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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#151 ☆ तन्मय दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य # 151 ☆

☆ तन्मय दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

तृष्णाओं के जाल में, उलझे हैं दिन-रैन।

सुख पाने की चाह में,  और-और बेचैन।।

जीवन  से  गायब  हुआ,  शब्द  एक  संतोष।

यश,पद,धन के लोभ में, खाली मन का कोष।।

दर्पण में दिखने लगे, भीतर के अभिलेख।

शांतचित्त एकाग्र हो,  पढकर उनको देख।।

नव-संस्कृति के दौर में, शिष्टाचार उदास।

रंग- ढंग बदले सभी, बदले सभी लिबास।।

व्यर्थ प्रदर्शन चल रहे, भीड़ भरे बाजार।

बदन उघाड़े विचरते, अधुनातन परिवार।।

है प्रवेश बाजार का, घर में अब  निर्बाध।

विज्ञापन भ्रम जाल में, बढ़े ठगी-अपराध।।

कभी हँसे, रोयें कभी, जीवन हुआ कुनैन।

भागदौड़ की जिंदगी, पलभर मिले न चैन।।

भूल रहे निज बोलियाँ, भूले निज पहचान।

नव विकास की दौड़ में, भटक गया इंसान।।

नव-विकास की दौड़ में,  मची हुई है होड़।

धर्म-कर्म जो हैं नियत, सब को पीछे छोड़।।

हो जाने पर गलतियाँ, या अनुचित संवाद।

तनिक ग्लानि होती नहीं, होता नहीं विषाद।।

प्रगतिवाद के दौर  में, संस्कृति का उपहास।

निजता पर भी आँच है, भस्मासुरी विकास।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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