Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद जौनपूरी उ’स्मानी अज़ मौलाना हबीबुर्रहमान आ’ज़मी, जौनपुर

क़ुदरत का ये अ’जीब निज़ाम है कि एक की बर्बादी दूसरे की आबादी का सबब होती है, एक जानिब एक शहर उजड़ता है तो दूसरी तरफ़ दूसरा आबाद होता हैI  यही हमेशा से चला आता रहा है, इसी कानून-ए-फ़ितरत के तहत जब फ़ित्ना-ए-तैमूरी की हलाकत-ख़ेज़ियों से मग़रिब में दिल्ली की इ’ल्मी, तमद्दुनी और मुआ’शरती दुनिया में बाद-ए-ख़िज़ां के तुंद झोंके चल रहे थे तो दूसरी जानिब दयार-ए-पूरब के शहर-ए- जौनपूर में इ’ल्म-ओ-फ़न और तमद्दुन-ओ-मुआ’शरत  के चमनिस्तान में बहार आई हुई थी I

ताजदार-ए- सल्तनत-ए-शर्क़िय्या इब्राहीम शाह अल-मुतवफ़्फ़ा सन1440 ई’सवी के इंतिज़ाम, इ’ल्म -दोस्ती और उ’लमा-नवाज़ी और फ़य्याज़ी से जौनपूर मर्जा’-ए-अर्बाब-ए-कमाल बन गया था, यहाँ के मवाज़आ’त -ओ-क़स्बात में इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल की मस्नदें बिछ गई थीं, अहल-ए-इ’ल्म-ओ-दानिश दूर दराज़ मक़ामात से खिंचे चले आ रहे थे I

इन नौ-वारिद अहल-ए-कमाल में मलिकुल उ’लमा क़ाज़ी शहाबुद्दीन दौलताबादी की ज़ात-ए-गिरामी भी है I क़ाज़ी साहब के जौनपूर में आते ही उसके गुलिस्ताँ-ए-इ’ल्म में बिहार-ए-नौ आ गई I दर-हक़ीक़त जौनपूर की इ’ल्मी  तारीख़ का आग़ाज़ क़ाज़ी दौलताबादी की ज़ात-ए-गिरामी से होता है, इस में सुल्तानुश्शर्क़ इब्राहीम शाह भी बराबर शरीक रहा I सल़्तनत-ए-शर्क़िया अगरचे अस्सी बरस की क़लील मुद्दत में ख़त्म हो गई लेकिन मलिकुल-उलमा-ए-और मलिकुश्शर्क़ ने जिस गुलिस्तान-ए-इ’ल्म की आबयारी की थी वो तक़रीबन साढ़े तीन सौ साल तक फूलता फलता रहा और सर-ज़मीन-ए-जौनपूर से ऐसे ऐसे बा-कमाल अफ़राद उभरे जिनके कारनामों पर मिल्लत-ए-इस्लामिया को आज भी फ़ख़्र हैI

इन्हीं बा-कमाल अफ़राद में ज़ुब्दतुल-अख़यार, उ’म्दतुल-अबरार, उस्ताज़ुल –उ’लमा वल-फ़ुज़ला, फ़रीदुल-अ’स्र, वहीदु द्दहर, साहिबुर्रिशाद-वस्सिदाद फ़ी-मक़ालि-इर्शाद क़ुद्वतु- अह्ललिल-इ’ल्मि वत्तज्रीद अबुल बरकात अश्शैख़ दीवान मुहम्मद रशीद अल-जौनपूरी अल-उसमानी की ज़ात-ए-गिरामी भी हैI

ग्यारहवीं सदी हिज्री के उ’लमा में दीवान साहब इमामत-ओ-अब्क़रियत के मक़ाम पर फ़ाइज़ और शरीअ’त-ओ-तरीक़त के मुसल्लम मुक़्तदा थे, आपके असातिज़ा-ओ-मुआ’सिरीन आपकी जौदत-ए-तबा’, ज़िहानत-ओ-फ़तानत और इ’ल्मी–ओ-फ़न्नी महारत के मो’तरिफ़ थे I आपके मुआ’सिर और उस्ताज़ भाई शैख़ रुक्नुद्दीन बहरिया-आबादी तिल्मीज़-ए-ख़ास शैख़ मुफ़्ती शम्सुद्दीन बरोन्वी अल-मुतवफ़्फ़ा सन1047 को जब कोई इ’ल्मी  शुबहा वारिद होता तो अपने तबह्हुर-ए-इ’ल्मी के बावजूद दीवान साहब की तरफ़ मुराजअ’त फ़रमाते और तशफ़्फ़ी-बख़्श जवाब से मुतमइन होते I

