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कहानी- देशभक्ति


शाम
के वक्त एक बड़े रेस्टोरेंट में 4-5 विश्वविद्यालयीन दोस्त बैठकर नाश्ता आने का इंतजार कर रहे थे। एक दोस्त ने कहा, ''अमन, तेरी डीपी का तिरंगा तो बहुत ही सुंदर है। वैसे मोदी जी ने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा फहराने का और अपने सोशल अकाउंट की डीपी पर तिरंगे वाली फोटो लगाने का जो आग्रह किया था उससे देश के हर नागरिक के दिलोदिमाग में देशभक्ति की भावना जागृत हुई है। आज व्हाट्स एप्प खोलते ही हर एक की डीपी पर तिरंगा शान से लहरा रहा है। पूरे शहर में घर घर तिरंगा देख कर एक तरह का गर्व महसूस हो रहा है।''  

इतने में वेटर राजू (जिसकी उम्र लगभग 12-13 साल होगी) डोसे की प्लेट लेकर आया और उत्सुकतावश अमन की डीपी पर उसकी नजर चली गई। राजू को खुद की डीपी देखते देख कर अमन को अच्छा नहीं लगा।
''क्यों बे, क्या देख रहा है?'' 
राजू एकदम से घबरा गया। 
''कुछ नहीं साब। डीपी पर तिरंगे की सुंदर फोटो है यह सुनकर तिरंगे को देखने की इच्छा को दबा नहीं पाया इसलिए...''
''तू क्या जाने डीपी क्या होती है और देशभक्ति क्या होती है?'' दूसरे दोस्त ने कहा।
''हां साब, मैं एक गरीब बाल मज़दूर हूं। देशभक्ति प्रदर्शित करने के लिए मैं व्हाट्स एप्प की डीपी पर तिरंगे की फोटो नहीं लगा पाया क्योंकि मेरे पास मोबाइल नहीं है! न ही मैं अपने घर पर तिरंगा फहरा पाया क्योंकि मेरे पास घर ही नहीं है! लेकिन इससे ये साबित नहीं होता कि मैं आप लोगों से कम देशभक्त हूं!!"
''चल-चल अपना काम कर...तेरी औकात भी है क्या हम जैसों के मुंह लगने की?" एक दोस्त ने कहा। राजू गर्दन नीची करके नम आंखों से वहां से चला जाता है। 

