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मसाणिया भैरव धाम के उपासक चम्पालाल महाराज को चुनाव आचार संहिता का नोटिस दिया जाना कितना उचित?

मसाणिया भैरव धाम के उपासक चम्पालाल महाराज को चुनाव आचार संहिता का नोटिस दिया जाना कितना उचित?
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19 अक्टूबर को अजमेर के पटेल मैदान पर रावण दहन के कार्यक्रम में मंच पर मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के द्वारा राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरवधाम के उपासक चम्पालाल महाराज को माला पहनाने के मामले में अब निर्वाचन अधिकार अशोक नाथ योगी ने चम्पालाल महाराज को भी नोटिस जारी कर दिया है। निर्वाचन विभाग ने जानना चाहा है कि महाराज किसके निमंत्रण पर कार्यक्रम में आए थे तथा किन किन लोगों ने आपको माला पहनाई। 23 अक्टूबर को दिए नोटिस का जवाब तीन दिन में मांगा है एक नोटिस नगर निगम के उपायुक्त करतार सिंह को देकर पूछा गया है कि चम्पालाल महाराज को किसने आमंत्रित किया और मंच पर राजनेता कैसे उपस्थित हो गए। इस मामले में मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को पहले ही नोटिस दिया जा चुका है। अजमेर जिले में निष्पक्ष चुनाव हों यह सभी चाहते हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी आरती डोगरा भी निष्पक्ष चुनाव के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं, इसलिए राजनीति से जुड़े नेताओं को लगातार आचार संहिता उल्लंघन के नोटिस दिए जा रहे हैं। इन नोटिसों से राजनेताओं में दहशत भी है, लेकिन आचार संहिता के कारण धार्मिक गतिविधियों को नहीं रोका जा सकता है। चम्पालाल महाराज के प्रति लाखों लोगों के मन में आस्था है। राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरवधाम पर प्रत्येक रविवार को हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इसी स्थान पर सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार भी किया जाता है। जल संरक्षण हो या बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ तथा नशा छुड़ाने जैसे अभियानों में राजगढ़ धाम की सकारात्मक भूमिका रही है। अपने सरल स्वभाव की वजह से उपासक चम्पालाल महाराज सार्वजनिक समारोह में उपस्थित होते रहे हैं। 19 अक्टूबर को भी रावण दहन के समारोह को धार्मिक मानते हुए चम्पालाल महाराज ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। महाराज किसी भी समारोह में जाते हैं तो अनेक लोग उन्हें मालाएं भी पहनाते हैं। यह बात कोई मायने नहीं रखती की माला किसने पहनाई है। जहां तक मेयर धर्मेन्द्र गहलोत और चम्पालाल महाराज के संबंधों का सवाल है तो पूरा शहर जानता है कि गहलोत की महाराज के प्रति गहरी आस्था है। गहलोत तो मेयर पद की देन भी महाराज को ही मानते है। इस तथ्य को गहलोत कई बार स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में नगर निगम अथवा गहलोत के निजी कार्यक्रमों में चम्पालाल महाराज की उपस्थिति होती रही है। रावण दहन के कार्यक्रम में चम्पालाल महाराज की उपस्थिति को राजनीति से नहीं जोड़ा जा सकता है।  महाराज एक धर्मगुरु भी है और उन्हें किसी धार्मिक समारोह में उपस्थित होने के लिए निमंत्रण की जरूरत नहीं है। निर्वाचन विभाग को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हो। महाराज के राजगढ़ स्थित मसाणिया भैरव धाम पर सभी राजनीतिक दलों के नेता उपस्थित होते हैं और वे सभी को समान रूप से आशीर्वाद प्रदान करते हैं। समाज में चम्पालाल महाराज की स्थिति सम्माननीय है। ऐसे में प्रशासन को उनकी धार्मिक गरिमा को भी ध्यान रखना चाहिए। यह माना कि 19 अक्टूबर का रावण दहन का कार्यक्रम नगर निगम के खर्चे पर हो रहा था, लेकिन समारोह में कोई धार्मिक गतिविधि न हो ऐसा विचार उचित नहीं माना जा सकता। निर्वाचन विभाग को इस मसले पर राजनेताओं और निगम के अधिकारियों के विरुद्ध जो भी कार्यवाही करनी है, उसे अंजाम दिया जाना चाहिए। लेकिन इस विवाद में चम्पालाल महाराज को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (24-10-18)
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