उस्ताज़ुल-मुल्क शैख़ मुहम्मद अफ़ज़ल बिन हमज़ा उस्मानी जौनपूरी अल-मुतवफ़्फ़ा सन1062 हिज्री जो आपके उस्ताज़ हैं, अय्याम-ए- तालिब-इ’ल्मी  ही से आपकी क़ाबिलियत-ओ-फ़तानत के क़ाइल थे,एक मर्तबा मुख़्तसुरल-मआ’नी के दर्स के वक़्त एक साहब ने अर्ज़ किया कि ये का-न यकून, के मा’नी भी समझते हैं या यूँ ही पढ़ रहे हैं, उस्ताज़ुल-मुल्क ने बरजस्ता फ़रमाया कि आप “कान यकून के मा’नी के मुतअ’ल्लिक़ फ़रमाते हैं ये तो “सयकून के मा’नी भी बयान करते हैं I इसी ए’तिमाद-ओ- वसूक़ की बिना पर तहसील-ओ-तकमील से फ़राग़त के बा’द एक मर्तबा आप उस्ताज़ुल-मुल्क कि ख़िदमत में हाज़िर हुए ,उस वक़्त उस्ताज़ शरीफ़िया का जो फ़न-ए-मुनाज़रा में एक अहम मत्न है किसी तालिब-इ’ल्म को दर्स दे रहे थे, दीवान साहब की जानिब मुतवज्जिह हो कर फ़ामाया कि-

मत्न ख़ूब अस्त अगर कसे शर्ह-ए-ईं नवीसद बेहतर अस्त

तर्जुमा :ये एक बेहतरीन मत्न है अगर कोई इसकी शर्ह लिख देता तो अच्छा होता

दीवान साहब उस्ताज़ुल-मुल्क के इशारा को समझ गए और एक हफ़्ता के बा’द जब फिर हाज़िर-ए-ख़िदमत हुए तो रशीदिया शर्ह-ए-शरीफ़िया तालीफ़ फ़र्मा कर उस्ताज़-ए-आ’ली-मक़ाम की ख़िदमत में पेश कर दी, उस्तारज़ुल-मुल्क ने बेहद पसंद फ़रमाया और बहुत तहसीन फ़रमाई I रशीदिया जैसी अहम तसनीफ़ और एक हफ़्ता की क़लील मुद्दत में दीवान साहब की ख़ुदा-दाद ज़िहानत-ओ-क़ाबिलिय्य्त ही का करिश्मा है वर्ना एक हफ़्ता में इसको मज़ामीन को हल और अख़्ज़ करना भी ग़ैर-मा’मूली बात है।

ज़माना-ए-तालिब इ’ल्मी  का ही वाक़िआ’ है कि एक मर्तबा मुल्ला मोहन इलाहाबादी जो एक मुतबह्हिर आ’लिम और जय्यद मुनाज़िर थे, उस्ताज़ुल-मुल्क की मुलाक़ात की ग़रज़ से तशरीफ़ लाए, उस्ताज़ुल-मुल्क उस वक़्त दीवान साहब को दर्स  दे रहे थे, मुल्ला मोहन की ख़ातिर से दर्स मौक़ूफ़ कर देना चाहा I मुल्ला मोहन ने कहा कि सबक़ जारी रखा जाये ताकि उनकी इस्ति’दाद का पता चले, चुनांचे दर्स जारी रहा, दीवान साहब क़िराअत कर रहे थे, मुल्ला मोहन ने एक ए’तराज़ किया, दीवान साहब ने जवाब दिया और मुबाहसा शुरू’ हो गया, क़रीब था कि मुल्ला मोहन ला-जवाब हो कर ख़ामोश हो जाते, ये सूरत देख कर उस्ताज़ुल-मुल्क ने तेज़ निगाहों से दीवान साहब की जानिब देखा, आप उस्ताज़ का मंशा समझ कर ख़ामोश हो गए I

