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टोक्यो पैरालंपिक: भाविना पटेल का संघर्ष से रजत पदक तक का सफर


टोक्यो
पैरालंपिक में टेबल टेनिस स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीत कर भाविना पटेल ने इतिहास रच दिया है। क्योंकि पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतने वाली भाविना देश की पहली पैरा एथलीट है। सिर्फ़ एक साल की उम्र में पोलियो ग्रस्त होनेवाली भाविना का रजत पदक तक का सफर बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा है। 

अभी तक भाविना का नाम तक कोई जानता नहीं था। लेकिन अब हर कोई उसके बारे में जानने को उत्सुक है। भाविना ने टेबल टेनिस क्लास 4 स्पर्धा के महिला एकल फायनल में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी चीन की झाउ यिंग से मुकाबला कर रजत पदक प्राप्त किया। 34 साल की भाविना को पैरालंपिक की दो बार की स्वर्ण पदक विजेता झाउ के खिलाफ 19 मिनट में 7-11 5-11 6-11 से हार का सामना करना पड़ा। वह दीपा मालिक (रियो पैरालंपिक, 2016) के बाद इन खेलों में पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी है। भाविना पटेल का संघर्ष से रजत पदक तक का सफर...
 
कौन है भाविना पटेल? 
भाविना का पूरा नाम भाविना हसमुख भाई पटेल है। उनका जन्म 6 नवंबर 1986 को गुजरात के मेहसाणा जिले के छोटे से सुंधिया गांव में हुआ। जब वे एक साल की थीं तभी उन्हे पोलियो हो गया था। उनके पिता के पास उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि वे अपनी बेटी का इलाज करा पाते। बाद में बड़ी मशक्कत के बाद पिता ने विशाखापट्टनम में सर्जरी करवाई लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। आसमान छूने का ख्वाब देखने वाली भाविना को भले ही हमेशा के लिए व्हीलचेयर को अपनाना पड़ा लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी। अब भाविना को इन्हीं संघर्षों के साथ जीना था। 

भाविना की शिक्षा 
इन्होंने हार नहीं मानी और गांव में ही 12वीं की पढ़ाई पूरी की। उनके माता-पिता उन्हें स्कूल लाते व ले जाते थे। इसके बाद वो कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने के लिए अहमदाबाद पहुंचीं। वहां पर पिता उन्हें दृष्टिहीन लोगों के लिए बनाए गए संगठन Blinds peoples association में ले गए। वहां टेबल टेनिस खेलने वाले दिव्यांग बच्चों से प्रेरणा लेकर उन्होंने इस खेल को चुना। गौरतलब है कि उन्होंने खेल के प्रति अपने लगाव को पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया और संस्कृत में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बड़े होकर उन्होंने टीचर बनने का सपना पाला था। उन्होंने पढ़ाई पूरी करके टीचर बनने के लिए इंटरव्यू भी दिया लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें यह नौकरी नहीं मिल सकी। 

चुनौतियों भरा सफर 
भाविना ने अपना खर्चा चलाने के लिए एक अस्पताल में नौकरी शुरु कर दी। पैसे कम थे तो उनको कॉकरोच और कीड़ों से भरे अहमदाबाद की एक झोपड़पट्टी में भी रहना पड़ा। टेबल टेनिस खेलने के लिए वे कई सालों तक चार ऑटो और बस बदलकर अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर जाती थी। भाविना 13 साल से टोक्यो पैरालंपिक के लिए तैयारी कर रही थी। उनके कोच ललन दोशी Lalan Doshi 2008 से उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं। पैडलर ने कोविड-19 के कारण लागू हुए लॉकडाउन के दौरान अभ्यास करने के लिए एक टेबल टेनिस-रोबोट की भी मदद ली। उन्होंने 50 हजार रुपये की कीमत का एक सेकेंड हैंड रोबोट खरीदा, जिसने लॉकडाउन के दौरान घर पर रहने के दौरान घंटों तक अभ्यास करने में उनकी मदद की। 

भाविना की शादी 
इस बीच भाविना की मुलाकात निकुल से हुई।निकुल के अनुसार, जब उन्होंने ने देखा कि 90 प्रतिशत दिव्यांग लड़की के हौसले इतने बुलंद हैं, तो वे भाविना से बहुत प्रभावित हुए। दोनों ने शादी कर ली। निकुल शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होने से उनके घरवाले इस शादी के खिलाफ थे और 6 महीने तक वे नाराज रहे। लेकिन अब निकुल के घरवाले उनसे ज्यादा प्यार भाविना से करते हैं। 

भाविना की चुनौती भरी कहानी से पूरे देशवासियों को प्रेरणा मिलती रहेगी। टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीतने के अलावा पहले भी कई सारे पदक अपने नाम किए है। सच में भाविना के हौसले को मेंरा सलाम है। उनका हौसला हमें यहीं सिखाता है कि, 
"ये ना कहो खुदा से कि मेरी मुश्किलें बड़ी है, 
इन मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है..."

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