श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ज़िंदगी हसीन है ग़र …”।)
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ग़ज़ल # 45 – “ज़िंदगी हसीन है ग़र…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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ऐ-आदम तुमने अहल-ए-जहाँ में क्या-क्या देखा है,
ग़रीब अलमस्त मालदारों को बेवजह रोते देखा है।
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काग़ज़ी है पैरहन तुम्हारा तराशा हुआ संदल बदन,
अच्छे-अच्छों नामचीनों को ज़मींदोज़ होते देखा है।
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दिल में धड़कन है साँसों के आमद-ओ-सुद तक,
महामारी में लाखों की साँसों को घुटते देखा है।
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देखो,बीमारी फैली है लोगों के मिलने-जुलने से,
कुम्भ मेले में लाखों भक्तों को उमड़ते देखा है।
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आदमी को सिखाते रहे कि दो गज दूरी है ज़रूरी,
उन्ही को लाखों की रैली में नाक रगड़ते देखा है।
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एक-एक साँस के हिसाब को तरसता है आदमी,
बेशुमार घने जंगलों की दौलत को लुटते देखा है।
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कभी सुना था यहाँ ईमान व्यापार की कुंजी है,
अस्पतालों में दवाइयों का कालाबाज़ार देखा है।
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बेशुमार माल-ओ-असबाब जमा करते लोग जहाँ में,
सिकंदर को दुनिया से ख़ाली हाथ रूखसत देखा है।
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ज़िंदगी हसीन है ग़र अपने से हटकर सोच सको,
ख़ुदगर्ज़ नाख़ुदा को नाव सहित गर्क होते देखा है।
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सुनो यार, होते होंगे सियासतदाँ बेशुमार ताकतवर
अटल इरादों को ‘आतिश’ एक वोट माँगते देखा है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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