आज के इस एडवांस्ड दौर में ज़ियादा-तर लोगों के पास वक़्त की कमी है, हर कोई कम से कम वक़्त में बातों को जानना/समझना चाहता है। कई बार हमारे अंदर कोई न कोई बात चल रही होती है जो कि हम सामने वाले से कहना चाहते हैं भले ही वो दोस्त हो, महबूब हो या फिर हम-सफ़र, मगर बात को स्पष्ट रूप से न समझा पाने या कह पाने की वजह से बात कोई दूसरी ही शक्ल ले लेती है, जिससे बात बनने की बजाए बिगड़ जाती है, ऐसे में हमें शायरी का हाथ थामना चाहिए। अपनी बात को कहने के लिए शायरी का सहारा ले लिया जाए तो सामने वाला सीधा आपकी बात के मतलब तक जा पहुँचता है। अपनी ज़िन्दगी के दुखों को अगर हम किसी के आगे बयाँ करें तो शायद पूरा दिन भी कम पड़े, लेकिन वहीं आप शायरी का सहारा लें तो काम आसान हो जाएगा, हम अपनी ज़िंदगी के चाहे वो प्यार, मोहब्बत, दोस्ती, जुदाई किसी भी मरहले से गुज़र रहे हों शायरी हमारे आसपास ही कहीं होती है। शायरी हर जगह काम आ ही जाती है चाहे हम हम-सफ़र के साथ शाम की रौशनी को दोबाला करना चाहते हों या किसी को मोहब्बत का इज़हार या फिर ख़ुद को हौसला देना चाहते हों, शायरी हमारी सच्ची मदद कर सकती है, बिना कुछ डिमांड किए।
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अगर उर्दू शायरी में हम मोहब्बत की बात करें तो ऐसा नहीं हो सकता कि हमारे ज़ेहन में ‛‛बशीर बद्र’’ साहब का नाम न आए। आज की इस रफ़्तार-भरी ज़िन्दगी में बशीर बद्र साहब के अशआर हमें ठहरना सिखाते हैं, हमारे अंदर मोहब्बत के जज़्बात पैदा करते हैं। उन्होंने लगभग हर उम्र के लोगों पर अपनी शायरी की ख़ुश्बू को बिखेरा है और मोहब्बत के नए रंगों से मिलवाया है। उनकी शायरी में हम सब से ज़ियादा मोहब्बत से आश्ना होते हैं। बशीर बद्र साहब के ऐसे अनगिनत अशआर हैं जो कि सिर्फ़ मोहब्बत की नज़्र हैं, उनमें से चंद अशआर भी अगर आप अपने महबूब, महबूबा, हम-सफ़र को सुना दें या भेज दें तो काम आसान हो जाए।
चंद अशआर देखें:
आओ जानाँ! बादलों के साथ साथ
धूप जाती है कहाँ पीछा करें
वही लिखने पढ़ने का शौक़ था, वही लिखने पढ़ने का शौक़ है
तिरा नाम लिखना किताब पर, तिरा नाम पढ़ना किताब में
एक मुट्ठी ख़ाक थे हम एक मुट्ठी ख़ाक हैं
उसकी मर्ज़ी है हमें सहरा करे दरिया करे
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा है कभी ख़ुद ख़फ़ा भी हो
हम कोई भी बड़ा काम कर लें कितनी भी बड़ी बात लिख लें या कह दें एक वक़्त तक ही दुनिया उसे याद रखती है फिर उसके बाद भूल जाती है लेकिन इश्क़ ऐसा सब्जेक्ट है जो आख़िरी वक़्त तक हर किसी को याद रह जाता है। इन्हीं बातों को नोमान शौक़ साहब ने दो मिसरों (एक शेर) में इतनी ख़ूबसूरती से कहा है कि अगर हम अपने चाहने वाले को कहें तो क्या ही बात होगी।
हम भले ही किसी भी हाल में हों जिस जगह जिस शख़्स से भी मोहब्बत हो जाती है उससे या उसकी गली से दूर जाने को दिल नहीं चाहता हम अपने आपको उस जगह ही बेहतर पाते हैं और ख़ुदा से भी यही कहते हैं। अपने वक़्त के मशहूर शायर मुज़्तर ख़ैराबादी ने इन बातों को इस अंदाज़ से दो मिसरों (एक शेर) में कहा है की बे-साख़्ता मुँह से वाह निकल जाती है।
आप किसी भी मरहले से गुज़र रहे हों मोहब्बत का उसमें होना बेहद ज़रूरी है, मोहब्बत का एहसास ऐसा होता है जो आपको मरने नहीं देता, आप में ताज़गी भरता है, अगर मोहब्बत का साथ है तो कोई इंसान कितनी भी तन्हाई में हो, ख़ुद को तन्हा नहीं महसूस कर सकता। अगर इन सब बातों को दो मिसरों में कहा जाए तो बशीर बद्र साहब का ये शेर होता है।
अपने यार दोस्तों से चाहने वाले के बारे में बातें करना या उनको याद करना/करते रहना या फिर उनसे मिलने की तमन्ना करना ये सब चीज़ें कभी-कभी हमारे वक़्त को कितना क़ीमती और ख़ूबसूरत बना देती हैं, हमें ख़्यालों की एक नई दुनिया तक ले जाती है। इन्हीं बातों को शकील बदायुनी साहब ने दो मिसरों (एक शेर) में यूँ कहा है
अपनी ज़िंदगी की कितनी भी लंबी बात या उलझन को दो मिसरों (एक शेर) में कहने के लिए उर्दू शायरी का सहारा ज़रूर लें और ज़िन्दगी को थोड़ा सा आसान बनाएँ।
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