यूं तो दीवान साहब जुमला उ’लूम-ओ-फ़ुनून में महारत-ए-ताम्मा रखते थे लेकिन फ़िक़्ह, उसूल और तसव्वुफ़ में ख़ास इम्तियाज़ हासिल था। इसलिए उस्ताज़ुल-मुल्क मुक़द्दमात-ए-उसूल-ओ-फ़िक़्ह दीवान साहब से पूछते थे और मबादियात-ए-हिक्मत -ओ-फ़ल्सफ़ा मुल्ला महमूद जौनपूरी से I

1۔ दीवान साहब के तज़्किरा के माख़ुज़ –ओ- मराजि’: गंज-ए-रशीदी क़लमी में दीवान साहब और उनके ख़ानदान के बेशतर अस्हाब का तज़्किरा है ये किताब दीवान साहब का बसीत मल्फ़ूज़ है जिसको आपके तिल्मीज़-ए-ख़ास और ख़लीफ़ा-ए-अजल्ल शैख़ मुहम्मद नुसरत जमाल उ’र्फ़ शाह मुल्तानी ने जम्अ’ किया है, इसमें सन1072 हिज्री से सन1083 हिज्री तक के मल्फ़ूज़ात दर्ज हैं, ये दीवान साहब के हालात का सबसे क़दीम और मुस्तनद माख़ज़ है I

2۔ गंज अरशदी क़लमी: में शैख़ मुहम्मद अरशद बिन मुहम्मद रशीद दीवान का मल्फ़ूज़ है, जिसको शैख़ अरशद के ख़लीफ़ा शैख़ शुक्रुल्लाह ने जम्अ और शैख़ ग़ुलाम मुहम्मद रशीद बिन शैख़ मुहिब्बुद्दीन शैख़ अरशद ने मुरत्तब किया है, ये किताब अपने हुस्न-ए-तर्तीब-ओ- तफ़्सील के ए’तबार से ख़ानदान-ए-रशीदिया के हालात में सबसे मुफस्सल और जामिई’यत-ओ- इफ़ादियत के लिहाज़ से अस्ल माख़ज़ की हैसियत रखती है I

3۔ मनाक़िबुल-आरिफ़ीन मुअल्लफ़ा शैख़ मुहम्मद यासीन जां-नशीन-ए-शैख़ मुहम्मद तय्यब बनारसी, बुज़ुर्गान-ए-चिश्तिया के ज़ैल में मुअल्लिफ़ ने दीवान साहब का मुफ़स्सल-ओ-मुकम्मल तज़्किरा लिखा है, इस किताब पर ख़ुद दीवान साहब का लिखा हुआ हाशिया भी है, चूँकि ये किताब आपकी हयात ही में मुरत्तब हुई है, इसलिए ये भी क़ाबिल-ए-ए’तिमाद है, ये तीनों मज़कूरुस्सद्र किताबें ख़ानक़ाह-ए-रशीदिया   जौनपूर में मौजूद हैं I

4۔ बहर-ए-ज़ख़्ख़ार के नहर दोउम-ए-के शो’बा-ए-दोउम में बुज़ुर्गान-ए-रशीदिया का मुकम्मल तज़क्कुर है, ये औलिया-ए-किराम के हालात में बड़ी मशहूर किताब है, मगर अपनी ज़ख़ामत-ओ-तवालत की वजह से आज तक ज़ेवर-ए-तबा’ से आरास्ता न हो सकी, इसका एक क़लमी नुस्ख़ा मौलाना फ़सीहुद्दीन जौनपूरी उस्ताद मुस्लिम एंटर कॉलेज जौनपूर के पास मौजूद है I

5۔ तजल्ली नूर मुअल्लफ़ा अबुल-बशारत नूरुद्दीन ज़ैदी ज़फ़र सफ़हा 71 ओ-72 में दीवान साहब का तज़्किरा है I

