इंदौर | देशभर में शहरों के यातायात के संबंध में अब कोई भी निर्णय अफसर जनप्रतिनिधियों की मर्जी के बगैर नहीं ले सकेंगे। इसके लिए केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए पहले से लागू व्यवस्था में बदलाव किया है। इसके तहत सड़क सुरक्षा समिति की अध्यक्षता अब क्षेत्रीय सांसद करेंगे। सभी विधायक बतौर सदस्य शामिल होंगे। इससे शहर की यातायात व्यवस्था में अफसरों की मनमानी पर रोक लगेगी। जिन जिलों में दो से ज्यादा सांसद होंगे, वहां वरिष्ठ सांसद अध्यक्षता करेंगे।
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नोटिफिकेशन के मुताबिक बैठक में कलेक्टर, एसपी, जिला परिषद सीईओ, महापौर या विकास प्राधिकरण अध्यक्ष, विधायक, उपविभागीय मजिस्ट्रेट, अध्यक्ष द्वारा तय तीन एनजीओ, ऑटोमोबाइल डीलरों के जिला स्तरीय अधिकारी, ट्रेड एसो. के प्रतिनिधि, सिविल सर्जन, जिला शिक्षा अधिकारी, पीडब्ल्यूडी के अधिकारी, नेशनल हाईवे के प्रभारी अधिकारी और आरटीओ समिति के सचिव शामिल हो सकेंगे। जिले में रहने वाले राज्यसभा सांसद विशेष रूप से शामिल होंगे। समिति की बैठक हर तीन महीने में होगी।
इसलिए हुआ बदलाव
सड़क सुरक्षा समिति की अध्यक्षता कलेक्टर द्वारा की जाती थी। समिति में जनप्रतिनिधियों व जनता की राय को खास स्थान नहीं दिया जाता था। इसके चलते सवाल उठता था कि कुछ समय के लिए शहर आए अफसर यहां की यातायात व्यवस्था अच्छे से कैसे समझ सकते हैं। वे मनमाने निर्णय लेते हैं, जिससे जनता परेशान होती है।
कई फायदे और कुछ नुकसान भी
विशेषज्ञों के मुताबिक नई व्यवस्था का फायदा यह है कि अब हर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि की राय भी फैसलों में शामिल होगी। हर क्षेत्र की समस्या सही तरीके से उठाई जा सकेगी। चूंकि सभी जनप्रतिनिधियों का समय पर एक साथ उपस्थित होना मुश्किल होगा, जिससे समय पर बैठकें हो जाए, इसका संशय भी रहेगा।
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