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लावणी छंद "सच्ची कमाई"

सच्ची तुम ये किये कमाई, मानुस तन जो यह पाया।
देवों को भी जो है दुर्लभ, तुमने पायी वह काया।।
इस कलियुग में जन्म लिया फिर, नाम जपे नर तर जाये।
अन्य युगों के वर्षों का फल, इसमें तुरत-फुरत पाये।।

जन्मे तुम उस दिव्य धरा पर, देव रमण जिस पर करते।
शुभ संस्कार मिले ऋषियों के, भव-बन्धन जो‌ सब हरते।।
नर-तन में प्रभु भारत भू पर, बार बार अवतार लिये।
कर लीला हर भार भूमि का, उपकारी उपदेश दिये।।

धर्म सनातन जिसमें सोहे, ऐसा अनुपम गेह मिला।
गीता रामायण सम प्यारे, कुसुमों से यह देह खिला।।
वेद पुराण भागवत पावन, सीख सदा सच्ची देवें।
इस जीवन अरु जन्मांतर के, बंधन सारे हर लेवें।।

मंदिर के घण्टा घोषों से, भोर यहाँ पर होती है।
मधुर आरती की गूँजन में, सांध्य निशा में खोती है।।
कीर्तन और भजन के सुर से, दिग्दिगन्त अनुनादित हैं।
सद्सिद्धांत यहाँ जीने के, पहले से प्रतिपादित हैं।।

वातावरण यहाँ ऐसा है, सत्संगत जितनी कर लो।
हरि का नाम धार के भव के, सारे कष्टों को हर लो।।
जप, तप, ध्यान, दान के साधन,‌ चाहो‌ जितने अपना लो।
नाना व्रत धारण कर सारी, जीवन की विपदा टालो।।

मार्ग प्रसस्त करे पग पग पर, सब का संतों की वाणी।
जग का सार बताए जिससे, लाभान्वित हो हर प्राणी।।
है यह सार्थक तभी कमाई, इसका सद्उपयोग करें।
जीवन सफल बनाएँ अपना, और जगत के दुःख हरें।।

लावणी छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-06-17




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