6۔ नुज़हतुल –ख़्वातिर जिल्द-ए- पंजुम सफ़ हा367 में भी दीवान साहब का मुख़्तसर मगर जामे’ इज़्किरा है, इन किताबों के अ’लावा 7۔ समातुल-अख़बार,8۔ सुब्हातुल-मरजान9 तज़्किरा-ए-उलमा-ए- हिन्द ,10۔हदाइक़-ए-हनफ़िया 11۔ तोहफ़तुल-अबरार12 तारीख़-ए-शीराज़-ए-हिन्द वग़ैरा में भी दीवान का ज़िक्र है, मगर इनमें कोई नई और मज़ीद बातें नहीं हैं, सबने मज़कूरा बाला चार किताबों की बातों को दोहराया है।अलबत्ता समातुल-अख़बार में दीवान साहब की औलाद और तीन ख़ुल़फ़ा का मुफ़स्सल ज़िक्र है, इस मज़मून की तर्तीब के सिलसिले में इन किताबों से मदद ली गई है, मगर अस्ल माख़ज़ की हैसियत गंज-ए-अरशदी-ओ-गंज-ए-रशीदी ही रखती हैं I

दीवान साहब के बारे में अहल-ए-बातिन के ख़याललात:

जिस दिन उस्ताज़ुल-मुल्क शैख़ मुहम्मद अफ़ज़ल जौनपूरी की वफ़ात हुई, उसी दिन लाहौर में मुल्ला  ख़्वाजा ने जो सिलसिला-ए-क़ादरिया के मशाइख़ में हैं, फ़रमाया कि-

इमरोज़ कुतुब-ए-जौनपूर वफ़ात याफ़्त:-ओ-बा’दे चंद शैख़ मुहम्मद रशीद नामी ख़्वाहद गशत

तर्जुमा:आज कुतुब-ए-जौनपूर की वफ़ात हो गई और चंद दिन के बा’द इस मक़ाम पर मुहम्मद रशीद नामी फ़ाइज़ होंगे I

2۔ शैख़ अ’ब्दुल-अ’ज़ीज़ जौनपूरी देहलवी ख़लीफ़ा क़ाज़ी ख़ां ज़फ़र आबादी ने अपनी आख़िरी उ’म्र में फ़रमाया कि

बा’द–ए-मा मर्दे फ़क़ीर पैदा ख़्वाहद शुद कि नाम-ए-वय मुहम्मद रशीद ख़्वाहिद बूद (गंज-ए-अरशदी वरक़123)

तर्जुमा:मेरे बा’द एक मर्द-ए-फ़क़ीर पैदा होगा जिसका नाम मोहम्मद रशीद होगा I

शैख़ अ’ब्दुल-अ’ज़ीज़ बड़े बा-कमाल-ओ- साहिब-ए-हाल-ओ-वक़ाल बुज़ुर्ग थे 975 हिज्री में आयत-ए-पाक सुब्बहानल्लज़ी बेयदिही मलकूतु कुल्लि शयइन  व-इलैहि तुर्जऊ’न के समाअ’ पर वासिल ब-हक़ हो गए, दीवान साहब के अय्याम-ए-तुफ़ूलियत में एक तक़रीब के सिलसिला में शैख़ अ’ब्दुल-जलील लखनवी बरौना तशरीफ़ लाए हुसूल-ए-बरकत के लिए आपको शैख़ की ख़िदमत में हाज़िर किया गया, शैख़ ने आपको देखते ही फ़रमाया-

आ’रिफ़-ए-कामिल ख़्वाहद बूद-ओ- ने शकर-ए-बिस्यार तनावुल नमूद (अज़ वरक़12)

आ’लिम-ए- बा-अ’मल-ओ-आरिफ़-ए-अजल्ल होंगे और गन्ना बहुत ही पसंद करेंगे I

इन पेशगोइयों से पता चलता है कि दीवान साहब का मक़ाम इ’ल्म-ए-विलायत किस दर्जा का था

पैदाइश और नशो-ओ-नुमा:

आप दस ज़ीका’दा सन1000 हिज्री मौज़ा’ बरौना में पैदा हुए मौज़ा’ बरौना शहर-ए-जौनपूर से तक़रीबन छः मील के मसाफ़त पर मशरिक़ में वाक़े’ है और इस वक़्त हुदूद-ए-आ’ज़मगढ में है I

