आज मेरी पक्कम पक्की सहेली दीपाली आते से ही कहने लगी कि ज्योति, तुझे मेरा एक काम करना है।
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"क्या काम है?"
"मेरे बेटे की बेटी के लिए कोई अच्छा सा और नया नाम बता। नाम बिल्कुल नया और वो क्या बोलते है यूनिक होना चाहिए।"
"नाम कितना भी नया और यूनिक क्यों न रखें कुछ दिनों बाद तो वो पुराना हो ही जाता है। वैसे शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है?"
"कौन से जमाने की बात कर रहीं है तू? शेक्सपियर सोलहवीं सदी का था और आज बाइसवीं सदी चालू है! आज नाम याने ब्रांड ही सब कुछ है। तभी तो ब्रांडेड जूते एयर कंडीशनर शो रूम में और किताबें फुटपाथ पर बिकती है। बड़े स्टार याने नाम वाले को छींक भी आई तो ख़बर बन जाती है। अखबारों में इस बात की भी चर्चा होती है कि तैमूर ने पॉटी की या नहीं। अपने बच्चों के लिए तो कभी कोई पड़ोसी भी नहीं पूछता। नाम की ही तो सारी महिमा है। तभी तो आज कई शहरों के,सरकारी योजनाओं को और संस्थानों के नाम बदले जा रहे है।" दीपाली ने कहा।
"तुम मुझे बताओ कि क्या 'इलाहाबाद' का नाम 'प्रयागराज' रखने से या 'गुडगांव' का नाम 'गुरुग्राम' रखने से वहां के लोगों के जीवन में थोड़ा सा भी कुछ बदलाव आया? क्या वहां के लोग पहले से ज्यादा सुखी हुए? नहीं न! जिंदगी भर ब्रांड के पीछे भागने वालों को पता होना चाहिए कि कफ़न का कोई ब्रांड नहीं होता! नाम बदल देने से या बहुत अच्छा नाम रखने से कुछ नहीं होता।" मैं ने कहा।
"ऐसे कैसे कुछ नहीं होता? अच्छे नाम का प्रभाव अच्छा ही पड़ता है। यदि हमने बच्चों के नाम अच्छे रखें तो वो नाम हमें सुनते वक्त भी अच्छे लगते है। इससे हमें सुकून मिलता है। इसलिए ही जुने जमाने में लोग अपने बच्चों के नाम भगवान के नाम पर रखते थे (जैसे कि कान्हा, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि) ताकि जब भी बच्चे को पुकारे तो अनजाने में भगवान का नाम लिया जाय।"
"भगवान का नाम रखने से भगवान का नाम लिया जाता है यह सच है। लेकिन तुम मुझे बताओ कि क्या भगवान का नाम रखने से उस बच्चे में थोड़े से भी उस भगवान के गुण आते है? नहीं न! वास्तव में नाम इंसान की वास्तविक पहचान नहीं है। इंसान की वास्तविक पहचान उसके काम से जुड़ी है, उसके व्यक्तित्व से जुड़ी है। लता मंगेशकर का यह गाना 'नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे…' तो तुम्हें पता है न!"
"हा, पता है। तो..."
"इस गाने में यहीं तो बताया गया है कि नाम गुम जाएगा, चेहरा बदल जाएगा लेकिन लता जी की आवाज ही उनकी पहचान है। उनकी आवाज ने ही लता जैसे साधारण नाम को ब्रांड बना दिया। जरा सोच यदि लता जी का नाम लता न होकर सीता, गीता या मीना कुछ भी होता तो क्या वे इतनी कामयाब नहीं होती? वे स्वर कोकिला नहीं कहलाती? उन्हें भारत रत्न पुरस्कार नहीं मिलता? सच्चाई यहीं है कि लता जी को भारत रत्न पुरस्कार लता नाम होने से नहीं तो उनकी आवाज की वजह से, उनकी काबिलियत की वजह से मिला। सचिन को क्रिकेट का भगवान और अमिताभ को सदी का महानायक उनकी नाम की वजह से नहीं तो उनके कार्यो की वजह से कहा जाता है।
नाम के पीछे भागने वाली आधुनिक पीढ़ी को यह बात समझनी होगी कि गुण और विशेषताएं नाम की मोहताज नहीं होती। हमें जरूरत है अच्छा इंसान बनने की और अच्छे कर्म करने की। यदि हमारे कर्म अच्छे है तो हमारे कर्म ही हमारी पहचान बन जाएंगे। इंसान को या उसके नाम को इतिहास में याद नहीं किया जाता। याद किया जाता है इंसान के कामों को!"
"मैं ने तुझे एक बच्ची का नाम सुझाने को कहा था और तू ने तो नाम की ही बखिया उधेड़ दी!"
"नाराज मत हो। वैसे आजकल के बच्चे खुद पढ़े लिखे है। वो खुद ही अपने बच्चों के नाम रखना पसंद करते है। इसलिए आज के आधुनिक माता पिता को खुद ही अपने बच्चों का नाम रखने दे न।"
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