दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं
आज ऐ आशोब-ए-दौराँ मैं नहीं या तू नहीं
संग की सूरत पड़ा हूँ वक़्त की दहलीज़ पर
ठोकरों में ज़िंदगी है आँख में आँसू नहीं
शब ग़नीमत थी कि रौशन थे...
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