दीवान साहब ने चार बादशाहों का ज़माना पाया, जलालूद्दीन अकबर सन1000 हिज्री में के अ’ह्द में पैदा हुए जब आपकी उ’म्र चौधवीं साल को पहुंची तो जहाँगीर मस्नद-आरा-ए-सल्तनत हुआ आपके सैंतीसवें साल में शाहजहाँ तख़्त नशीन हुआ और जब आप छिहत्तर साल के हुए तो औरंगज़ेब आ’लमगीर सरीर –आरा-ए-हुकूमत हुए आपके वालिद शैख़ मुस्तफ़ा जमाल ने आपकी तुफ़ूलियत ही के ज़माना में अपने मुर्शिद के ईमा पर बरनिया में मुस्तक़िल सुकूनत इख़्तियार कर ली थी इसलिए आपकी नशो-ओ-नुमा अपने हक़ीक़ी मामूं शैख़ शम्सुद्दीन इब्न-ए- नूरुद्दीन बरनवी के ज़ेर-ए-निगरानी हुई I

शैख़ शम्सुद्दीन बड़े आ’बिद-ओ-ज़ाहिद और ख़ुश-औक़ात बुज़ुर्ग थे, और साथ ही ज़ेवर-ए-इ’ल्म से भी आरास्ता थे, अपने वक़्त के मशाहीर उ’लमा   में गिने जाते थे I अवाइल-ए-उ’म्र में मुलाज़मत-ए-शाही से मुंसलिक थे आख़िर में तर्क फ़र्मा कर उज़्लत-गुज़ीं हो गए थे, सन1047 में वफ़ात पाई आपका मज़ार मुहल्ला मुफ़्ती शहर जौनपूर में है, रुक्नुद्दीन बहरिया बादी आपके शागिर्द-ए-रशीद थे I

नाम-ओ-नसब और आबाई वतन: मुहम्मद रशीद नाम, शम्सुलहक़, फ़य्याज़ और दीवान लक़ब है, अबुल  बरकात कुनिय्यत है, शम्सी तख़ल्लुस, आपकी बा’ज़ तहरीरों से इस्म-ए-गिरामी अ’ब्दुर्रशीद भी ज़ाहिर होता है मगर मुहम्मद रशीद ही आपको पसंद-ओ- महबूब था आपके कमालात-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी को देख कर मशाइख़-ओ-अहलुल्लाह क़ुतुबुल-अक़ताब कहा करते थे I

सिलसिला-ए-नसब ब-इख़्तिलाफ़-ए-रिवायत अठारहवीं या बीसवीं पुश्त में शैख़ सरी बिन मुफ़्लिस सक़ती उ’स्मानी से मिल जाता है I आपकी बारहवीं पुश्त में एक बुज़ुर्ग शैख़ बख़्शी नामी हैं उन्ही के अज्दाद में से किसी ने अ’रब से हिज्रत कर के कल्दा में सुकूनत इख़्तियार कर ली थी, कल्दा मुल्क–ए–रुम का एक मशहूर मक़ाम है, इसी निस्बत से शैख़ बख़्शी को शैख़ रूमी कहा जाता है, शैख़ बख़्शी ने मुर्शिद-ए-कामिल की तलाश में हिन्दोस्तान की तरफ़ रख़्त-ए-सफ़र बाँधा उस वक़्त दिल्ली में सुल्तानुलमशाइख़ शैख़ निज़ामुद्दीन देहलवी के फ़ुयूज़-ओ-बरकात का दरिया बह रहा था, इसलिए शैख़ रूमी दिल्ली पहुंच कर सुल्तानुलमशाइख़ के दामन से वाबस्ता हो गए और मुद्दत-ए-दराज़ तक शैख़ की सोहबत में रह कर कसब-ए-फ़ैज़ करते रहे I

इस से फ़राग़त के बा’द शैख़ के इशारे से मौज़ा’ सकलाई परगना अमेठी ज़िला’ बारहबंकी में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा की इस्लाह-ओ-तर्बियत की ग़रज़ से मुस्तक़िल सुकूनत इख़्तियार कर ली, शैख़ रूमी को सुल्तानु-लमशाइख़ के अ’लावा शैख़ नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी से भी इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल थी, शैख़ रूमी ने सकलाई ही में वफ़ात पाई और वहीं मदफ़ून हुए शैख़ रूमी के बा’द उनकी औलाद सकलाई में मुक़ीम रही और आज तक आपकी नस्ल वहाँ पाई जाती है I

