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लघुकथा- सरोगेट मदर


कलेक्टर प्रशांंत की जरूरी मिटिंग शुरू थी। इतने में घर से उनकी पत्नी (प्रमिला) का फोन आया। पत्नी का फोन देख कर प्रशांत एकदम घबरा गए कि ऐसी क्या बात हो गई कि आज प्रमिला को इस वक्त फोन करना पड़ा! क्योंकि उन्होंने घर पर बोल रखा था कि जब तक एकदम कोई इमरजेंसी न हो तब तक ऑफिस टाइम में फोन न लगाये। इससे काम प्रभावित होता है। यदि बॉस ही फोन पर लगा रहेगा तो वो अपने हाथ के नीचे काम करने वाले कर्मचारियों को कुछ नहीं कह पायेगा। उनका मानना था कि यदि हमें हमारे कर्मचारियों से किसी नियम का पालन करवाना है तो हमें खुद पहले उस नियम का पालन करना चाहिए। ऐसे में घर से फोन? 
"क्यों, क्या हुआ" प्रशांत ने घबराकर पूछा। 
"वो अमित...अमित स्कूल से घर नहीं आया है। उसका अपहरण हो गया है। स्कूल के गार्ड ने एक औरत को उसे उठाते हुए देखा भी है। गार्ड उस औरत तक पहुँच पाता तब तक वो गायब हो गई।" प्रमिला ने रोते रोते बताया।
जिला कलेक्टर कार्यालय में तहलका मच गया। तहलका तो मचना ही था। कलेक्टर के बेटे का अपहरण जो हुआ था। पूरे शहर में पुलिस की गाड़ियां फर्राटे भरने लगी। टी वी चैनल वाले सक्रिय हो गए। कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे। रिपोर्टर पक्ष विपक्ष के नेताओं से घटना की प्रतिक्रिया लेने दौड़ पड़े। थोड़ी देर बाद ही अमित भारी बस्ता लटकाए हुए आहिस्ता आहिस्ता घर की ओर जा रहा था। जैसे ही एक पुलिस वाले की नजर उस पर पड़ी उन लोगों ने अमित को घेर लिया। अपना सीना फुलाए हुए और अपनी पीठ थपथपाते हुए पुलिसवाले उसे घर ले गए। 

मामला एक कलेक्टर के बेटे का होने से पुलिस और सरकारी यंत्रणा ने अपराधी को पकड़ने में पूरी ताकत झोंक दी। दो घंटे में ही एक महिला को गिरफ्तार कर लिया गया। कलेक्टर के घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी। नेता, पत्रकार और रिपोर्टर सभी श्रेय लूटने को तत्पर थे। स्कूल के गार्ड एवं अमित दोनों को महिला की शिनास्त करने थाने में बुलाया गया। प्रशांत और प्रमिला अमित को थाने लेकर गए। स्कूल के गार्ड और अमित दोनों ने ही महिला को पहचान लिया। 

