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दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं - ख़ावर रिज़वी

दिल ही दिल में घुट के रह जाऊँ ये मेरी ख़ू नहीं आज ऐ आशोब-ए-दौराँ मैं नहीं या तू नहीं संग की सूरत पड़ा हूँ वक़्त की दहलीज़ पर ठोकरों में ज़िंदगी है आँख में आँसू नहीं शब ग़नीमत थी कि रौशन थे...

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