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खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए …

छोटी इस एक बात पे दुनिया को खल गए.
बंजर ज़मीन पर ही उगे और पल गए.

जिनका था आफ़ताब से गठ-जोड़ हर जगह,
कल रात चाँदनी से मिले हाथ जल गए.

गिरते हुवे भी थाम ली बाजू खजूर नें,
गिर कर भी आसमान से हम यूँ संभल गए.

इतना हुनर था ये भी न महसूस हो सका,
सिक्के असल के साथ ही खोटे भी चल गए.

सुन कर भी सुन सके न कभी ख़ुद ने जो कहा,
वो ज्ञान बाँट-बाँट के आगे निकल गए.

मजबूर ग़र नहीं तो ये आदत न हो कहीं,
कीचड़ दिखा तो पाँव भी झट से फ़िसल गए.

कुछ लोग ओढ़ कर जो चले मोम का लिबास,
खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए.



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