपके सामने इन आँकड़ों के रखने का उद्देश्य स्पष्ट है: घोटाला कोई भी हो, 2-G या कोयला, उसकी एक कड़ी हमेशा किसी बैंक या बैंकों से जुड़ी होती है जो घोटाला करने वालों को मनचाहे ऋण प्रदान करते हैं | अपने स्तर पर बैंक भले ही इसे घोटाला न मानें और इसे मात्र बुरी रणनीति समझें, किन्तु घोटालों और बैंकों के सम्बन्ध को नकारा नहीं जा सकता | संभवतः, हर घोटाले के पीछे किसी न किसी बैंक का पैसा ज़रूर पाया जाएगा |
उदाहरण हेतु, विजय माल्या की कंपनी, किंगफ़िशर ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से 7000 करोड़ रुपये उधार लिए जो वापस नहीं करे | परिणामस्वरुप, किंगफ़िशर की असफलता का दंड माल्या से ज़्यादा स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने भोगा |
इस तिमाही के बुरे नतीजे आर.बी.आई के उस निर्देश के कारण हैं जिसके अनुसार बैंकों को अपनी बैलेंस शीट में उन ऋणों को भी गिनना था जिनके भुगतान न होने को बैंकों ने औपचारिक रूप में स्वीकारा नहीं था |
किन्तु बैंकों का बुरा समय यहीं ख़त्म नहीं होता | संभवतः, अगली तिमाही के नतीजों में बैंक और भी ऐसे ऋणों का खुलासा करें |
आखरी गिनती पर बैंकों के ऐसे ऋणों की कुल राशि चार लाख करोड़ रुपये थी | अगली तिमाही के अंत तक शायद यह राशि शायद पाँच लाख करोड़ हो |
यहाँ पे मुख्य बिंदु यह है: इनमें से बहुत से ऋण वह होंगे जो यू.पी.ए ने अपने चहेतों में बाँटे |
भारतीय अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान इस लिए स्थगित है क्योंकि उसका बैंकिंग तंत्र चरमरा चुका है |
अगली बार जब राहुल गाँधी पूँछे की “कहाँ हैं अच्छे दिन?” तो उनको यह बताया जाए कि अच्छे दिन तब तक नहीं आ सकते जब तक बैंकिंग क्षेत्र में यू.पी.ए द्वारा करी गयी क्षति की पूर्ती नहीं हो जाती |