मैली और फ़टी साड़ी पहने एक 30-32 साल की महिला जमीन पर बैठी हुई थी। एक लेडी पुलिस इन्स्पेक्टर उस से एसपी के सामने पूछताछ कर रही थी. "बता तेरी गैंग में कितने लोग है? तू कौन से गैंग से जुड़ी हुई है? सब सच सच बता दे नहीं तो मार मारकर तेरी हड्डी पसली तोड़ देंगे। जिंदगी भर जेल में ही रहेगी।" महिला डर के मारे कांप रही थी और सूनी आंखों से प्रशांत और प्रमिला को देख रही थी। 
"उधर क्या देख रही है? बता क्या करते हो तुम लोग बच्चों का? बेचते हो? कितने में बेचते हो?" लेडी पुलिस इन्स्पेक्टर ने महिला से पूछा। साथ ही प्रशांत से कहा कि "मानव तस्करी का मामला लग रहा है सर। जब इन्हे पता चला होगा कि पुलिस अत्यंत सक्रिय हो गई है तो बच्चे को छोड़ कर भाग गए! सर आपके बच्चे को चोट आदि तो नहीं लगी न?" 
"नहीं। लेकिन बच्चे ने बताया कि ये औरत बच्चे को सीने से लगाकर बेतहासा चूम रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई माँ अपने बच्चे को चूमती है। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।" प्रशांत ने कहा।
अपराधी महिला अभी भी प्रशांत और प्रमिला की ओर एक टक देख रही थी। एस.पी. ने लेडी पुलिस इंस्पेक्टर से कहा, "ये लोग बड़े घाग होते है। इसे अंदर ले जाकर थोड़ा अपने पुलिसिया अंदाज में पूछ कर उससे सब कुछ उगलवाओ। आखिर बच्चा चोर गैंग का पता चलना ही चाहिए।" लेडी इंस्पेक्टर उसे जबरदस्ती उठाने लगी। महिला अभी भी सूनी और सपाट आंखों से प्रशांत को घूर रहीं थी। अचानक प्रशांत को जैसे कुछ याद आया और अपने बेटे के अपहरण के पीछे का कारण उनकी समझ में आ गया। वे जोर से बोले,"एक सेकंड इंस्पेक्टर...एक सेकंड रुकिए।" फिर महिला की ओर देख कर बोले, "प्रतिमा....तुम प्रतिमा ही हो न! हां, तुम प्रतिमा ही हो।" 
"सर, क्या आप इसे पहचानते है?" इंस्पेक्टर ने पूछा। 
इंस्पेक्टर के सवाल का कोई जबाब न देकर प्रशांत ने महिला से पूछा, "प्रतिमा, तुमने ऐसा क्यों किया? मुझ से कहा होता मैं खुद तुम्हें अमित से मिला देता।" 
प्रशांत ने इंस्पेक्टर से कहा, "सर, प्लीज इसे छोड़ दीजिए। मैं अपना केस वापस लेता हूं।" 
"ऐसे कैसे छोड़ दे सर। तहकीकात तो करनी पड़ेगी न। ये खुद तो कुछ बता ही नहीं रही। न जाने इसकी गैंग में कितने लोग शामिल है और ये चुराए हुए बच्चों का क्या करते है?" 
"प्रतिमा तुम ही इन लोगों को बताओ तुमने ऐसा क्यों किया। और तुम्हारे पास तो पैसा था फिर तुम्हारी ये हालत कैसे हो गई?" प्रमिला ने पूछा।
प्रतिमा ने रोते रोते बताना शुरू किया "मेमसाब, आपने अपने बच्चे को पेट में रखने का मुझे पूरा पैसा दिया। बल्कि कुछ ज्यादा ही दिया। मेरा पति पहले तो शराब कम पीता था लेकिन अब उसे पता था कि मेरे पास बहुत पैसा है तो उसने बहुत ज्यादा दारू पीना शुरू कर दिया। यदि कभी मैं पैसे नहीं देती थी ताकि वो दारू न पिएं तो मुझे बहुत मारता था। आखिरकार मुझे पैसे देने ही पड़ते। साल भर में ही उसने पूरे पैसे दारू में उड़ा दिए। और दो महीने पहले मिलावटी दारू के कारण उस की मौत हो गई। मैं पूरी तरह बर्बाद हो गई। न तो मेरे पास अब पैसा हैं न ही कोई अपना है। पैसों के लिए मैं ने माँ की ममता को बेच दिया लेकिन माँ की ममता पर अंकुश नहीं लगा पाई। मैं ने बाबा को नौ महीने अपने पेट में रखा है। नारी का पेट कोई सूटकेस तो नहीं है कि उसमें कोई भी चीज कितने भी दिन रखो और कभी भी निकालो सूटकेस को कोई फर्क नहीं पड़ता! कई बार ऐसा लगता कि वो नन्ही जान मुझ से सवाल कर रही हैं कि माँ क्या आप मुझे मेरे पैदा होते ही खुद से अलग कर दोगी? क्या आप मुझे भूल पाओगी? क्या फिर हम कभी मिल नहीं पाएंगे? उस नन्ही जान से मेरा खून का रिश्ता है! मेमसाब, इसलिए मैं बाबा को एक बार सीने से लगाने से अपने आपको रोक नहीं पाई। सरोगेट मदर हूं तो क्या हुआ, हूँ तो माँ ही न! नहीं रोक पाई अपने आप को। कई दिनों से मैं हर रोज बाबा को स्कूल आते जाते चोरी छिपे दूर से देख कर अपने मन को समझा रहीं थी। लेकिन आज अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाई। मुझ से अपराध तो हुआ है। अब आप चाहे जो सजा मुझे दे सकते है। लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि दोबारा मैं बाबा के सामने कभी नहीं आऊंगी। मैं ये शहर छोड़ कर दूर चली जाऊंगी!" 
"इसे छोड़ दीजिए सर। ये मेरे बच्चे की सरोगेट मदर है। माँ की ममता ने इसे मजबूर कर दिया था।" प्रशांत ने इंस्पेक्टर से कहा।
 
बच्चे के अपहरण के पीछे का राज जानकर वहां उपस्थित सभी लोगों की आँखे नम हो गई।

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