दीवान साहब के वालिद-ए-बुज़र्ग़ो और शैख़ मुस्तफ़ा जमाल भी मौज़ा’ सकलाई में मुतवल्लिद हुए और वहीं नशो-ओ-नुमा पाई बड़े होने के बा’द उन्हें तलब-ए-इ’ल्म का शौक़ पैदा हुआ और वो हुसूल-ए-इ’ल्म के लिए सकलाई से जौनपूर आए, अपनी ज़ाद-गाह को ख़ैरबाद कह कर जौनपूर में मुस्तक़िल सुकूनत इख़्तियार कर ली और यहाँ के असातिज़ा-ओ-मशाइख़ से उ’लूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी की तकमील फ़रमाई I शैख़ नूरुद्दीन बिन अ’ब्दुलक़ादिर बरोनवी की साहिबज़ादी से निकाह किया जो आइन्दा के लिए सकलाइ के  बजाय बरौना ज़िला’ जौनपूर की वतनियत का सबब बना यहीं आपके तीनों साहिबज़ादे शैख़ मुहम्मद सई’द, शैख़ मुहम्मद रशीद (साहिब-ए-तर्जुमा) और शैख़ मुहम्मद वलीद पैदा हुए , शैख़ मुस्तफ़ा जमाल का इब्तिदाई अय्याम से ही दीन, तक़्वा और इस्लाह-ए-बातिन की तरफ़ मैलान था, चुनांचे सकलाई के क़ियाम के ज़माना में शैख़ मुहम्मद बिन निज़ामुद्दीन उ’स्मानी अमेठवी के हल्क़ा-ए-इरादत में दाख़िल हो गए थे और वक़तन फ़-वक़तन शैख़ की सोहबत में जाकर इक्तिसाब-ए-फ़ैज़ करते रहते थे I

जौनपूर आने के बा’द शैख़ क़ियामुद्दीन बिन क़ुतुबुद्दीन जौनपूरी की जानिब रुजू’ किया और उन्हीं से इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल हुई, शैख़ मुस्तफ़ा में कमाल दर्जे का ज़ोहद, तक़्वा और तवक्कुल था, मुश्तबा चीज़ों से इंतिहाई परहेज़ करते थे I अपने शैख़ के ईमा पर अहल-ओ-अ’याल को बरौना छोड़ कर बंडरा ज़िला’ पूर्णिया में इक़ामत फ़रमाई थी, और वहीं10 ज़िलहिज्जा सन1072 हिज्री में वफ़ात पाई और पूर्णिया, महल्ला चिमनी बाज़ार में मदफ़ून हुए I

दीवान साहब ने अपने एक शे’र में इसकी तरफ़ इशारा किया है-

चूँ यार ब- बंगाला कुनद मस्कन-ओ-मावा

शमसी ब-बदख़्शाँ न-नरवद लाल ब-बंगलिस्ताँ

दर्स-ओ-तदरीस:

दीवान साहब के असातिज़ा की फ़ेहरिस्त बहुत तवील है, जहाँ कोई साहिब-ए-कमाल मिला, उसके सामने ज़ानू-ए-अदब तह कर दिया और उसके फ़ुयूज़ इ’ल्मिया से इस्तिफ़ादा किया, ज़ैल में उन असातिज़ा की इजमाली फ़ेहरिस्त पेश की जा रही है जिनसे दीवान साहब ने बिला-बास्ता इस्तिफ़ादा फ़रमाया है जिससे इक़्लीम-ए-इ’ल्म-ओ-फ़न के ताजदार और आसमान-ए-इ’ल्म के आफ़ताब-ए-आ’लमताब के इ’ल्मी  शग़फ़ का सहीह अंदाज़ा हो सकेगा I

1۔ शैख़ मुहम्मद अदखुन्द अल-बरोनवी 2۔ अश्शैख़ कबीर नूर अल-बरोनवी 3۔ अश्शैख़ मुहीउद्दीन अल-सधोरवी 4۔ अश्शैख़ मख़दूम-ए-आ’लम अल-सधोरवी,5۔ अ



This post first appeared on Hindustani Sufism Or Taá¹£awwuf Sufi | Sufinama, please read the originial post: here

Share the post

क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद जौनपूरी उ’स्मानी अज़ मौलाना हबीबुर्रहमान आ’ज़मी, जौनपुर

×

Subscribe to Hindustani Sufism Or Taá¹£awwuf Sufi | Sufinama

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×