थोड़ी ही देर में एक बुजुर्ग भिखारी लंगडाता हुआ आकर रेस्टोरेंट मालिक से कुछ खाने मांगता है। रेस्टोरेंट मालिक उसे दो-चार गालियां देकर भगा देता है और बड़बड़ाता है, ''मैं ने क्या यहां पर लंगर खोल रखा है जो आ जाते है फ्री का खाने? ऐसे ही फ्री मेंं सबको बांटने लगा तो मेरा दिवाला निकल जाएगा!'' 
इतने में राजू एक प्लेट में दो रोटी और थोड़ी सी सब्जी उस बुजुर्ग भिखारी को लाकर देता है।
''लो बाबा, खा लो।"
''राजू, बड़ा दानवीर बन रहा है। ये मत समझना कि मैं दोबारा तुझे खाना दुंगा। रहना अब भुखा।" रेस्टोरेंट मालिक ने कहा।
''साब, आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है। मैं नहीं चाहता कि आज के दिन हमारे देश का एक बुजुर्ग और अपाहिज व्यक्ति भूखा रहे...इसलिए...'' राजू ने कहा।
''अरे देखो...देखो...एक भिखारी दूसरे भिखारी को भीख दे रहा है!" अमन ने कहा।
भिखारी शब्द सुनकर राजू का स्वाभिमान जाग उठा।
''मैं भिखारी नहीं हूं। मेरे माता पिता दोनों की कोरोना से मौत होने के पहले हम किराये की एक खोली में रहते थे। लेकिन अब मैं किराए के पैसे नहीं दे सकता इसलिए पास ही के रेल्वे के पुलिया के नीचे दोनों भाई बहन रहते है। मैं सुबह स्कूल जाता हूं और दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक रेस्टोरेंट में काम करता हूं। दिनभर मेहनत करके खुद भी खाता हूं और अपनी छोटी बहन को भी खिलाता हूं। आप लोग यहां पर महंगे रेस्टोरेंट में जो महंगा नाश्ता कर रहे हो वो अपने पापा के पैसों से कर रहे है...आप लोग ही सोचिए कि भिखारी कौन हुआ खुद कमा कर खाने वाला या पापा की कमाई खाने वाले?''
''राजू...!!'' रेस्टोरेंट मालिक जोर से चिल्लाया। राजू डर के मारे थरथर कांपने लगा। उसे पूरा विश्वास हो गया था कि अब उसकी नौकरी गई। लेकिन उसने मन ही मन सोचा कि चाहे नौकरी चली जाए लेकिन आज वो चुप नहीं बैठेगा। गरीब हूं तो क्या हुआ...मैं भी इंसान हूं...मेरा भी आत्मसम्मान है...ये देश जितना अमीर लोगों का है उतना ही गरीबों का भी है। 
''आप लोग मुझे कह रहे थे न कि मुझे क्या पता देशभक्ति क्या होती है? क्या देशभक्ति अमीरों की बपौति है? गरीब लोगों के मन में देशभक्ति की भावना नहीं होती? मैं गरीब हूं तो क्या हुआ एक वक्त भुखा रह लुंगा लेकिन मेरे से जितना हो सकेगा उतना अपने देशवासियों के लिए करुंगा। सिर्फ़ घर पर तिरंगा फहराने को या डीपी पर तिरंगे की फोटो लगाने को देशभक्ति नहीं कहते साब! अपने सभी देशवासियों को अपना समझना जरूरी है चाहे वह अमीर हो या गरीब! क्योंकि सभी इसी भारत देश के नागरीक है!! मुझे एक बात बताइए, आज तो अमीर लोगों ने अपने अपने घरों पर करोड़ों तिरंगे फहरा लिए लेकिन एक-दो दिन बाद इन तिरंंगों का क्या हाल होगा? कहां जायेंगे करोड़ों तिरंगे? आप में से किसी के पास है कोई जबाब? देशभक्ति की बात करते है!!'' 

वहां उपस्थित लोगों में से किसी के भी पास राजू के सवालों का कोई जबाब नहीं था। राजू चुपचाप रेस्टोंरेंट से बाहर जाने लगता है। क्योंकि उसे अच्छे से पता था कि उसके जैसे (जो सच्ची बात बोलते है) को वेटर की नौकरी पर अब रेस्टोरेंट मालिक नहीं रखेगा।  
"राजू कहाँ जा रहा है?" रेस्टोरेंट मालिक ने कहा।
"साब, आप मुझे नौकरी से निकालोगे उसके पहले मैं खुद ही नौकरी छोड़ कर जा रहा हूं।" राजू ने कहा।
रेस्टोरेंट मालिक कुछ कहते इसके पहले ही अमन बोला,"अंकल, प्लीज़ राजू को नौकरी से मत निकालिए। गलती हमारी ही है। हमने ही उसकी देशभक्ति पर सवाल उठाए थे और हमने ही उसकी गरीबी का मजाक बनाया था। उसने तो आज हमारी आंखे खोल दी। इस छोटे बच्चे ने हमें सिखा दिया कि देशभक्ति किसे कहते है और स्वाभिमान से जीना किसे कहते है। प्लीज अंकल इसे नौकरी से मत निकालिए।"
"राजू, वो आठ नंबर की टेबल साफ़ कर जल्दी से...।" रेस्टोरेंट मालिक की ऐसी आवाज सुनकर राजू और अमन एवं उसके दोस्तों के चेहरे पर खुशी छा गई।

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