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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #158 – 44 – “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती…”)

ग़ज़ल # 44 – “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ 

ज़िंदगी बड़ी कठिन डगर है चला करो देख कर,

मुसीबत आ जाए सामने तो डरा करो देख कर।

सत्ता, शासन, प्रशासन, शिक्षा सब मिलता है,

ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार बिकता देख कर।

हुकूमती खेल में सच्चाई भी गणित है जनाब,

पलट जाते हरिश्चंद बहुमत का हिसाब देखकर।

सब्र करना बहुत मुश्किल पर तड़पना सरल है,

अपने बस का काम कर लेता आसाँ देख कर।

दुनियादारी से सजे रिश्तों में बहुत घालमेल है,

अटकी हमारी तो मुँह फेर लेते मौक़ा देख कर।

ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती सावन में,

कटोरा थाम ले ‘आतिश’ स्याह बादल देख कर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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